बसौड़ा पर्व पर होगी शीतला पूजा, बासी भोजन का लगेगा भोग

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* बासी भोजन का भोग लगेगा शीतला माता को, महिलाएं रखेंगी व्रत... 


 
होली-रंगपंचमी के बाद आनेवाले मुख्य त्योहार में 19 मार्च, रविवार को शीतला सप्तमी और 20 मार्च, सोमवार को शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। इस अवसर पर श्रद्धालु दिन भर उपवास रखेंगे और शीतला माता की पूजा-अर्चना कर बासी भोजन का भोग लगाएंगे। ऐसी मान्यता है कि शीतला अष्टमी का व्रत रखने से छोटी माता का प्रकोप नहीं होता।

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बसौड़ा पर्व : ये हैं शीतला माता को प्रसन्न करने की पौराणिक कथा
 
ऐसा माना जाता है कि शीतला माता भगवती दुर्गा का ही रूप है। भारतीय उपासना पद्धति जहां मनुष्य को आध्यात्मिक रूप से मजबूत करती है वहीं शारीरिक और मानसिक रोगों को दूर करने का भी इसका उद्देश्य होता है। कहा जाता है कि चैत्र महीने से जब गर्मी प्रारंभ हो जाती है तो शरीर में अनेक प्रकार के पित्त विकार भी प्रारंभ हो जाते हैं।
 
शीतला सप्तमी और शीतलाष्टमी व्रत मनुष्य को चेचक के रोगों से बचाने का प्राचीन काल से चला आ रहा व्रत है। आयुर्वेद की भाषा में चेचक का ही नाम शीतला कहा गया है। अतः इस उपासना से शारीरिक शुद्ध, मानसिक पवित्रता और खान-पान की सावधानियों का संदेश मिलता है।

शीतला सप्तमी : मां शीतला के पूजन का पर्व
 
इस व्रत में चैत्र कृष्ण अष्टमी के दिन शीतल पदार्थों का मां शीतला को भोग लगाया जाता है। कलश स्थापित कर पूजन किया जाता है तथा प्रार्थना की जाती है कि- चेचक, गलघोंटू, बड़ी माता, छोटी माता, तीव्र दाह, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र रोग और शीतल जनित सभी प्रकार के दोष शीतला माता की आराधना, पूजा से दूर हो जाएं।

शीतला चालीसा- जय जय माता शीतला
 
शीतला स्त्रोत का पाठ शीतल जनित व्याधि से पीड़ितों के लिए हितकारी है। स्त्रोत में भी स्पष्ट उल्लेख है कि शीतला दिगंबर है, गर्दभ पर आरूढ है, शूप, मार्जनी और नीम पत्तों से अलंकृत है। इस अवसर पर शीतला माता का पाठ करके निरोग रहने के लिए प्रार्थना की जाती है।
 
'वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बरराम्‌, मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्‌।'
 
इसी दिन संतानष्टमी का भी व्रत करने का विधान है। इसमें प्रातः काल स्नान आदि के बाद भगवान श्रीकृष्ण और माता देवकी का विधिवत पूजन करके मध्य-काल में सात्विक पदार्थों का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से पुण्य ही नहीं मिलता बल्कि समस्त दुखों का भी निवारण होता है।

आरती : जय शीतला माता
 
शास्त्रीय मान्यता के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी, वैशाख, जेठ और आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी पूजन करने का प्रावधान है। चारों महीने के चार दिन का व्रत करने से शीतला जनित बीमारियों से छुटकारा मिलता है। इस पूजन में शीतल जल और बासी भोजन का भोग लगाने का विधान है।

श्रद्धालु शीतला सप्तमी-अष्टमी का व्रत रखकर माता की भक्ति में लीन रहेंगे और अपने परिवार की रक्षा करने के लिए माता से प्रार्थना करेंगे। इस दोनों दिनों के बसौड़ा पर्व में मीठे चावल, कढ़ी, चने की दाल, हलुवा, रावड़ी, बिना नमक की पूड़ी, पूए, गुलगुले, पकौड़े आदि का भोग शीतला माता को लगाया जाएगा। 
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