गुहराज निषाद जयंती : केवट प्रसंग का ये है ऐतिहासिक स्थान

अनिरुद्ध जोशी
गुरुवार, 26 मार्च 2020 (17:16 IST)
महाराज प्रयागराज निषाद, तिरथराज निषाद के पुत्र गुहराज निषाद ने अपनी नाव में प्रभु श्रीराम को गंगा के उस पार उतारा था। आज गुहराज निषाद के वंशज और उनके समाज के लोग उनकी पूजा अर्चन करते हैं। चैत्र शुक्ल पंचमी को उनकी जयंती है। अंग्रेजी तारीख के अनुसार 29 मार्च को। आओ जानते हैं केवट प्रसंग के प्रमुख स्थान को।
 
 
निषादराज गुह मछुआरों और नाविकों के राजा थे। उनका ऋंगवेरपुर में राज था। उन्होंने प्रभु श्रीराम को गंगा पार कराया था। वनवास के बाद श्रीराम ने अपनी पहली रात उन्हीं के यहां बिताई थी। श्रृंगवेरपुर में इंगुदी (हिंगोट) का वृक्ष हैं जहां बैठकर प्रभु ने निषादराज गुह से भेंट की थी।
 
 
गंगा के इस पार 'सिंगरौर' : श्रीराम को जब वनवास हुआ तो वाल्मीकि रामायण और शोधकर्ताओं के अनुसार वे सबसे पहले तमसा नदी पहुंचे, जो अयोध्या से 20 किमी दूर है। इसके बाद उन्होंने गोमती नदी पार की और प्रयागराज (इलाहाबाद) से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था।

 
इलाहाबाद से 22 मील (लगभग 35.2 किमी) उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित 'सिंगरौर' नामक स्थान ही प्राचीन समय में श्रृंगवेरपुर नाम से परिज्ञात था। रामायण में इस नगर का उल्लेख आता है। यह नगर गंगा घाटी के तट पर स्थित था। महाभारत में इसे 'तीर्थस्थल' कहा गया है।

 
महाराज गुहराज निषाद का किला श्रृंग्वेरपुर धाम उत्तर-प्रदेश के प्रयागराज जनपद के सोराव तहसील में प्रयागराज शहर से 23 किलोमीटर दूर प्रयागराज-लखनऊ मार्ग पर मुख्य रोड से तीन किलोमीटर पर गंगानदी के किनारे स्थित है।

 
उस पार कुरई : इलाहाबाद जिले में ही कुरई नामक एक स्थान है, जो सिंगरौर के निकट गंगा नदी के तट पर स्थित है। गंगा के उस पार सिंगरौर तो इस पार कुरई। सिंगरौर में गंगा पार करने के पश्चात श्रीराम इसी स्थान पर उतरे थे। इस ग्राम में एक छोटा-सा मंदिर है, जो स्थानीय लोकश्रुति के अनुसार उसी स्थान पर है, जहां गंगा को पार करने के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीताजी ने कुछ देर विश्राम किया था। गंगा किनारे बसा श्रृंगवेरपुर धाम जो ऋषि-मुनियों की तपोभूमि माना जाता है। श्रृंगवेरपुर का नाम श्रृंगी ऋषि पर रखा गया है।

 
निषादराज केवट का वर्णन रामायण के अयोध्याकाण्ड में किया गया है।
 
मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना॥
चरन कमल रज कहुं सबु कहई। मानुष करनि मूरि कछु अहई॥

 
श्रीराम ने केवट से नाव मांगी, पर वह लाता नहीं है। वह कहने लगा- मैंने तुम्हारा मर्म जान लिया। तुम्हारे चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं कि वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी है। वह कहता है कि पहले पांव धुलवाओ, फिर नाव पर चढ़ाऊंगा।

 
माना जाता है कि श्रृंगवेरपुर धाम के मंदिर में श्रृंगी ऋषि और देवी शांता निवास करते हैं। यहीं पास में है वो जगह जो राम सीता के वनवास का पहला पड़ाव भी मानी जाती है। इसका नाम है रामचौरा घाट। रामचौरा घाट पर राम ने राजसी ठाट-बाट का परित्याग कर वनवासी का रूप धारण किया था। यहीं भगवान राम ने निषाद से गंगा पार कराने की मांग की थी। कहते हैं कि निषादराज का राजमहल आज भी श्रृंगवेरपुर में मौजूद है।

 
निषाद अपने पूर्वजन्म में कभी कछुआ हुआ करता था। एक बार की बात है उसने मोक्ष के लिए शेष शैया पर शयन कर रहे भगवान विष्णु के अंगूठे का स्पर्श करने का प्रयास किया था। उसके बाद एक युग से भी ज्यादा वक्त तक कई बार जन्म लेकर उसने भगवान की तपस्या की और अंत में त्रेता में निषाद के रूप में विष्णु के अवतार भगवान राम के हाथों मोक्ष पाने का प्रसंग बना।

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