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ईसाई धर्म में पाम संडे क्यों मनाया जाता है, जानिए

हमें फॉलो करें ईसाई धर्म में पाम संडे क्यों मनाया जाता है, जानिए

अनिरुद्ध जोशी

ईसाई धर्म को क्रिश्‍चियन धर्म भी कहते हैं। इस धर्म के संस्थापक प्रभु ईसा मसीह है। ईसा मसीह को पहले से चले आ रहे प्रॉफेट की परंपरा का एक प्रॉफेट माना जाता हैं। इब्रानी में उन्हें येशु, यीशु या येशुआ कहते थे परंतु अंग्रेजी उच्चारण में यह जेशुआ हो गया। यही जेशुआ बिगड़कर जीसस हो गया। आओ जानते हैं ईसाई धर्म में पाम संडे क्यों मनाया जाता है। इस बार 28 मार्च 2021 को पाम संडे मनाया जाएगा।
 
 
पाम संडे : रविवार को यीशु ने येरुशलम में प्रवेश किया था। ज्यादातर विद्वानों के अनुसार सन 29 ई. को प्रभु ईसा गधे पर चढ़कर यरुशलम पहुंचे। इस दिन को 'पाम संडे' कहते हैं। अब सवाल यह कि इस संडे में पाम क्यों जुड़ा?
 
दरअसल, ईसा मसीह की लोकप्रियता येरुशलम में प्रवेश के पहले ही हो चली थी। उनके उपदेशों के कारण लोग उन्हें जानने लगे थे। उनकी लोकप्रियता से कट्टरपंथी यहूदियों के साथ ही रोमनों में भी चिंता की लहर दौड़ गई थी। उस दौर में रोमनों का जेरूसलम सहित संपूर्ण यहूदी साम्राज्य पर उसी तरह का शासन था जिस तरह का कि भारत में अंग्रेजों का था। लोग इस शासन से त्रस्त आ चुके थे लेकिन हर तरह के विद्रोह को रोमन कुचल देते थे। ऐसे में यहूदियों के मन में यह विश्वास हो चला था कि कभी तो मसीहा आएगा। जब येशुआ की लोकप्रियता बढ़ी तो लोगों ने उन्हें मसीहा समझा। 
 
जब प्रभु ईसा मसीह ने यह प्रकट किया कि मैं ही मसीहा हूं, ईश्‍वर का पुत्र हूं और स्वर्ग का राज्य स्थापित करने स्वर्ग से उतरा हूं तो लोगों को यह विश्वास हो गया कि हमारा मुक्ति दाता आ गया है। फिर ईसा मसीह 29 ई. में एक दिन रविवार को गधी पर सवार होकर यरुशलम पहुंचे। लोगों को जब यह पता चला कि मसीहा आ गया है तो लोगों ने उनका पाम की डालियां, पत्तियां आदि दिखाकर स्वागत किया। लोग उनका स्तुतिगान करते हैं और उन्हें राजा एवं मुक्तिदाता कहकर पुकारते हैं। इसीलिए इस दिन को पाम संडे कहा जाने लगा।
 
 
वहां उन्होंने अपने सभी शिष्यों के साथ अंतिम भोज किया और वहीं ईसा मसीह ने संकेतों में समझाया कि उनके साथ क्या होने वाला है। वहीं उन्हें दंडित करने के षड़यंत्र रचा गया। कहते हैं कि उनके एक शिष्य जुदास ने उनके साथ विश्‍वासघात किया, जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फिर यहूदियों की महासभा में उनको इसलिए प्राणदंड का आदेश दिया गया क्योंकि वे ईश्वर का पुत्र होने का दावा करते थे। 
 
शुक्रवार को उन्हें सूली दी गई थी इसलिए इसे 'गुड फ्रायडे' कहते हैं। रविवार के दिन सिर्फ एक स्त्री (मेरी मेग्दलेन) ने उन्हें उनकी कब्र के पास जीवित देखा। जीवित देखे जाने की इस घटना को 'ईस्टर' के रूप में मनाया जाता है। उसके बाद यीशु कभी भी यहूदी राज्य में नजर नहीं आए। अर्थात 33 साल की उम्र के बाद वे कभी भी नजर नहीं आए।

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