क्या राजस्थान में इस बार टूट जाएगी 30 साल पुरानी परंपरा?

वृजेन्द्रसिंह झाला
Rajasthan Assembly Elections 2023 : राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023, मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे, चिरंजीवी योजना, भाजपा, कांग्रेस, राजस्थान विधानसभा चुनाव में 1993 से ऐसी परंपरा बन गई है कि यहां की जनता किसी भी राजनीतिक दल को दोबारा सत्ता में आने का मौका नहीं देती।

प्रत्येक चुनाव के बाद यहां सत्ता बदल जाती है। दिसंबर 1993 में भाजपा नेता स्व. भैरोंसिंह शेखावत मुख्‍यमंत्री बने थे। इसके बाद एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस का सत्ता में आने का सिलसिला चल पड़ा, जो कि 2018 तक सतत जारी रहा। हालांकि राज्य के सभी विधानसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस का ही पलड़ा भारी रहा है। 
 
राज्य में 1977 (जनता पार्टी), 1990, 1993, 2003 और 2013 में भाजपा की सरकार बनी थी, बाकी सभी चुनाव में कांग्रेस अपनी सरकार बनाने में सफल रही थी। 2023 में भी कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुकाबला है। वर्तमान में राज्य में अशोक गहलोत नीत कांग्रेस की सरकार है। लेकिन, पिछड़े 5 चुनावों का आंकड़ों का आकलन करें भाजपा भारी दिखाई दे रही है। 
 
वसुंधरा ने दिलवाई बढ़त : चुनाव प्रचार के शुरुआत दौर में देखें तो भाजपा पिछड़ती हुई दिख रही थी, लेकिन वसुंधरा राजे को सामने लाने के बाद भाजपा बढ़त बनाने की स्थिति में आ गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्‍डा और वसुंधरा की रैलियों का असर भी लोगों पर दिखाई दिया। दूसरी ओर कांग्रेस को अशोक गहलोत और सचिन पायलट की तकरार का नुकसान होता दिखा। हालांकि गहलोत की हेल्थ स्कीम चिरंजीवी योजना को लेकर लोगों में कांग्रेस के प्रति रुझान नजर आया। 
 
जयपुर के वरिष्ठ पत्रकार कल्याण सिंह कोठारी ने वेबदुनिया से बातचीत में बताया कि राजस्थान में पलड़ा तो भाजपा का ही भारी दिखाई दे रहा है, लेकिन मुकाबला एकतरफा नहीं है। परिणाम कुछ भी हो सकता है। सरकार बनाने में निर्दलीय और राजनीतिक दलों के बागी अहम भूमिका निभा सकते हैं। 
 
कोठारी कहते हैं कि इसमें कोई संदेह नहीं कि पूर्व मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे को फ्रंट में लाने के बाद भाजपा मजबूत हुई है। हालांकि वे इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रयोग की गई भाषा का पार्टी को नुकसान भी हो सकता है। यदि निर्दलीय और बागी चुनाव जीतते हैं तो भाजपा उन्हें आसानी से अपने पक्ष में कर लेगी क्योंकि भगवा पार्टी का 'वार्गेनिंग पॉवर' ज्यादा अच्छा है।
चुनाव प्रचार के दौरान दोनों ही दलों ने एक दूसरे को जमकर निशाना बनाया। भाजपा ने जहां लाल डायरी, पेपर लीक घोटाला और महिला अपराध जैसे मामलों को प्रमुखता से उठाया, वहीं कांग्रेस ने हेल्थ स्कीम को प्रमुखता के साथ लोगों के सामने रखा। वरिष्ठ पत्रकार कोठारी भी स्वीकार करते हैं कि ग्रामीण इलाकों में अशोक गहलोत सरकार की हेल्थ स्कीम का ज्यादा जोर है। इसका कांग्रेस को फायदा मिल सकता है। 
 
उन्होंने कहा कि चूंकि घोषणा पत्र में गहलोत ने चिरंजीवी योजना की राशि 25 लाख से बढ़ाकर 50 लाख करने की घोषणा की है, इसका लाभ उन्हें मिलेगा। किसानों को 2 लाख रुपए तक बिना ब्याज ऋण का दांव भी चल सकता है। 7 गारंटियां भी लोगों को लुभा रही हैं। लेकिन, पेपर लीक घोटाला, भ्रष्टाचार और रेप का मुद्दा जिस तरह से भाजपा ने चुनाव में उठाया है, उसका कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। कुल मिलाकर मुकाबला कड़ा है, परिणाम कुछ भी हो सकता है। 
 
क्या कहते हैं पिछले 5 चुनावों के आंकड़े : दूसरी ओर, पिछले 5 चुनावों के वोटिंग प्रतिशत पर नजर डालें तो रुझान भाजपा के पक्ष में ही दिखाई दे रहा है। दरअसल, जब-जब वोटिंग कम होती है तो उसका फायदा कांग्रेस को मिलता है, जबकि ज्यादा वोटिंग से परिणाम भाजपा के पक्ष में जाता है। वर्ष 2003 में राज्य में 67.18 फीसदी वोटिंग हुई थी, तब भाजपा की सरकार बनी थी। 2008 में मतदान 66.25 प्रतिशत हुआ था, जो कि 2003 के मुकाबले कम था। उस समय राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी थी।
 
वर्ष 2013 में वोट प्रतिशत बढ़कर 75.04 हो गया। एक बार फिर राज्य में भाजपा की सरकार बनी। 2018 वोटिंग प्रतिशत घटकर 74.06 हुआ तो राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। वर्ष 2023 में 75.45 प्रतिशत वोटिंग हुई, जो कि अब तक की सर्वाधिक है। इस बार के आंकड़े भाजपा के पक्ष में दिखाई दे रहे हैं, लेकिन इस पर अंतिम मुहर तो मतदाता ही लगाएगा। हमें इसके लिए 3 दिसंबर का ही इंतजार करना होगा।

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