गणगौर पर्व की मची धूम...

चैत्र कृष्ण ग्यारस : गणगौर पर्व

Webdunia
ND
चैत्र कृष्ण ग्यारस से मनाए जाने वाले गणगौर पर्व की धूम गाँव-देहात के काँकड़ से होकर शहर, बस्ती, कॉलोनियों और अब तो होटलों व गार्डनों तक पहुँचने लगी है, जो स्वर और साधना की जुगलबंदी से ग्रामीण परिवेश को जीवंत रखता है।

गणगौर पश्चिम हिन्दुस्तान,खासतौर पर राजस्थान, गुजरात और निमाड़-मालवा में कुँवारी कन्याओं व सुहागिनों द्वारा मनाया जाने वाला त्योहार है, जो मातृदेवी की आराधना का भी पर्व है। सो कुछ लोग इसे गिरि गौरी व्रत भी कहते हैं।

सुहागिनों के मेहँदी रचे हाथ, नए रंग-बिरंगे परिधान, नाक में नथ, माथे पर दमकता टीका व लकदक सिंगार के साथ गणगौर बाबुल के आँगन में छम-छम कर डोलती है, तो घर की बहन, बेटी और बहुओं के महावर रचे पैरों की थिरकन, छनकती पायलें व ढोलक की थाप पर ऐसी झंकार छिड़ती है कि माहौल संगीतमय हो जाता है।
  गणगौर पश्चिम हिन्दुस्तान,खासतौर पर राजस्थान, गुजरात और निमाड़-मालवा में कुँवारी कन्याओं व सुहागिनों द्वारा मनाया जाने वाला त्योहार है, जो मातृदेवी की आराधना का भी पर्व है। सो कुछ लोग इसे गिरि गौरी व्रत भी कहते हैं।      


विविध क्षेत्रों में गणगौर के अपने रंग हैं, जिसके मूल में सूर्य और राज्ञी, शिव-पार्वती, ब्रह्मा-सावित्री और चन्द्र-रोहिणी के पूजन का विधान है, लेकिन सबसे अधिक पूजा जाता है रनुदेवी (प्राज्ञी) व उनके पति घणियर राजा (सूर्यदेव) को, जिसे राजस्थान में गौरा/ गवर/गऊर/गौरज्या/गौर/ गिरगौर/गवरत्न/गौरत्न/गवरजा/ गैवरोबाई/गवरादे/गवरी आदि नामों से भी पुकारा जाता है।

पहले दिन चैत्र कृष्ण ग्यारस को माताजी की 'मूठ' रखी जाती है। बाँस की छोटी-छोटी टोकरियों में ज्वारे (गेहूँ) बोए जाते हैं। ज्वारे वाली परंपरागत जगह को माताजी की 'बाड़ी' कहते हैं। सप्ताहभर श्रद्धा-भावना के साथ बाड़ी की पूजा-अर्चना कर सिंचन व आरती भी की जाती है। इस दौरान शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। ज्वारे लहराने के साथ ग्राम लक्ष्मी गाने लगती है- ' म्यारा हरिया जवारा हो कि गेहूँआ लहलहे...'

चैत्र शुक्ल तीज को माताजी उत्सवी माहौल में मेहमान के बतौर घर लाई जाती हैं। घर के आँगन, चौक पानी छिंटी माटी का सौंधी-सौंधी खुशबू और गौरनियों के पल्लू की झालरियों के साथ मधुर स्वरलहरियों से माहौल को आत्मीय तथा भावविभोर कर देती है। रतजगे के पश्चात धानी और चने का तमाल (प्रसाद) वितरित किया जाता है।

गणगौर का निमाड़ी पारंपरिक रूप देखें- ' थारो काईं काईं रूप बखाणूँ रनुबाई/सौरठ देस सी आई हो' या 'शुक्र को तारो रे ईसर उँगी रयो तेखी मखड़ टीकी घड़ाव' । गणगौर के गीतों में मान-मनुहार, तकरार-गुमान, रीति-प्रीति, सीख-हिदायतें सभी कुछ शामिल हैं।

... और फिर न चाहते हुए भी चैत्र शुक्ल चतुर्थी को गणगौर माता बिदा होती है। सजी-धजी शोभायात्रा के साथ तालाब-बावड़ी पर श्रद्धा के साथ ज्वारे विसर्जित किए जाते हैं और फिर अगले साल आने का वादा भी लिया जाता है।

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

शरद पूर्णिमा कब है? इस दिन ये 10 कार्य करने से होगा नुकसान

Vakri guru : गुरु वक्री होकर बदल देंगे इन 4 राशियों का भाग्य, नौकरी और व्यापार में होगा लाभ ही लाभ

करवा चौथ 2024 : आपके शहर में कब निकलेगा चांद, जानिए सही टाइम

Guru Pushya Nakshatra 2024: 24 अक्टूबर 2024 को गुरु पुष्य नक्षत्र के साथ 2 अत्यंत शुभ योग, जानें क्या करें

Hanuman ji: क्या हनुमान जी प्रकट होने वाले हैं?

सभी देखें

धर्म संसार

Aaj Ka Rashifal: 14 अक्टूबर का दैनिक राशिफल, जानें कैसा बीतेगा आज आपका दिन

14 अक्टूबर 2024 : आपका जन्मदिन

14 अक्टूबर 2024, सोमवार के शुभ मुहूर्त

16 या 17 अक्टूबर 2024 कब है शरद पूर्णिमा, जानें खीर खाने का महत्व

Karva Chauth 2024: करवा चौथ पर इन चीज़ों की खरीद मानी जाती है शुभ