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राखी बांधने का शुभ मुहूर्त कब से कब तक है?

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हमें फॉलो करें rakhi bandhne ka shubh muhurt 2025

WD Feature Desk

, शुक्रवार, 8 अगस्त 2025 (15:16 IST)
Rakhi bandhne ka shubh muhurt 2025: 9 अगस्त 2025 को रक्षाबंधन का पर्व मनाया जा रहा है। कई लोगों के मन में शंका ही कि क्या इस दिन भद्राकाल रहेगा और राहु काल का समय क्या रहेगा। इसके लिए यहां पर जानिए कि कब से कब तक रहेगा भद्रा काल और राहु काल। इसके बाद किसी शुभ मुहूर्त में राखी बांधना चाहिए।
 
8 अगस्त को दोपहर 02:12 से प्रारंभ होकर 9 अगस्त को तड़के 01:52 (मध्यरात्रि) पर समाप्त हो होगा। इसके बाद राहु काल सबह 09:07 से 10:47 तक रहेगा। इस बीच राखी न बांधें। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, सौभाग्य योग, सुस्थिर योग, वर्धमान योग और श्रवण और धनिष्ठा नक्षत्र का शुभ संयोग है।
 
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त कब से कब तक है?
दिन का शुभ मुहूर्त: राखी बांधने के लिए सबसे शुभ अभिजीत मुहूर्त है जो 9 अगस्त को दोपहर 12:00 से 12:53 तक रहेगा।
रात का शुभ मुहूर्त: रात में लाभ का चौघड़िया रहेगा जो शाम 07:06 से प्रारंभ होकर रात्रि 08:26 तक रहेगा। 
कैसे बांधें भाई के हाथों में राखी?
  • रक्षा बंधन के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके भगवान की पूजा करते हैं।
  • पूजा के बाद भाई और बहन के बैठने के लिए एक पाट रखते हैं। 
  • इसके बाद रोली, अक्षत, कुमकुम एवं दीप जलकर थाल सजाते हैं। 
  • इस थाल में रंग-बिरंगी राखियों को रखकर उसकी पूजा करते हैं।
  • फिर भाई को पूर्व दिशा में मुख करके पाट पर बैठाती हैं। फिर सिर पर टोपी या रुमाल रखती है।
  • पूजा की थाली में कुंकु, चावल, मिठाई, नारियल, राखी आदि रखकर दीप जलाती है।
  • फिर भाई के हाथों में नारियल और सवा रुपया रखकर इसके बाद कुंकु, हल्दी और अक्षत से तिलक लगाती हैं।
  • शुभ मुहूर्त में तिलक लगाने के बाद दाहिने हाथ की कलाई पर राखी बांधती है। 
  • इसके बाद मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराती हैं। 
  • बहनें राखी बांधते समय भाई की लम्बी उम्र एवं सुख तथा उन्नति की कामना करती है।
  • इसके बाद बहन भाई की आरती उतारती है और लोटे में भरा जल आसपास छोड़ती है। 
  • साथ ही भाई की उन्नती, सेहत और सुख के लिए मनोकामना करती है।
  • अंत में भाई आरती थी थाली में याथाशक्ति नगदी रखकर बहन को गिफ्‍ट या उपहार देकर उसके पैर पड़ता है।
राखी बांधते समय यह मंत्र बोला जाता है:-
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वां अभिबन्धामि रक्षे मा चल मा चल।।
 

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