जैव विविधता के खतरे, मूल्य और संरक्षण

Webdunia
सोमवार, 12 जून 2017 (15:10 IST)
डॉ. साधना सुनील विवरेकर
इस पृथ्वी पर करोड़ों अरबों वर्ष पूर्व जीवों की उत्पति हुई। पृथ्वी पर ही वह वातावरण उपस्थित है जिसके कारण जीवों का अस्तित्व संभव है। ऑक्सीजन, जल, तापमान, आद्रता, मिट्टी, प्रकाश सब कुछ संतुलित मात्रा में पृथ्वी पर उपलब्ध है। जिसके कारण जीवन संभव हो सका, विभिन्न जीवों का, फिर चाहे वह पौधे हों या वृक्ष, पशु हो या पक्षी, बैक्टीरिया वायरस हों या मनुष्य, सभी का विकास हुआ और एक दूसरे के सहअस्ति‍व से पारिस्थितिक चक्र से, ऊर्जा प्रवाह से बरसों से सबका जीवन चलता रहा। पृथ्वी पर पाए जाने वाले समस्त जीवों में (पेड़, पौधे, पशु-पक्षी मानव) पारस्परिक विभिन्नता पाई जाती है। यह जैवविविधता स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर होती है, जो उस स्थान की जलवायु, तापक्रम, आद्रता मिट्टी व प्रकाश की उपलब्धता इत्यादि द्वारा निर्धारित होती है।
 
पृथ्वी पर होने वाले भौतिक व रासायनिक परिवर्तनों, विभिन्न खगोलीय घटनाओं व उत्परिवर्तन इत्यादि द्वारा जीवों का विकास हुआ व उनमें विविधता विकसित होती गई। सर्वप्रथम उत्पन्न होने वाले जीव एक कोषीय थे, जिनके विकास के विभिन्न चरणों को पार करने पर बहुकोषीय व अत्यंत जटिल संरचना वाले जीवों का विकास हुआ। हरे पौधों के जन्म से विकास की नई इबारत प्रारंभ हुई और आज भी वही सोलर ऊर्जा को परिवर्तित कर हम सबके लिए भोजन निर्माण करने का कार्य करते हुए इस पारिस्थिति‍की तंत्र का आधार स्तंभ हैं। उनके बगैर हम सबका जीवन एक क्षण भी संभव नहीं क्योंकि वे ही हमारे लिए भोजन, जल व प्राणवायु को सतत प्रदान करते है। इन पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं की जितनी विभिन्न प्रजातियां होंगी, उनकी उपयोगिता मानव जीवन के लिए उतनी अधिक होगी। क्योंकि यह सब मात्र भोजन ही नहीं बल्कि फल, फूल, औषधी, लकड़ी, मसाले, जन्म से मृत्यु तक की हर उपयोगी व आवश्यक वस्तुएं प्रदान करते हैं। 
 
मानव को टेक्नोलॉजी व मशीनों के विकास के साथ इन जीवित प्राणियों का उनकी विविधता का मोल समझना होगा व इनके संरक्षण के उपाय स्वहित में ढूंढने होंगे। प्रकृति ने जैवविविधता के रूप में जो अपार प्राकृतिक संपदा दी है, पेड़-पौधों व हर प्राणी मात्र में विभिन्न प्रजातियां व उनमें विविधता निर्मित की है, उसे बचाने हेतु बनाए रखने के प्रयास करने होंगे। तभी गेहूं-चावल से लेकर आम, अनार तक व गुलाब, गेंदे से लेकर गुलमोहर, अमलतास, तक और चींटी से लेकर हाथी व सांप से लेकर शेर तक की विभिन्न प्रजातियां सुरक्षित होंगी। हमारे विकास की कीमत ये निरीह मासूम व बेगुनाह उठाते रहे हैं।
 
हमने अपने विकास के लिए इनके आवासों को छीना, प्रकृति, निर्मित भाजन श्रृखंला में व्यवधान डाल इनसे भोजन छीनकर इनके जीने का आधार छीनने का पाप किया है, जिससे हमारे जीवन को भी क्षति पहुंच रही है।
 
जैव विविधता का खतरा -
मानव ने अपने विकास के लिए, औद्योगिकीकरण के लिए असंख्य प्राणियों व पेड़-पौधों को नष्ट कर दिया जिसके मुख्य कारण निम्न है -
 
(1) आवासीय क्षति - जनसंख्या में अत्याधिक वृद्धि, बढ़ता शहरीकरण औद्योगिकीकरण वनों के विनाश के कारण बने, जिनके उजड़ने से हजारों पशु पक्षियों व प्राणियों का बसेरा ही खत्म हो गया व इस प्रकार उनका अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया। कई प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर है या लुप्त हो चुकी है।
 
(2) वन्यजीवन का अवैधानिक शि‍कार - हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए (जैसे - भोजन व अन्य) तो प्राकृतिक संपाद अपार है, पर हमारे स्वार्थ व लालच के आगे सींग, नाखून, चमड़ा हाथी दांत, जैसी वस्तुओं के बहुमुल्य होने से इन्हें प्राप्त करने के लालच व उनसे पैसा कमाने की चाहत की बली ये मजबूर असहाय मासूम जानवर अपनी जान देकर चुका रहे है। प्रतिबंधित होने पर भी इनका शि‍कार बरसों से हो रहा है व हिरण बाध बारहसिंगा सबकुछ खत्म होने की कगार पर हैं। कालाहिरण, मगर, कछुए, विषहीन सर्प, सूअर, शेर, बाघ, चीता हो या पक्षियों की प्रजातियां लुप्त हो रही है जिनका संरक्षण आवश्यक है।
 
(3) मानव वन्य जीवन संघर्ष - वर्तमान समय में वनों की अवैध कटाई घास स्थलों का, चारागाह स्थलों का रूपांतरण कई समस्यों का कारण है -
कृषि व अन्य कारणों से रासायनिक खादों व कीटनाशकों के प्रयोग ने पर्यावरण प्रदूषण के साथ सूक्ष्म जीवों को भी लुप्त कर दिया है। अतः विकास की हदें तय करने व लाभ के लिए वन्य जीवन को खतरे में न डालने के संकल्प तथा विकास व वन्य जीवन के बीच संतुलन बनाए रखन से ही मनुष्य वन्यजीव संघर्ष विवाद का हल संभव है।
 
(4) सड़क व रेलमार्गों के लिए वनस्पति व प्राणियों को उजाड़ा जाना।
(5) कृषि भूमि का आवासीय क्षेत्रों में परिवर्तन।
(6) उद्योगों के लिए वनों व चारागाहों का उन्मूलन।
(7) वन्य प्राणियों को भोजन, सजावट की वस्तुओं व बाजार मूल्य की अधिकता के कारण मारना।
विभिन्न जातियों का विलुप्त या संकटापन्न होना रोकना होगा।
 
शहरीकरण औद्योगिकीकरण, जनसंख्या वृद्धि, वनों का विनाश व वन्य जीव जात के आवास स्थलों के खत्म होने के परिणामस्वरूप संसार में जीव जात की अनेक प्रजातियां प्राणी एवं पेड़-पौधों या तो विलुप्त हो चुके हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं। विलुप्त प्रजाति का पुर्ननिर्माण असंभव है, अतः उसका उसके प्राकृतिक आवास में संरक्षण आवश्यक है इस हेतु अंर्तराष्ट्रीय संघ ने 1984 में रेड डाटा बुक का प्रकाशन किया व संकटापन्न प्रजातियों की विभिन्न श्रेणियों में विभाजन किया।
 
1 संकटापन्न प्रजातियां - प्राकृतिक आवास नष्ट होने से प्रजनन की स्थिति समाप्त सी हो गई है जिससे विलुप्त होने की संभावना बढ़ गई है।
उदा. भारतीय सोन चिड़िया, शेर, गेंडा।
 
2  दुर्लभ जातियां - ऐसी वन्य प्रजातियां जो अब केवल विशिष्ट भू-भाग या सीमित क्षेत्र में ही रह गई हैं ।
उदा. सफेद शेर, भारत में केवल बांधवगढ़ में ही रह गया है।
 
3  संकटमयी प्रजातियां - प्राकृतिक आवास नष्ट होने से विलुप्त होने की स्थिति में पहुंच चुकी हैं ।
 
4  विलुप्त प्रजातियां - किसी समय पाई जाती थीं, लेकिन पर्यावरण व प्राकृतिक संपदा के कारण से लुप्त हो चुकी हैं। उनके होने के प्रमाण जीवाश्म के रूप में ही उपलब्ध हैं। उदा. आर्कियोप्टेरिक्स, ट्राइलोबाईट।
 
5 प्रहार सुलभ प्रजातियां - वे प्रजातियां जो कुछ ही वर्षो में विलुप्त होने में है क्योंकि दिन-प्रतिदिन इनकी संख्या तेजी से घट रही है। उदा. चीता, काला हिरण, सारस, तितली (कुछ प्रजातियां)।


जैव विविधता की कीमत या मूल्य -
इस पृथ्वी पर जीवन को चलाए रखने के लिए प्रकृति ने सभी जैविक घटकों के बीच परस्पर संबंध बनाया है, जो भोजन श्रृंखला व ऊर्जा प्रवाह को बनाए रखते हुए सभी के लिए भोजन, हवा पानी की व्यवस्था करता है। प्रकृति के जैविक व अजैविक घटकों का परस्पर संबंध ही इकोसिस्टम को सुचारू रूप से चला प्राकृतिक चक्रों जैसे ऑक्सीजन, पानी, कार्बनडाइ आक्साइड व नाइट्रोजन इत्यादि को सफलता से संचालित करते हुए वर्षो से इनकी सांद्रता को संतुलित बनाता है। पृथ्वी पर जल चक्र पानी के रूप में अमृत बरसाता है। कार्बन डाइ आक्साइड पौधों द्वारा ली जाकर भोजन निर्माण के साथ प्राणदायी ऑक्सीजन की प्रचुर मात्रा वातावरण में सम्मिलित होती है। नाइट्रोजन चक्र से शरीर उपयोगी अमिनों एसिड्स व प्रोटीन्स का निर्माण होता है। इस प्रकार प्रकृति का हर घटक चाहे वह जीवित हो जैसे - पौधे, पशु, पक्षी, जंतु-जानवर या इंसान या अजीवित जैसे- समस्त तत्व व उनका चक्र तथा सौर ऊर्जा का प्रवाह, सब कुछ प्रकृति का प्रबंधन है जिसके लिए जैव विविधता अत्यंत आवश्यक है। जैव विविधता का मूल्य निम्न प्रकार से समझा जा सकता है - 
 
(1) मनुष्य के उपयोग के लिए - मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक व प्रतिदिन सुबह से लेकर शाम तक हर उपयोगी वस्तु पेड़-पौधे, जीव जंतुओं द्वारा ही प्रदत्त की जाती है। भोजन, फल, फूल, सब्जी से लेकर हर औषधी, लकड़ी, चारा, मछली सबकुछ विभिन्न जीवों द्वारा ही प्रदान होते हैं।
 
(2) उत्पादकीय उपयोग - मनुष्य द्वारा विभिन्न पेड़-पौधे व जीव जंतुओं द्वारा उत्पादित वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। जड़ी-बूटियों, लाख, गोंद, अनाज दूध ऊन इत्यादि इन्हीं जीव जंतुओं व पौधों से प्राप्त होते हैं, जो मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए नष्ट करता आया है।
 
(3) सामाजिक उपयोग - सदियों से हमारी संस्कृति के रीति-रिवाजों में विभिन्न पेड़-पौधों व पशुओं को पूजने की उनका आभार मानने की परंपरा है जिससे उनके प्रति श्रद्धा व दया का भाव विकसित हो उनका संरक्षण हो सकें।
 
भौतिक मूल्य - हमारे पौराणिक ग्रंथों व पंचतंत्र तथा जंगल बुक जैसे पुस्तकों के माध्यम से हमे पेड़-पौधों व जीव-जंतुओं की कहानियों से जीवन मूल्य प्रतिस्थापित करने में आसानी हुई है। वृक्षों से दृढ़ता व दान का पाठ सीखने को मिलता है जो हमें छाया देते हैं, अपने फल-फूल उदारता से देते हैं। हिरण चपलता का, शेर साहस निडरता व शक्ति का, कुत्ता वफादारी का प्रतीक माना जाता है, चिड़िया परवरिश का उदा. समझाती है जो समय आने पर बच्चों को उड़ने की स्वतंत्रता सहजता से देती है।
 
सौन्दर्यगत मूल्य - सभी तरह के पेड़-पौधे अपने सुंदर, रंगीन व सुगंधी फूलों के कारण हमारे आंगन में हरियाली के साथ मन को प्रसन्नता से भर सकने की क्षमता रखते हैं। हमारे बाग-बगीचे, घर आंगन, सड़के सभी इनके कारण सुंदरता बिखेरते हैं। पक्षियों की विविधता उनके सुंदर पंखों से है, तो कोयल की कूक व चिड़िया की चहचहाट पपीहे की पी मनुष्य को तनावमुक्त कर प्रसन्नता व सुख से भर देती है जो पैसे से खरीदा नहीं जा सकता। अतः जैव विविधता हमारे जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी ही नहीं आवश्यक भी है।
 
स्वहित में हो संक्षरण - जैव विविधता का -
जैव विविधता के संरक्षण के लिए हमें अपने स्वंय के हित में मानसिकता विकसित करनी होगी। वैज्ञानिकों के अनुसार विश्व में विभिन्न जीव व पेड़-पौधों की संख्या 1.5 से 20 करोड़ तक हो सकती थी, जो प्रतिवर्ष तेजी से घट रही है इसके संरक्षण के लिए दो प्रकार के उपाय है।
 
1 - स्थानास्थ - राष्ट्रीय उद्यानों व अभ्यारणों द्वारा जैव मण्डल आरक्षण स्थलों द्वारा ।
2 - बहि स्थानास्थ - जीन बैकों, बीज बैंक व इनविट्रो विधी द्वारा।
परंतु इनके आलावा हमारे दिन प्रतिदिन के प्रयास ही जैव विविधता को संरक्षित कर सकते हैं।
1 - वनों का पौधों का पेड़ों का विनाश रोकना।
2 - जलवायु अनुसार अधिक से अधिक वृक्षारोपण व उससे भी महत्वपूर्ण उनका संरक्षण।
3 - उपलब्ध जल संसाधनों का किफायती उपयोग।
4 - मरूस्थलीय क्षेत्रों को सिचिंत कर उन्हें उपजाऊ व हरा-भरा बनाने के प्रयास।
5 - खदानों के अनियंत्रित खनन पर पाबंदी।
6 - चारागाह क्षेत्रों में अनियंत्रित पशु चारण पर रोक लगे।
7 - कृषि भूमि का भरपूर उपयोग हो रोटेश्नल फसल लगाकर।
8 - खनिज पदार्थों की किफायती उपयोग।
9 - नदियों व जलाशयों में विषैले रसायनिक पदार्थो का मिलना प्रतिबंधित हो क्योंकि जीव-जंतुओं मछलियों की जान तो जाती ही है।
मनुष्य में भी कई गंभीर बीमारियां जन्म लेती हैं।
10 - जल के महत्व को समझ उसका किफायती उपयोग।
11 - सभी प्राकृतिक संसाधनों चाहे वह सोना चांदी हो या पेट्रोल, पेड़-पौधे हो या पानी का महत्व समझ उनके संरक्षण की मानसिकता विकसित करनी होगी।
 
यह प्राकृतिक संपदा अपार है इसे प्रकृति ने हमारे ही हित के लिए निर्मित किया है लेकिन इसका मोल समझने की समझदारी हमें ही विकसित करनी होगी तभी इस सुंदर अप्रतीम अदभुत प्रकृति का आनंद हम स्वंय भी उठा पाएंगे व आने वाली पीढ़ियों को सुख सुकून भरे जीवन की विरासत दे पाएंगें जो हमारा सर्वोपरी कर्तव्य है। इस धरती पर जीने का, बसने का, अपनी प्रजाति को विकसित करने का हक हर जीव का व उसकी हर प्रजाति का है, जब यह हम समझ लेंगे तो जैव विविधता बनी रहेगी। इसी में हमारा सच्चा विकास व प्रगति है।
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