सुबह की शुरुआत प्राणायाम के साथ कीजिए, सांसों को साध लीजिए

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प्राणायाम अष्टांग योग का चौथा अंग है। जब तक शरीर में प्राणवायु है तब तक ही आयु है। प्राचीन ऋषि वायु के इस रहस्य को समझते थे तभी तो उन्होंने बढ़ती उम्र को रोक देने का शॉर्ट कट निर्मित किया। श्वास को लेने और छोड़ने के दरमियान घंटों का अंतराल प्राणायाम के अभ्यास से ही संभव हो पाता है। कछुए की सांस लेने और छोड़ने की गति इंसानों से कहीं अधिक दीर्घ है। व्हेल मछली की उम्र का राज भी यही है। प्राणायम के माध्यम से आपने यदि सांसों को साथ लिया तो आपकी आयु भी बढ़ जाएगी और कभी कोई रोग नहीं होगा। आओ जानते हैं कि कैसे साधें सांसों को।
 
 
सुबह की शुरुआत अनुलोम विलोम से करें: प्राणायाम करते समय 3 क्रियाएं करते हैं- 1.पूरक, 2.कुंभक और 3.रेचक। अनुलोम विलोम में कुंभक नहीं करते हैं। मतलब श्वास लेना और छोड़ना होता है। श्वास लेने की क्रिया को पूरक और श्वास छोड़ने को रेचक कहा जाता है। श्वास अंदर रोकने की क्रिया को कुंभक कहते हैं। अंदर रोके या श्वास बाहर छोड़कर रोक लें। रोकने की क्रिया करते हैं तो नाड़िशोधन प्राणायाम होगा। फेफड़ों के भीतर वायु को नियमानुसार रोकना, आंतरिक और पूरी श्वास बाहर निकालकर वायुरहित फेफड़े होने की क्रिया को बाहरी कुंभक कहते हैं। अनुलोम विलोम में हमें श्वास को रोकना नहीं है बस नियम से लेना और छोड़ना है।
 
कैसे करें अनुलोम और विलोम?
 
1. सबसे पहले आसन पर आलकी-पालकी मारकर शुद्ध वायु में बैठ जाएं। 
 
2. इसके बाद दाएं अंगूठे से अपनी दाहिनी नाक को बंद करें। इस दौरान तर्जनी अंगुली को अंगूठे के नीचे के हिस्से पर हल्के से दबाकर रखें।
 
3. अब बाईं नासिका से श्वास को भीतर तक खींचे और फिर अनामिका अंगुली से बाईं नासिका को बंद करके अंगूठे को दाईं नासिका से हटाकर श्वास छोड़ दें।
 
4. अब दाईं नासिका से श्‍वास को भीतर तक खींचे और फिर अंगूठे से दाईं नासिका बंद करने के बाद अनामिका अंगुली को बाईं नासिका से हटाकर श्वास छोड़ दें।
 
5. अब बाईं नासिका से श्वास को भीतर तक खींचे और फिर अनामिका अंगुली से बाईं नासिका को बंद करके अंगूठे को दाईं नासिका से हटाकर श्वास छोड़ दें।
 
 
अवधि : इसी प्रक्रिया को कम से कम 5 मिनट तक दोहराते रहें। मतलब बाईं नाक से श्वास लेकर दाईं से छोड़ना और दाईं से श्वास लेकर बाईं से छोड़ना। यही अनुलोम विलोम प्राणायाम है।
 
इसके 10 फायदे :  
1. इससे तनाव, चिंता और अवसाद घटता है और शांति मिलती है।
 
2. यह मस्तिष्क और फेंफड़ों में ऑक्सिजन का लेवल बढ़ा देता है।
 
3. इसे नियमित करने से नेत्र ज्योति बढ़ती है
 
4. इससे रक्त संचालन सही बना रहता है। 
 
5. मस्तिष्क के सभी विकारों को दूर करने में यह प्राणायम सक्षम है।
 
6. फेंफड़ों में जमा गंदगी बहार होती है और फेंफड़े मजबूत बनते हैं।
 
7. अनिद्रा रोग में यह प्राणायाम लाभदायक है।
 
8. इस प्राणायाम को करते समय यदि पेट तक श्वास खींची जाए तो यह पाचन क्रिया को मजबूत बनाता है। डाइजेशन सही होता है।
 
9. इससे नकारात्मक चिंतन से चित्त दूर होकर आनंद और उत्साह बढ़ जाता है। 
 
10. अस्थमा, एलर्जी, साइनोसाइटिस, पुराना नजला, जुकाम आदि रोगों में भी यह प्राणायाम लाभदायक सिद्ध हुआ है। 

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