हर बार की तरह इस बार भी रक्षाबंधन का त्योहार आया है, लेकिन हर कोई इस खुशी को अपनी तरह से महसूस कर रहा होगा। किसी का भाई या बहन उसके पास होंगे तो किसी के नहीं होंगे। आइए जानते हैं, रक्षाबंधन की यह कहानी, कुछ सितारों की जुबानी। बॉलीवुड और टेलीविजन के चर्चित सितारे इस बार कैसे यह त्योहार मनाएँगे।
छवि हुसैन रक्षाबंधन का त्योहार मेरे लिए हमेशा से कुछ खास रहा है। मैं अपने घर में सबसे छोटी हूँ और अपने दोनों बड़े भाइयों की लाडली भी। ए क
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भाई मुझसे साढ़े सात साल और दूसरा साढ़े छ: साल बड़ा है। दोनों बड़े भाई मेरे लिए हमेशा से पिता के समान रहे हैं। वैसे ही मेरा ख्याल रखते हैं, और मेरी जिद भी पूरी करते हैं। इस रक्षाबंधन पर वो मेरे पास नहीं होंगे। मैं यहाँ मुंबई में हूँ और वे दिल्ली में। लेकिन मैंने उन्हें बहुत प्यार से राखी भेजी है। हमारे बीच बहुत गहरा और आत्मीय रिश्ता है। वे मुझसे बहुत प्यार करते हैं। मुझे याद है कि जब मैं छोटी थी तो मुझे हाजमोला बहुत पसंद था और मेरा भाई हर रक्षाबंधन पर मुझे गिनकर 12 हाजमोले दिया करता है। बचपन की वह निश्चिंत दुनिया अब कहाँ ।
सूरज थापर
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मेरी तीनों बहनें मुझसे काफी बड़ी हैं और बिल्कुल माँ समान भी। इस रक्षाबंधन पर शायद बहुत समय बाद मुझे अपनी तीनों बहनों के हाथों से राखी बँधवाने का सौभाग्य मिलने वाला है। तीनों ने मिलकर कोई प्लान बनाया है, और इस रक्षाबंधन पर हमारा पूरा परिवार एक जगह पर इकट्ठा हो रहा है। मेरी बहनें मुझसे इतनी बड़ी हैं कि उन्होंने ही मुझे माँ की तरह पाल-पोसकर बड़ा किया है। राखी का त्योहार दिल से जुड़ा हुआ है। मेरी बहनें मुझे बहुत प्यार करती हैं। राखी के दिन माँ हमेशा सुबह-सुबह हलुआ बनाती हैं। घर में पूजा का माहौल होता है। यह रक्षाबंधन मेरे लिए कुछ खास होने वाला है ।
मालिनी कपूर बचपन में मुझे रक्षाबंधन का हमेशा बहुत बेसब्री से इंतजार होता था। मेरे कजिन भाई थे। सुबह-सुबह ही हम उनके घर राखी बाँधने के लि ए
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पहुँच जाया करते थे और जितनी देर टीका लगाने, राखी बाँधने में लगता, हमें लगातार अपने गिफ्ट की बेचैनी रहती थी। रक्षाबंधन पर हमेशा कपड़े, पैसे मिठाइयाँ और ढेर सारा गिफ्ट मिलता था। वैसे मुझे लगता है कि सिर्फ भाई और बहन का ही क्यूँ, बहनों का भी कोई त्योहार होना चाहिए। जिनके भाई नहीं होते, उन्हें कितना बुरा लगता होगा। इसलिए बहनों का भी एक त्योहार होना चाहिए।
तरुण खन्ना
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मेरी बहनें दिल्ली में हैं और मैं यहाँ मुंबई में। रक्षाबंधन पर वह अपने हाथों से मुझे राखी नहीं बाँध पाएँगी, लेकिन उनकी राखियाँ और कार्ड मेरे पास आ गए हैं। जब मैं दिल्ली में था, तब वह अपने हाथों से मुझे राखी बाँधा करती थीं। रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के रिश्ते और उनके प्यार का प्रतीक है। शायद यह सबसे खूबसूरत त्योहार है। बचपन में तो हमें हमेशा बहुत बेसब्री से इस त्योहार का इंतजार रहता था। जो बहनें मुझसे बड़ी थीं, वह बिल्कुल माँ की तरह थीं। छोटी बहनों का बहुत ख्याल रहता था और जो बराबर की थीं, वो बिल्कुल दोस्त जैसी थीं। हालाँकि लड़ाई-झगड़े भी खूब होते थे, लेकिन उतना ही गहरा प्यार भी था। यह रिश्ता और इसका एहसास इतना अनूठा है कि इसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है। इस प्यार को हम सिर्फ महसूस कर सकते हैं ।
कादंबरी बचपन में हम लोग बहुत धूमधाम के साथ रक्षाबंधन का त्योहार मनाया करते थे। लेकिन अब व्यस्तताएँ इतनी ज्यादा हैं, और सब दूर-दू र
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भी हैं, इसलिए पहले की तरह मिलना नहीं हो पाता। मेरा भाई कुंदन मुझसे उम्र में पाँच साल छोटा है। जब मैं छोटी थी और वह मुझसे भी काफी छोटा था तो अपनी तोतली आवाज में मेरे लिए ‘फूलों का तारों का सबका कहना ह ै ’ वाला गाना गाया करता था। आज भी मैं जब भी वह गीत सुनती हूँ तो बचपन के दिन याद आ जाते हैं। बचपन में रक्षाबंधन पर मम्मी मुझे देने के लिए उसे गिफ्ट खरीदकर देती थीं। ये उसे पसंद नहीं था। इसलिए वह हर रक्षाबंधन पर मेरे लिए अपने हाथों से एक पेंटिंग बनाया करता था ।
प्रिया आर्य
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मैं और मेरा भाई कुणाल एक-दूसरे के काफी निकट हैं। बचपन में हमारे बीच झगड़ा भी होता था, हम बहुत सारी शैतानियाँ भी किया करते थे और फिर मम्मी-पापा की डाँट भी खाते थे। रक्षाबंधन का मुझे हमेशा इंतजार होता था। मैं कुणाल को अपने हाथों से राखी बाँधती थी। मेरे जीवन में उसका बहुत अहम स्थान है। अभी वो मुझसे दूर है और लंबे-लंबे समय तक हमारा मिलना नहीं हो पाता। वह अमरीका में अपना बिजनेस सँभाल रहा है और मैं यहाँ मुंबई में हूँ। हर बार की तरह इस बार भी रक्षाबंधन के दिन मैं शूटिंग में व्यस्त रहूँगी। लेकिन मैं अपने भाई से बहुत-बहुत प्यार करती हूँ और मेरे जीवन में उसकी जगह कोई दूसरा नहीं ले सकता।
निखिल आर्य मेरी बहन की शादी हो गई है और अब वह अपने परिवार के साथ यू.एस. में है। जब वह भारत में थी तो हम हर रक्षाबंधन साथ-साथ ह ी
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मनाया करते थे। वह मुझसे बड़ी है और बिल्कुल माँ की तरहमेरा ख्याल रखती थी। मुझे याद है, एक बार बचपन में हम दोनों घर पर अकेले थे। माँ-पापा कहीं बाहर गए हुए थे। उस समय मेरी उम्र 10-11 साल की रही होगी और मेरी बहन 15 साल की। लेकिन उसने किसी 30-35 साल की स्त्री की तरह मेरा ख्याल रखा। ऐसा और कोई नहीं कर सकता था। मेरी कोई मानी हुई बहन नहीं है। मेरे जीवन में सिर्फ और सिर्फ वही है। मेरी एकमात्र बहन। वह मेरे दिल के बहुत करीब है और मैं उससे बेतरह प्यार करता हूँ ।
मृणाल देशराज
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मैं और मेरा भाई विक्की साथ ही खेलते-कूदते बड़े हुए हैं। जब हम छोटे थे, तो हर रक्षाबंधन पर मैं उसे राखी बाँधती थी और वह मुझे कोई अच्छा-सा उपहार दिया करता था। अब सब दूर हैं और अपने-अपने कामों में व्यस्त। अब पहले की तरह हर रक्षाबंधन पर हमारा मिलना तो नहीं हो पाता, लेकिन कभी किसी को कोई परेशानी या दिक्कत हो तो दूसरा हमेशा उसकी मदद के लिए मौजूद रहता है। मैं जब भी किसी मुकिश्ल में होती हूँ तो अपने भाई को फोन करती हूँ। दरअसल हम भाई-बहन से कहीं ज्यादा अच्छे और गहरे दोस्त हैं। बचपन में हम झगड़ते भी थे और अब भी कभी-कभी वह मुझे लेकर काफी पजेसिव हो जाते हैं। लेकिन फिर भी हम अच्छे दोस्त हैं और एक-दूसरे के काफी निकट भी ।
अपरा मेहता मेरे ढेर सारे कजिन भाई हैं, लेकिन मेरा अपना कोई भाई नहीं है। बचपन में हम जरूर हर रक्षाबंधन पर इकट्ठे होते थे। पूरा परिवार ही इ स
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दिन जमा हुआ करता था और हम सभी भाई-बहन खूब मस्ती करते थे। लेकिन अब सब बड़े हो गए हैं और अलग-अलग शहरों में हैं। कुछ विदेश में भी हैं। मैं उन्हें हर बार राखियाँ भेजती हूँ। कभी रक्षाबंधन के समय अगर वे मुंबई में हुए या कि मैं उनके पास हुई तो अपने हाथों से भी राखी बाँधते हैं। यह बहुत ही प्यारा और खूबसूरत त्योहार है। रक्षाबंधन सिर्फ एक धागा नहीं, बल्कि एक गहरी भावना है और भाई-बहन का एक-दूसरे के लिए ढेर सारा प्यार।
रोहिणी हट्टगड़ी बचपन में हमारे घर में बड़े प्यार और धूमधाम से रक्षाबंधन मनाया जाता है। मेरे भाई रवींद्र ओक मुझसे उम्र में काफी बड़े हैं। उनके अलावा अपने चचेरे भाईयों को भी मैं राखी बाँधती थी। वैसे हमारे यहाँ महाराष्ट्रियन परिवारों में रक्षाबंधन से ज्यादा भईया दूज का महत्व होता है। बचपन में भईया मुझसे पढ़ाई में बहुत ज्यादा अव्वल थे और मैं कोशिश करके भी उनका मुकाबला नहीं कर पाती थी। हर बार उनके नं. मुझसे ज्यादा होते और मुझे बहुत कोफ्त होती थी। बचपन की बहुत सारी खट्टी-मीठी स्मृतियाँ हैं। जब मैं नैश्नल स्कूल ऑफ ड्रामा में थी तो एक बड़ा रोल मिलने पर माँ-पिता और भाई का पत्र आया, जिसमें उन्होंने अपना नाम और उसके आगे लिखा था - आशीर्वाद। उस समय हमारे घर में एक कुत्ता हुआ करता था। मेरे भाई ने उस कुत्ते के पंजों के निशान उस चिट्ठी पर बनाए और आगे लिख दिया - आशीर्वाद। बहुत बड़े होने तक मैंने वह चिट्ठी सँभालकर रखी थी। हम तो जीवन की व्यस्तताएँ और दूरियाँ इतनी ज्यादा हैं कि हर रक्षाबंधन पर मिलना नहीं हो पाता।