How is the Amla Navami festival celebrated: आंवला नवमी का त्योहार दीपावली के बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि मनाया जाता है। आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहा जाता है। अक्षय नवमी धात्री तथा कूष्मांडा नवमी के नाम से भी जानी जाती है। त्योहार मुख्य रूप से भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी और आंवले के वृक्ष (धात्री वृक्ष) की पूजा करके मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने की विधियाँ और परंपराएँ निम्नलिखित हैं:-
 
 			
 
 			
					
			        							
								
																	
	 
	1. आंवला वृक्ष की पूजा और परिक्रमा की विधि: 
	दिशा: आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में (पूर्वाभिमुख) बैठकर पूजा शुरू करें।
	जड़ को अर्पण: वृक्ष की जड़ में दूध की धार अर्पित करें।
	परिक्रमा: पेड़ के चारों ओर कच्चा धागा बांधें और फिर सात बार परिक्रमा करें।
	आरती: परिक्रमा करते समय कपूर बाती या शुद्ध घी की बाती से आरती करें।
	मंत्र जाप: 'ॐ धात्र्ये नमः' मंत्र का जाप करते हुए जड़ में दूध की धार गिराएं।
								
								
								
										
			        							
								
																	
	महिला पूजा: महिलाएं अक्षत, पुष्प, चंदन आदि से पूजा कर पीला धागा लपेटकर वृक्ष की परिक्रमा करती हैं।
	 
	2. भोजन, भोग और ब्राह्मण भोज की परंपरा:
	भोग सामग्री: पूजा-अर्चना के बाद आंवले के पेड़ को खीर, पूड़ी, सब्जी और मिष्ठान आदि का भोग लगाया जाता है।
	ब्राह्मण भोजन: परिवार के बड़े-बुजुर्ग सदस्य आंवला पूजन के बाद पेड़ की छांव में ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं।
	स्वयं का भोजन: पूजा करने वाली महिलाएं (या परिवार) भी उसी वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन ग्रहण करते हैं।
	स्थान: महिलाएं किसी ऐसे गार्डन या स्थान पर जाती हैं जहाँ आंवले का वृक्ष हो, और वहीं भोजन करती हैं।
	3. धार्मिक महत्व और विशिष्ट विधान:
	पितरों का तर्पण: 'ॐ धात्र्ये नमः' मंत्र से आंवले की जड़ में दूध अर्पित करते हुए पितरों को तर्पण करने का विधान है।
	वस्त्र दान: इस दिन पितरों के शीत निवारण (ठंड) के लिए ऊनी वस्त्र और कंबल आदि का दान किया जाता है।
	स्थानीय परंपरा:  उज्जयिनी में कर्क तीर्थ यात्रा व नगर प्रदक्षिणा का भी प्रचलन रहा है, जिसमें प्रमुख मंदिरों पर दर्शन-पूजन किया जाता था।
	 
	4. धार्मिक परंपरा और लोक मान्यता:
	विष्णु का निवास: कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आवंले के पेड़ पर निवास करते हैं।
	श्रीकृष्ण का वृंदावन त्याग: यह भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण अपनी बाल लीलाओं का त्याग करके वृंदावन की गलियों को छोड़कर मथुरा चले गए थे।
	सभी देवों का निवास: आंवला भगवान विष्णु का सबसे प्रिय फल है और आंवले के वृक्ष में सभी देवी देवताओं का निवास होता है इसलिए इसकी पूजा का प्रचलन है।
	आयुर्वेद: आयुर्वेद के अनुसार आंवला आयु बढ़ाने वाला फल है यह अमृत के समान माना गया है इसीलिए हिन्दू धर्म में इसका ज्यादा महत्व है।
	संतान सुख: आंवले के वृक्ष की पूजा करने से देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन व्रत रखने से संतान की प्राप्ति भी होती है।
	मनोकामना पूर्ण: ऐसी मान्यता है कि आंवला पेड़ की पूजा कर 108 बार परिक्रमा करने से मनोकामनाएं पूरी होतीं हैं।
	पुण्य प्राप्ति: इस दिन विष्णु सहित आंवला पेड़ की पूजा-अर्चना करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। अन्य दिनों की तुलना में नवमी पर किया गया दान पुण्य कई गुना अधिक लाभ दिलाता है। धर्मशास्त्र अनुसार इस दिन स्नान, दान, यात्रा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।