Dharma Sangrah

अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए मुसलमान आगे आएं

ब्रह्मानंद राजपूत
रामनवमी पर्व पूरे भारतवर्ष में धूमधाम से मनाया जाने वाला पर्व है। यह पर्व प्रतिवर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन त्रेता युग में भगवान राम ने भगवान विष्णु के सातवें अवतार के रूप में अयोध्या के महाराज दशरथ एवं महारानी कौशल्या के यहां सबसे बड़े पुत्र के रूप में जन्म लिया था। इसलिए रामनवमी को भगवान राम के जन्मोत्सव के रूप में सम्पूर्ण भारत देश में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।
 
राम नवमी को चैत्र नवरात्रि का आखिरी दिन होता है और इस दिन भगवान राम के साथ-साथ पूरे भारत में मां भगवती के नौवें स्वरुप मां सिद्धि दात्री की भी पूजा की जाती है। रामनवमी के दिन जो व्यक्ति पूरे दिन उपवास रखकर भगवान श्रीराम चंद्र की विधि-विधान से संपूर्ण मन और चित्त से पूजा करता है और अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान-पुण्य कर्म करता है तो वह अनेक जन्मों के पापों से मुक्त होने में समर्थ होता है और उसे अपार धन संपदा की प्राप्ति होती है।
 
भगवान श्रीराम चन्द्र समस्त सनातन धर्म के आदर्श पुरुष और इष्टदेवता हैं। भगवान राम को सनातन धर्म में सर्वोपरि स्थान दिया गया है। बडे दुख की बात है कि जिन भगवान राम का उनके जन्मस्थान अयोध्या में भव्य राम मंदिर होना चाहिए था, आज वहां पर हमारे इष्टदेवता भगवान श्रीराम चंद्र जी को टेंट और टाट से बने मंदिर में रखा हुआ है।
 
अयोध्या में रामजन्म भूमि विवाद एक राजनीतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक-धार्मिक विवाद है, जोकि सैंकड़ों वर्ष पुराना विवाद है। इस विवाद का मूल मुद्दा हिंदू इष्टदेवता भगवान् श्रीराम चंद्र की जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद की स्थिति को लेकर है। इसके अलावा विवाद का कारण यह भी है कि उस स्थान पर हिंदू मंदिर को ध्वस्त कर वहां मस्जिद बनाया गया या मंदिर को मस्जिद के रूप में बदल दिया गया।
 
इस विवाद के मूल में जाया जाए तो इसकी शुरुआत मुगलकाल से होती है। इस विवाद में सबसे अहम भूमिका जहिर उद्दीन मुहम्मद बाबर की रही है जोकि भारत में मुगल वंश का संस्थापक था। बाबर के मुगल सेनापति मीरबाकी द्वारा ही सन् 1528 में बाबर के कहने पर राम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी। जिसे बाबरी मस्जिद नाम दिया गया। कहा तो यहां तक जाता है कि बाबर ने राम मंदिर को ध्वस्त कर उसके ऊपर मस्जिद का निर्माण कराया था। 
 
हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान राम का जन्म हुआ था। इसी को लेकर पिछले सैंकड़ों वर्षों से राम जन्मभूमि विवाद का कारण रही है। हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस स्थल को लेकर पहली बार 1853 में विवाद हुआ। इस विवाद को देखते हुए अंग्रेजों ने सन् 1859 में नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा। 
अंदर वाले हिस्से में अंग्रेजी हुकूमत ने लोहे से घेराबंदी लगाते हुए हिंदुओं का प्रवेश वर्जित कर दिया था। यहीं से अंग्रेजों द्वारा इस मामले को और उलझा दिया गया। इस बात से हिंदुओं की आस्था और भावनाएं आहत हुईं। यहीं से ये मामला उलझता गया और इस स्थल को लेकर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवाद की खाई चैड़ी होती गयी।
 
सन् 1949 में अंदर वाले हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। हिंदुओं और मुसलामानों के बीच तनाव और विवाद को बढ़ता देख तत्कालीन नेहरू सरकार ने इसके गेट में ताला लगवा दिया। सन् 1986 में फैजाबाद जिला जज ने उक्त स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।
 
इसके बाद सदियों से अपने इष्टदेवता श्रीराम चंद्र के जन्म स्थान पर लगे प्रश्नचिन्ह से आहत और आक्रोशित हिन्दू समाज ने लाखों की तादात में कारसेवकों ने पुलिस प्रतिरोध के वावजूद 06 दिसंबर 1992 को विवादित बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया और उस स्थान पर भगवान श्रीराम की मूर्ति की स्थापना कर दी।
 
इसके बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश से सरकार ने 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पुरातत्व विशेषज्ञों की एक टीम भेजकर उस स्थान का उत्खनन कराया गया, जिससे कि मंदिर या मस्जिद होने का प्रमाण मिल सके। एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में विवादित बाबरी मस्जिद के नीचे 10वीं शताब्दी के मंदिर की उपस्थिति का संकेत दिया। लेकिन मुस्लिम समूहों ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया।
 
विवादित मामले को लेकर उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ द्वारा 30 सितंबर 2010 को विशेष पीठ के तीन जजों जस्टिस एसयू खान, जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस धर्मवीर शर्मा ने बहुमत से निर्णय दिया और विवादित स्थल को तीन भागों में बांट दिया। फैसले में कहा गया कि विवादित स्थल भगवान राम की जन्मभूमि है और वहां से रामलाल कि मूर्तियों को न हटाने का आदेश दिया। इस भूमि में से एक तिहाई हिस्सा राम मंदिर के लिए रामलला विराजमान का प्रतिनिधित्व करने वाले हिंदुओं को देने का फैसला सुनाया गया और एक तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़े को देने का फैसला सुनाया और साथ ही एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का फैसला सुनाया।
 
इस फैसले में बेशक विभिन्न पक्षों के दावों को लेकर विवादित स्थल वाली 2.7 एकड़ भूमि को तीन भागों में बांटा गया हो, लेकिन अदालत द्वारा एक महत्वपूर्ण पुष्टि जो अपने निर्णय में की गयी वह भगवान श्रीराम चंद्र के जन्म स्थान को लेकर की गयी, जिसमें कहा गया कि विवादित स्थल भगवान राम का जन्म स्थान है। सबसे बड़ी बात यह कि निर्णय में कहा गया कि मुगल बादशाह बाबर द्वारा बनवाई गई विवादित मस्जिद इस्लामी कानून के खिलाफ थी और इस्लामी मूल्यों के अनुरूप नहीं थी। यह फैसला सदियों से आहत हिंदुओं के लिए सबसे बड़ी खुशी का दिन था।
अदालत ने बेशक इस फैसले में उस स्थान पर राम मंदिर के निर्माण का आदेश न दिया हो, लेकिन इस फैसले से सदियों से आहत हिंदुओं की भावनाओं और उनके लंबे संघर्ष को सम्मान मिला। लेकिन कुछ पक्षकारों ने इस फैसले को नहीं माना और आज यह मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित है। लेकिन उच्चतम न्यायालय भी इस मामले की गंभीरता को जानता है, इसलिए अभी तक इस मामले में निर्णय देने से बचता रहा है।
 
इसलिए उच्चतम न्यायालय ने भी इस मामले को आपसी बातचीत से सुलझाने की अपील की है और कोर्ट से बाहर हल निकालने में मध्यस्थता करने की भी पेशकश की है। जिसका भाजपा सहित कई पक्षों और अधिकतर लोगों ने स्वागत किया है। लेकिन कुछ पक्षों ने पिछली कोशिशों का हवाला देकर उच्चतम न्यायालय से ही निर्णय सुनाने की अपील की है। अब देखने वाली बात होगी कि निकट भविष्य में इस मामले पर सभी पक्षों द्वारा क्या कोशिश होती है। अगर आपसी बातचीत से कोर्ट के बाहर उच्चतम न्यायालय की मध्यस्थता में कोशिश होती भी है तो उसका क्या निर्णय होगा।
 
भगवान श्रीराम चंद्र के जीवन से सभी को भक्तिभाव के पथ पर चलने की सीख लेनी चाहिए और मर्यादा का पाठ सीखना चाहिए। भगवान श्रीराम चंद्र ने अपने जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना बताया। इसीलिए भगवान विष्णु ने सातवें अवतार के रूप में अयोध्या में जन्म लिया और दुष्ट रावण का वध कर उसके पापों से लोगों को मुक्ति दिलाई। भगवान राम के जीवन से हमें एक बेदाग और मर्यादा पूर्ण जीवन जीने की सीख मिलती है। भगवान राम का उदाहरण लोगों को उनके नक्क्षेकदम पर चलने और हमें अपने विचारों, शब्दों एवं कर्म में उत्कृष्टता पाने के लिए प्रयास करने हेतु प्रेरित करता है।
 
भगवान श्रीराम चंद्र का जीवन सभी लोगों को हमेशा से उत्तम उच्च आदर्शों और उच्च नैतिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रेरित करता रहा है। राम नवमी के इस पावन दिवस पर हम सबको एक समृद्ध, शांतिपूर्ण और समरसतापूर्ण राष्ट्र और समाज का निर्माण करने के प्रति संकल्पित होना चाहिए। साथ-साथ सभी भारतवासियों को धर्म और सम्प्रदाय से ऊपर उठकर खासकर मुसलमानों को भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए आगे आना चाहिए और एक सकारात्मक पहल करनी चाहिए। जिससे की दुनिया के रखवाले भगवान श्रीराम चंद्र को तंबू में न रहना पड़े। 
 
 
Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Budh vakri gochar 2025: बुध ग्रह ने चली वक्री चाल, जानिए क्या होगा 12 राशियों का राशिफल

Vivah Panchami upaay : विवाह पंचमी पर किए जाने वाले 5 मुख्य उपाय

Dreams and Destiny: सपने में मिलने वाले ये 5 अद्‍भुत संकेत, बदल देंगे आपकी किस्मत

Sun Transit 2025: सूर्य के वृश्‍चिक राशि में जाने से 5 राशियों की चमक जाएगी किस्मत

Margashirsha Month 2025: आध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं तो मार्गशीर्ष माह में करें ये 6 उपाय

सभी देखें

धर्म संसार

Aaj Ka Rashifal: आज का दैनिक राशिफल: मेष से मीन तक 12 राशियों का राशिफल (19 नवंबर, 2025)

19 November Birthday: आपको 19 नवंबर, 2025 के लिए जन्मदिन की बधाई!

Aaj ka panchang: आज का शुभ मुहूर्त: 19 नवंबर, 2025: बुधवार का पंचांग और शुभ समय

Mokshada Ekadashi: मोक्षदा एकादशी: मोह का नाश, मुक्ति का मार्ग और गीता का ज्ञान

Guru Tegh Bahadur Shahidi Diwas: 2025 में गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस कब मनाया जाएगा?

अगला लेख