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विवाह पंचमी कब है? क्या है इस दिन का महत्व और कथा

WD Feature Desk
मंगलवार, 3 दिसंबर 2024 (15:53 IST)
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Vivah Panchami : 2024 में विवाह पंचमी कब है? प्रभु श्री राम का विवाह मार्गशीर्ष की शुक्ल पंचमी के दिन हुआ था। अत: धार्मिक शास्त्रों के अनुसार विवाह पंचमी प्रभु श्री राम और माता सीता के शुभ विवाह की महत्वपूर्ण तिथि है। यह अत्यंत पवित्र तिथि मानी गई है। वर्ष 2024 में उदया तिथि के अनुसार, विवाह पंचमी 6 दिसंबर 2024, दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस दिन का त्योहार राम और सीता के विवाह की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है।

विवाह पंचमी शुक्रवार, 06 दिसंबर 2024 को
पंचमी तिथि प्रारम्भ - 05 दिसंबर 2024 को दोपहर 12:49 बजे से।
पंचमी तिथि समाप्त - 06 दिसंबर 2024 को दोपहर 12:07 बजे तक। 

Highlights
  • कब है विवाह पंचमी 2024? 
  • राम विवाह कब है 2025 में।
  • 2024 में राम विवाह की तिथि कब है।
आइए जानते हैं इस लेख में महत्व और कथा के बारे में...  
 
विवाह पंचमी का महत्व क्या है : धार्मिक पुराणों में भगवान शिव-पार्वती विवाह, श्री गणेश रिद्धि-सिद्धि विवाह, श्री विष्णु-लक्ष्मी विवाह, श्री कृष्‍ण रुक्मिणी, सत्यभामा विवाह के साथ ही प्रभु श्रीराम और सीता के विवाह की बहुत चर्चा होती है। इन सभी के विवाह का पुराणों में सुंदर चित्रण मिलता है। कदाचित भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के बाद श्री राम और देवी सीता का विवाह सबसे प्रसिद्ध विवाह माना जाता है, क्योंकि इस विवाह की एक और विशेषता यह थी कि इस विवाह में त्रिदेवों सहित लगभग सभी मुख्य देवता किसी ना किसी रूप में उपस्थित थे। कोई भी इस विवाह को देखने का मौका छोड़ना नहीं चाहता था। श्री राम सहित ब्रह्मर्षि वशिष्ठ एवं राजर्षि विश्वामित्र को भी इसका ज्ञान था। 
 
कहा जाता है कि प्रभु श्री राम तथा जनकनंदिनी का विवाह देखने को स्वयं ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र ब्राह्मणों के वेश में आए थे। राजा जनक की सभा में शिव जी का धनुष तोड़ने के बाद श्री राम का विवाह होना तय हुआ। इस विवाह का रोचक वर्णन आपको वाल्मीकि रामायण में मिलेगा। अत: विवाह के समय ब्रह्मर्षि वशिष्ठ एवं राजर्षि विश्वामित्र उपस्थित थे। दूसरी ओर सभी देवी और देवता भी विभिन्न वेश में उपस्थित थे। चारों भाइयों में श्री राम का विवाह सबसे पहले हुआ।
 
सीता स्वयंवर/ विवाह पंचमी की कथा जानें : विवाह पंचमी की कथा के अनुसार भगवान शिव जी का धनुष बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारिक था। शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो।

इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था। देवी और देवताओं के काल की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवराज इन्द्र को सौंप दिया गया था।  देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवराज को दे दिया। राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवराज थे। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था।

उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था। इस धनुष को उठाने की एक युक्ति थी। जब सीता स्वयंवर के समय शिव के धनुष को उठाने की प्रतियोगिता रखी गई, तो रावण सहित बड़े-बड़े महारथी भी इस धनुष को हिला भी नहीं पाए थे। फिर प्रभु श्री राम की बारी आई।
 
श्रीरामचरित मानस में एक चौपाई आती है- 'उठहु राम भंजहु भव चापा, मेटहु तात जनक परितापा। 
भावार्थ- गुरु विश्वामित्र जनक जी को बेहद परेशान और निराश देखकर श्री राम जी से कहते हैं कि- हे पुत्र श्री राम उठो और 'भव सागर रूपी' इस धनुष को तोड़कर, जनक की पीड़ा का हरण करो।'
 
इस चौपाई में एक शब्द है 'भव चापा' अर्थात् इस धनुष को उठाने के लिए शक्ति की नहीं बल्कि प्रेम और निरंकार की जरूरत थी। यह मायावी और दिव्य धनुष था। उसे उठाने के लिए दैवीय गुणों की जरूरत थी। कोई अहंकारी उसे नहीं उठा सकता था।
 
जब प्रभु श्री राम की बारी आई तो वे जान गए थे कि यह कोई साधारण धनुष नहीं बल्कि भगवान शिव का धनुष है। इसीलिए सबसे पहले उन्होंने धनुष को प्रणाम किया। फिर उन्होंने धनुष की परिक्रमा की और उसे संपूर्ण सम्मान दिया।

प्रभु श्री राम की विनयशीलता और निर्मलता के समक्ष धनुष का भारीपन स्वत: ही तिरोहित हो गया और उन्होंने उस धनुष को प्रेमपूर्वक उठाया और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाई और उसे झुकाते ही धनुष खुद ब खुद टूट गया। कहते हैं कि जिस प्रकार सीता शिव जी का ध्यान कर सहज भाव बिना बल लगाए धनुष उठा लेती थी, उसी प्रकार श्रीराम ने भी धनुष को उठाने का प्रयास किया और सफल हुए। यदि मन में श्रेष्ठ के चयन की दृढ़ इच्‍छा है तो निश्‍चित ही ऐसा ही होगा।

सीता स्वयंवर तो सिर्फ एक नाटक था। असल में सीता ने राम और राम ने सीता को पहले ही चुन लिया था। मार्गशीर्ष/ अगहन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान श्री राम तथा जनकपुत्री जानकी/ सीता का विवाह हुआ था, तभी से इस पंचमी को 'विवाह पंचमी पर्व' के रूप में मनाया जाता है। 
 
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