चेटीचंड : भगवान झूलेलाल का जन्मोत्सव

भगवान झूलेलाल का अवतरण दिवस

Webdunia
भारतीय धर्मग्रंथों में कहा गया है कि जब-जब अत्याचार बढ़े हैं, नैतिक मूल्यों का क्षरण हुआ है तथा आसुरी प्रवृत्तियां हावी हुई हैं, तब-तब किसी न किसी रूप में ईश्वर ने अवतार लेकर धर्मपरायण प्रजा की रक्षा की। संपूर्ण विश्व में मात्र भारत को ही यह सौभाग्य एवं गौरव प्राप्त रहा है कि यहां का समाज साधु-संतों के बताए मार्ग पर चलता आया है।

ऐसी ही एक कथा भगवान झूलेलालजी के अवतरण की है। शताब्दियों पूर्व सिन्धु प्रदेश में मिर्ख शाह नाम का एक राजा राज करता था। राजा बहुत दंभी तथा असहिष्णु प्रकृति का था। सदैव अपनी प्रजा पर अत्याचार करता था।

इस राजा के शासनकाल में सांस्कृतिक और जीवन-मूल्यों का कोई महत्व नहीं था। पूरा सिन्ध प्रदेश राजा के अत्याचारों से त्रस्त था। उन्हें कोई ऐसा मार्ग नहीं मिल रहा था जिससे वे इस क्रूर शासक के अत्याचारों से मुक्ति पा सकें।

FILE


लोककथाओं में यह बात लंबे समय से प्रचलित है कि मिर्ख शाह के आतंक ने जब जनता को मानसिक यंत्रणा दी तो जनता ने ईश्वर की शरण ली।

सिन्धु नदी के तट पर ईश्वर का स्मरण किया तथा वरुण देव उदेरोलाल ने जलपति के रूप में मत्स्य पर सवार होकर दर्शन दिए। तभी नामवाणी हुई कि अवतार होगा एवं नसरपुर के ठाकुर भाई रतनराय के घर माता देवकी की कोख से उपजा बालक सभी की मनोकामना पूर्ण करेगा।

समय ने करवट ली और नसरपुर के ठाकुर रतनराय के घर माता देवकी ने चैत्र शुक्ल 2 संवत्‌ 1007 को बालक को जन्म दिया एवं बालक का नाम उदयचंद रखा गया। इस चमत्कारिक बालक के जन्म का हाल जब मिर्ख शाह को पता चला तो उसने अपना अंत मानकर इस बालक को समाप्त करवाने की योजना बनाई।

FILE


बादशाह के सेनापति दल-बल के साथ रतनराय के यहां पहुंचे और बालक के अपहरण का प्रयास किया, लेकिन मिर्ख शाह की फौजी ताकत पंगु हो गई। उन्हें उदेरोलाल सिंहासन पर आसीन दिव्य पुरुष दिखाई दिया। सेनापतियों ने बादशाह को सब हकीकत बयान की।

उदेरोलाल ने किशोर अवस्था में ही अपना चमत्कारी पराक्रम दिखाकर जनता को ढांढस बंधाया और यौवन में प्रवेश करते ही जनता से कहा कि बेखौफ अपना काम करें। उदेरोलाल ने बादशाह को संदेश भेजा कि शांति ही परम सत्य है। इसे चुनौती मान बादशाह ने उदेरोलाल पर आक्रमण कर दिया।

बादशाह का दर्प चूर-चूर हुआ और पराजय झेलकर उदेरोलाल के चरणों में स्थान मांगा। उदेरोलाल ने सर्वधर्म समभाव का संदेश दिया। इसका असर यह हुआ कि मिर्ख शाह उदयचंद का परम शिष्य बनकर उनके विचारों के प्रचार में जुट गया।

FILE


उपासक भगवान झूलेलालजी को उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसांईं, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि नामों से पूजते हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता के निवासी चैत्र मास के चन्द्रदर्शन के दिन भगवान झूलेलालजी का उत्सव संपूर्ण विश्व में चेटीचंड के त्योहार के रूप में परंपरागत हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।

चूंकि भगवान झूलेलालजी को जल और ज्योति का अवतार माना गया है, इसलिए काष्ठ का एक मंदिर बनाकर उसमें एक लोटी से जल और ज्योति प्रज्वलित की जाती है और इस मंदिर को श्रद्धालु चेटीचंड के दिन अपने सिर पर उठाकर, जिसे बहिराणा साहब भी कहा जाता है, भगवान वरुणदेव का स्तुति गान करते हैं एवं समाज का परंपरागत नृत्य छेज करते हैं।

यह सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है। झूलेलाल उत्सव चेटीचंड, जिसे सिन्धी समाज सिन्धी दिवस के रूप में मनाता चला आ रहा है, पर समाज की विभाजक रेखाएं समाप्त हो जाती हैं।

- नरेश किशनानी

वेबदुनिया पर पढ़ें

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

मार्गशीर्ष अमावस्या पर पितरों को करें तर्पण, करें स्नान और दान मिलेगी पापों से मुक्ति

जानिए क्या है एकलिंगजी मंदिर का इतिहास, महाराणा प्रताप के आराध्य देवता हैं श्री एकलिंगजी महाराज

Saturn dhaiya 2025 वर्ष 2025 में किस राशि पर रहेगी शनि की ढय्या और कौन होगा इससे मुक्त

Yearly Horoscope 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों का संपूर्ण भविष्‍यफल, जानें एक क्लिक पर

Family Life rashifal 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों की गृहस्थी का हाल, जानिए उपाय के साथ

सभी देखें

धर्म संसार

01 दिसंबर 2024 : आपका जन्मदिन

धनु संक्रांति कब है क्या होगा इसका फल?

01 दिसंबर 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

01 दिसंबर 2024 को सुबह एक ही समय नजर आएंगे चांद और सूरज

शनि प्रकोप से मुक्ति के लिए उपाय