सूर्य उपासना का त्योहार छठ

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रबी फसल की बिजाई की तैयारी के खुशी में पूर्वांचल में छठ पूजा मनाई जाती है। दीपावली खत्म होने के बाद बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तरप्रदेश के लोग छठ को महापर्व के रूप में मनाते हैं। हैरानी की बात यह है कि पूर्वांचल देश और विदेश के जिस भी हिस्से में गए इस महापर्व को उसी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाते हैं। चाहे वह मुंबई हो दिल्ली, गुड़गाँव हो या फिर यूके और यूएस।

चार दिन तक चलने वाले इस पर्व में वही उत्साह और श्रद्धा देखने को मिलती है जो अन्य पर्व में देखने को मिलती है। जन-जीवन के संस्कार में रचा-बसा यह त्योहार लोगों के मन में नई उमंग का संचार करता है। इसी उमंग और श्रद्धा के साथ हजारों के तादाद में दुनिया के विभिन्न भागों में रहने वाले पूर्वांचली मनाते हैं।

वैज्ञानिक महत्व :- सूर्य उपासना का यह पर्व का धार्मिक महत्व तो है ही साथ ही इसका सामाजिक और सांस्कृतिक व वैज्ञानिक महत्व भी कमतर नहीं है। जन-जीवन के संस्कार में रचा बसा यह त्योहार लोगों के मन में नई उमंग का संचार करता है।

वैज्ञानिक राय है कि सूर्य की किरणों से ऊर्जा मिलती है, जिससे मनुष्य का जीवन संचालित होता है। ये किरणें शरीर को ऊर्जा प्रदान करने के साथ-साथ निरोगी भी रखती हैं। सूर्य को अर्घ्य देने के समय जो किरणें पानी से होते हुए हमारे शरीर पर पड़ती हैं वे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं। सूर्य से मिलने वाली विटामिन-डी भी हड्डियों को मजबूत बनाती है।

नियमों का निष्ठापूर्ण पालन :- छठ पर्व के दौरान पवित्रता और शुद्धता का खास खयाल रखा जाता है। इस समय नियमों का पालन इस हद तक होता है कि पूर्वांचली अपने घरों में लहसुन-प्याज भी नहीं बनाते। छठ की मानयता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि युवा भी इसके सारे नियमों का बाखूबी पालन करते हैं।

जन-जीवन के संस्कार में रचा-बसा छठ पर्व लोगों को दुनिया के किसी कोने से घर लौटने मजबूर कर देता है। ताकि पूरा परिवार एक साथ त्योहार में हिस्सा ले सके।

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