इस व्रत को लेकर युवतियों से लेकर महिलाओं तक में उत्साह रहता है। असल में परंपरागत भारतीय त्योहारों तथा उत्सवों का असल आकर्षण ही महिलाओं का यह उत्साह है, जो पूरे वातावरण को एक नए उजास से भर देता है।
यह व्रत कड़क उपवास की श्रेणी में आता है क्योंकि इस दिन स्त्रियां निर्जल भी रहती हैं। शाम को सुंदर वस्त्र तथा आभूषणों से सजकर सभी एक-साथ मिलकर मिट्टी से बनी शिव-पार्वती की प्रतीक प्रतिमाओं का पूजन करती हैं। हंसती-गाती हैं और रात्रि जागरण भी करती हैं।
समय के अनुसार हालांकि इस त्योहार में भी कुछ परिवर्तन हुए हैं। अब पूजन के लिए कई प्रकार की पत्तियां चुनने के लिए जरूरी नहीं कि जंगलों में जाया जाए।
आजकल बाजार में, खासतौर पर शहरों में बड़ी संख्या में ग्रामीण ढेर की ढेर पत्तियां तथा फूल लाकर बेचते हैं। यही नहीं दुकानों पर आपको एक ही पैकेट में सारी पूजन सामग्री भी मिल जाएगी। कामकाजी महिलाओं से लेकर गृहिणियों के लिए भी यह एक सुविधाजनक बात है।
मुख्य बात यह है कि इस तरह के त्योहार महिलाओं को एक-साथ मिल बैठने तथा अपना उत्साह जाहिर करने का भी मौका दे जाते हैं। जाहिर है कि परंपरागत रूप से इस व्रत को करने के कारण तथा तरीके अब भी वैसे ही हैं, हां कुछ आधुनिकता के साथ ।