बछ बारस/गोवत्स द्वादशी 27 अगस्त को, पुत्र की लंबी उम्र के लिए यह व्रत है शुभ, पढ़ें महत्व

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दिनांक 27 अगस्त 2019, मंगलवार को बछ बारस यानी गोवत्स द्वादशी का शुभ पर्व मनाया जा रहा है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को बछ बारस या गोवत्स द्वादशी या वत्स द्वादशी कहा जाता है। 
 
इस दिन पुत्रवती स्त्रियां व्रत रखती हैं और अपने पुत्रों के सुख और दीर्घायु की कामना करती हैं। इस दिन पुत्रों की पसंद के व्यंजन बनाए जाते हैं और उन्हें उपहार भी दिए जाते हैं। कहीं-कहीं माताएं पु़त्रों की नजर भी उतारती हैं। इस दिन स्त्रियां मूंग, मोठ और बाजरा अंकुरित कर गाय के बछड़े को खिलाती हैं। व्रती स्त्रियों को भी आहार में यही अन्न लेना होता है। इस दिन गाय का दूध सर्वथा वर्जित माना जाता है, केवल भैंस का दूध ही उपयोग में लिया जाता है।
 
बछ बारस पर्व 
बछबारस पर्व को मनाने के पीछे मान्यता है कि इस दिन श्रीकृष्ण पहली बार गाय चराने घर से बाहर निकले थे। यह माता यशोदा और पुत्र कृष्ण के बीच प्रेम के जीवंत उदाहरण का प्रतीक पर्व है। माता यशोदा के लिए अपने कान्हा अत्यंत लाड़ले थे। उनकी हर बात कान्हा से आरंभ होकर कान्हा पर ही खत्म होती थी। कान्हा की नटखट अदाएं, चुलबुलापन और मासूमियत पूरे ग्रामवासियों के लिए मनोरंजन और आस्था का विषय होते थे । 
 
जब श्री कृष्ण बड़े हो गए तब उनके सारे मित्र ग्वाले गाय चराने जंगल में जाने लगे। अपने मित्रों को देख श्री कृष्ण ने भी गाय चराने जाने की हठ पकड़ ली। माता यशोदा जानती थी कि उनके कान्हा को कितने शत्रुओं से खतरा है पर वे इस सत्य से परिचित थीं कि आयु के अनुरूप पुत्र को घर से बाहर भेजना ही होगा। अपने पुत्र को इतनी देर बाहर भेजने के नाम से भी वे चिंतित थीं। आखिरकार भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को श्री कृष्ण का जंगल में गाय चराने जाना निश्चित किया गया।
 
पुत्र की चिंता में, उसे हर कष्ट से बचाने के लिए माता यशोदा ने कई जतन किए। उनका लाड़ला इतनी देर घर से बाहर रहने वाला था इसलिए माता ने अपने पुत्र के पसंद के सारे व्यंजन बनाए। श्री कृष्ण के प्रथम वन गमन पर गोकुल गांव की प्रत्येक माता ने कृष्ण के प्रति दुलार प्रकट करने के लिए उनके पसंद के व्यंजन बनाए। श्री कृष्ण के साथ वन जाने वाली गायों और बछड़ों के लिए भी मूंग, मोठ और बाजरा अंकुरित किया गया।
 
सुबह यशोदा ने श्री कृष्ण को हर तरह से सुंदर सजाया और काला टीका लगाया। उन्होंने पूरे दिन खाने के लिए ढेर सारे व्यंजन श्री कृष्ण के साथ बांधे। उनके साथ ही ब्रज की सारी माताओं ने श्री कृष्ण के लिए व्यंजनों का ढेर लगा दिया। गायों और बछड़ों का भी श्रृंगार हुआ और पूजा के बाद उन्हें अंकुरित अनाज खिलाया गया।

इस तरह मां की ममता से ओत- प्रोत श्री कृष्ण का पहला गोवत्साचरण संपूर्ण हुआ। श्री कृष्ण के वापस आने तक गांव की किसी महिला ने उनकी चिंता में भोजन नहीं किया। गायों के लिए अंकुरित किए हुए अन्न पर ही उनका दिन कट गया। इस तरह बछबारस का व्रत अस्तित्व में आ गया। उस दिन की स्मृति में ही यह  व्रत किया जाता है। माताएं अपने पुत्र के लिए व्रत और गाय-बछड़े का पूजन करती हैं। 
 

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