व्रतों में श्रेष्ठतम एकादशी व्रत

भगवती एकादशी का व्रत

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- डॉ. नारायण तिवार ी

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एक माह में कम से कम दो दिन तो हम अपने देह, चित्त दोनों को विश्राम दें, दसों इंद्रियों और उनके स्वामी मन को आहार, निद्रा, भय, मैथुन की पाशविक वृत्तियों से ऊपर उठकर स्वयं अपने बारे में विचार करें। एकादशी का व्रत सनातन धर्म की अपनी विशिष्टता है। हम भी इसके पौराणिक पक्ष पर विचार करें और उसके वैज्ञानिक, व्यावहारिक और स्वास्थ्य वाले पक्ष पर भी।

1. कूर्म पुराण का मत है कि-
व्रतोपवासैर्नियमे होमे, ब्राह्मण तर्पणैः
तेषां वै रूद्र सायुज्य, जायते तत्प्रसादयतः ।
अर्थात व्रतोपवास से शिव सायुज्य की प्राप्ति होती है।

2. श्रीमद्भगद्गीता में निष्काम कर्म के प्रवक्ता जगद्गुरु भगवान श्रीकृष्ण की देशना है कि-
यज्ञ दान तपः कर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्‌ ।
अर्थात यज्ञ, दान और तप रूप कर्म का कभी भी परित्याग नहीं करना चाहिए।

शास्त्रों में तप के अंतर्गत व्रतों का विधान बताया है- और व्रतों में श्रेष्ठतम व्रत एकादशी व्रत है।

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एकादशी व्रत का प्रारंभ कैसे हुआ? भगवती एकादशी कौन है, इस संबंध में पद्म पुराण में कथा है कि एक बार पुण्यश्लोक धर्मराज युधिष्ठिर को लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण ने समस्त दुःखों, त्रिविध तापों से मुक्ति दिलाने, हजारों यज्ञों के अनुष्ठान की तुलना करने वाले, चारों पुरुषार्थों को सहज ही देने वाले एकादशी व्रत करने का निर्देश दिया।

वर्ष भर की एकादशियों के शुभ ना म
* चैत्रमास- पापमोचनी एवं कामदा एकादशी।
* वैशाख मास- वरुथिनी एवं मोहिनी एकादशी।
* ज्येष्ठ मास- अपरा एवं निर्जला (भीमसेनी) एकादशी।
* आषाढ़ मास- योगिनी एवं शयनी एकादशी।
* श्रावण मास- कामिका एवं पुत्रदा एकादशी।
* भाद्रपद मास- अजा एवं पद्मा एकादशी।
* अश्विन मास- इंदिरा एवं पापांकुशा एकादशी।
* कार्तिक मास- रमा एवं प्रबोधिनी एकादशी।
* मार्गशीर्ष- मोक्षा एकादशी, उत्पत्ति नामक एकादशी।
* पौष मास- सफला एवं पुत्रदा एकादशी।
* माघ मास- षट्तिला एवं जया एकादशी।
* फाल्गुन मास- विजया तथा आमलकी एकादशी।
* पुरुषोत्तम या अधिकमास की- कमला एवं कामदा एकादशी।

देशकाल एवं परिस्थिति के अनुसार मनुष्य मात्र को व्रत, उपवास, दान, जप, अपने इष्ट जप एवं शुद्ध हृदय से भगवती एकादशी का व्रत करना चाहिए। यथासंभव अपने इष्ट का 1100, 11000 नाम जप भी श्रेष्ठ प्रयोग है।

एक प्रयोग यह भी है कि एकादशी व्रत का पारणा किसी ब्राह्मण, दरिद्र या जरूरतमंद को भोजन कराने के बाद या उस मात्रा का अन्न दान करके ही करना चाहिए।

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