21 मार्च : बहाई नववर्ष पर विशेष

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'उपवास' : बहाई समाज का प्रतीक पर्व 
 
'ईश्वर एक है, धर्म एक है, मानवता की एकता हो' - बहाई धर्म,
 
संसार में कुछ ऐसे लोग हैं जो उपरोक्त उद्देश्यों के आधार पर जीवन-यापन करते हैं अर्थात उपवास रखते व सद्कार्य करते समय सजग रहते हैं। वह मानव कल्याण उद्देश्यों को लेकर विश्व के कल्याण हेतु प्रयासरत हैं।
 
भारत वर्ष में इस समुदाय का एक प्रतीक 'कमल मंदिर' है। यह उपासना मंदिर मानवता को संदेश देता है कि मानव भौतिक जगत में रहते हुए भी कमल के फूल की भांति रहे। यह मंदिर बहाई धर्म के आधार पर बना हुआ है।
 
बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह ने 18वीं-19वीं शताब्दी में ऐसे समय में जब मानवता की दशा सोचनीय थी, अपने राजसी परिवार के सुखों व ऐशो-आराम का त्याग कर अपने जीवन में घोर कठिनाइयां सहन कीं और मानवता नवजीवन में संचारित हो सके तथा एकता की राह में आगे बढ़ सके, इसके लिए प्रयास किए।
 
उपवास एक प्रतीक है। व्रत का अभिप्राय विषय-वासना से रहित होना है। दैहिक उपवास निवृत्ति का एक स्मृति चिन्ह मात्र है अर्थात जिस प्रकार एक मनुष्य अपने पेट की वासना को रोक सकता है उसी प्रकार उसे सभी इन्द्रियों को वासनाओं को रोकना चाहिए। परन्तु केवल भोजन न करने का आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह तो प्रतीक या स्मृति मात्र है।
 
व्रत करना शरीर व आत्मा के लिए बहुत गुणकारी सिद्घ होता है। साथ ही व्रत रखने के माध्यम से ही मानव आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनता है। वैसे भी आध्यात्मिक पक्ष को मजबूत करने के विषय में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी भी मानव के आध्यात्मिक पक्ष पर जोर देने के लिए कहते थे कि : -
 
'मानव आध्यात्मिक तथा पाश्विक दोनों ही प्रकार की प्रवृत्तियों का संघात है तथा मानव के विकास की क्रिया पाश्विक से आध्यात्मिक की ओर हुआ करती है।' 
 
बहाई समाज के लोग 2 से 20 मार्च तक उपवास रखते हैं। बहाई कैलेंडर के अनुसार यह 19वां महीना होता है। उपवास रखने का वास्तविक उद्देश्य तो यही है कि हम विषय वासनाओं से दूर अहंकार से मुक्त रहते हुए, प्रभु का स्मरण करें। बाहरी तौर तरीकों से उभरकर उपवास रखें, अहम्‌ से दूर रहें तथा ईश्वर के प्रति कृतज्ञ रहें, द्वेष भावों से मुक्त हों, हर हाल में खुश रहें। सभी एकात्मकता की भावना से जुड़ें।

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