राम-सीता ने की थी छठ पर सूर्य आराधना

Webdunia
खास तौर से बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्रों में मनाया जाने वाला छठ पर्व , सूर्य की आराधना का विशेष त्योहार होता है। निष्ठा के इस व्रत पर्व को भारतीय परंपरा में बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसके महत्व का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है, कि भगवान राम व माता सीता ने भी छठ के इस पावन व्रत को किया था।
 
ऐसी मान्यता है कि लंका विजय के पश्चात चौदह वर्ष के वनवास की अवधि पूरी कर मर्यादा पुरुषोत्तम राम दीपावली के दिन अयोध्या लौटे थे। अपने चहेते राजा राम और लक्ष्मीरूपी सीता पाकर अयोध्या धन्य हो गई थी। राज्यभर में घी के दीए जलाए गए थे।

राम के राज्याभिषेक के बाद रामराज्य की स्थापना का संकल्प लेकर राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास रखकर प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की आराधना की थी और सप्तमी को सूर्योदय के समय अपने अनुष्ठान को पूर्ण कर प्रभु से रामराज्य की स्थापना का आशीर्वाद प्राप्त किया था। तब से छठ का पर्व लोकप्रिय हो गया। 
 
सूर्य षष्ठी का उपवास करने वाले साधक कार्तिक शुक्ल चतुर्थी की शाम को लौकी की सब्जी और रोटी का पारण कर उपवास प्रारंभ करते हैं। इसे खरना अथवा संझवत कहा जाता है। 24 घंटे के उपरांत पंचमी तिथि को गुड़ से बनी खीर और रोटी का भोग लगाते हैं। 
तभी से मुख्य पर्व छठ का उपवास प्रारंभ होता है। 24 घंटे निर्जल उपवास रहकर षष्ठी को अस्ताचल सूर्य की अभ्यर्थना जल में खड़े होकर की जाती है तथा लगातार लगभग 36 घंटे के निर्जल उपवास के बाद सप्तमी को सूर्योदय का पूजन-अर्चन करके त्योहार पूर्ण होता है। 

पंचमी के दिन शुद्ध घी और गुड़ से पकवान बनाया जाता है जिसे ठेकुआ के नाम से जाना जाता है। बांस की टोकनी में प्रति साधक एक-एक कलसूप रखा जाता है जिसमें उपलब्ध सभी प्रकार के फूल, फल, सब्जी आदि सजाए जाते हैं। घी के दीये रखकर पूजा की टोकरी सर-माथे रखकर घाट पर ले जाना बड़े ही सौभाग्य की बात मानी जाती है। 
 
सूर्य साधक के परिवार का प्रत्येक व्यक्ति स्वच्छ परिधान में, नंगे पैर, सिर पर पूजा की टोकरी लिए हुए घाट पर जाते हुए बड़े ही अद्भुत प्रतीत होते हैं। बड़े शहरों में जगह-जगह पर कुंड या हौदनुमा घाट का निर्माण किया जाता है और जल से भरे हुए कुंड में गंगा जल डालकर मान लिया जाता है कि पतित पावन गंगा यही है। 
 
दूर-दराज में नौकरी करने वाले लोग छठ पूजा में सम्मिलित होने के लिए अवकाश लेकर आते हैं। उल्लास में इसी दिन निर्मित गंगा घाट के आसपास पतंग उड़ाने की परंपरा है और पटाखे फोड़कर अपने हर्ष का प्रदर्शन किया जाता है। छठ का प्रसाद बांटना और पाना सौभाग्य की बात मानी जाती है।
Show comments

Vrishabha Sankranti 2024: सूर्य के वृषभ राशि में प्रवेश से क्या होगा 12 राशियों पर इसका प्रभाव

Khatu Syam Baba : श्याम बाबा को क्यों कहते हैं- 'हारे का सहारा खाटू श्याम हमारा'

Maa lakshmi : मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तुलसी पर चढ़ाएं ये 5 चीज़

Shukra Gochar : शुक्र करेंगे अपनी ही राशि में प्रवेश, 5 राशियों के लोग होने वाले हैं मालामाल

Guru Gochar 2025 : 3 गुना अतिचारी हुए बृहस्पति, 3 राशियों पर छा जाएंगे संकट के बादल

19 मई 2024 : आपका जन्मदिन

19 मई 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

Chinnamasta jayanti 2024: क्यों मनाई जाती है छिन्नमस्ता जयंती, कब है और जानिए महत्व

Narasimha jayanti 2024: भगवान नरसिंह जयन्ती पर जानें पूजा के शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

Vaishakha Purnima 2024: वैशाख पूर्णिमा के दिन करें ये 5 अचूक उपाय, धन की होगी वर्षा