Dharma Sangrah

।।श्री रामाष्टकः।।

WD Feature Desk
श्री रामाष्टकम् 1

हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशव।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा।।
 
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्।।
 
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव सम्भाषणम्।।
 
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि रामायणम्।।

अर्थ- हे पुरुषोत्तम राम, आप ही नरहरि, नारायण, केशव, गोविन्द, गरुड़ध्वज, गुणनिधि, दामोदर और माधव हैं और हे कृष्ण, आपही कमलापति, यदुपति, सीतापति और श्रीपति हैं अर्थात आपदोनों एक ही हैं। हे वैकुण्ठ के स्वामी, चराचर के मालिक, लक्ष्मीपति ! आप हमारी रक्षा करें, हमारा उद्धार करें। प्रारम्भ में श्रीराम तपोवन आदि वनों में गये, वहाँ उन्होंने सोने के हिरण को मारा। फिर सीता जी का हरण हुआ, पक्षीराज जटायु मारे गये, श्रीराम सुग्रीव से मिले, बाली का वध किया। (हनुमानजी द्वारा) समुद्र को लाँघ कर लंकापुरी जलाया गया। इसके पश्चात् श्रीराम ने रावण और कुम्भकरण का वध किया, यही रामायण है।
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श्री रामाष्टकम् 2
(श्री व्यासविरचितम्)
 
भजे विशेषसुन्दरं समस्तपापखण्डनम्।
स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव राममद्वयम्॥ १ ॥
जटाकलापशोभितं समस्तपापनाशकं।
स्वभक्तभीतिभञ्जनं भजे ह राममद्वयम्॥ २ ॥
निजस्वरूपबोधकं कृपाकरं भवापहम्।
समं शिवं निरञ्जनं भजे ह राममद्वयम्॥ ३ ॥
सहप्रपञ्चकल्पितं ह्यनामरूपवास्तवम्।
निराकृतिं निरामयं भजे ह राममद्वयम्॥ ४ ॥
निष्प्रपञ्चनिर्विकल्पनिर्मलं निरामयम्।
चिदेकरूपसन्ततं भजे ह राममद्वयम्॥ ५ ॥
भवाब्धिपोतरूपकं ह्यशेषदेहकल्पितम्।
गुणाकरं कृपाकरं भजे ह राममद्वयम्॥ ६ ॥
महावाक्यबोधकैर्विराजमानवाक्पदैः।
परं ब्रह्मसद्व्यापकं भजे ह राममद्वयम् ॥ ७ ॥
शिवप्रदं सुखप्रदं भवच्छिदं भ्रमापहम्।
विराजमानदेशिकं भजे ह राममद्वयम्॥ ८ ॥
रामाष्टकं पठति यस्सुखदं सुपुण्यं
व्यासेन भाषितमिदं शृणुते मनुष्यः
विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं
संप्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम्॥ ९ ॥
॥ इति श्रीव्यासविरचितं रामाष्टकं संपूर्णम् ॥
 
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श्री रामाष्टकम् 3
कृतार्तदेववन्दनं दिनेशवंशनन्दनम्। सुशोभिभालचन्दनं नमामि राममीश्वरम्।।1।।
मुनीन्द्रयज्ञकारकं शिलाविपत्तिहारकम्। महाधनुर्विदारकं नमामि राममीश्वरम्।।2।।
 
स्वतातवाक्यकारिणं तपोवने विहारिणम्। करे सुचापधारिणं नमामि राममीश्वरम्।।3।।
कुरंगमुक्तसायकं जटायुमोक्षदायकम्। प्रविद्धकीशनायकं नमामि राममीश्वरम्।।4।।
 
प्लवंगसंगसम्मतिं निबद्धनिम्नगापतिम्। दशास्यवंशसड़्क्षतिं नमामि राममीश्वरम्।।5।।
विदीनदेवहर्षणं कपीप्सितार्थवर्षणम्। स्वबन्धुशोककर्षणं नमामि राममीश्वरम्।।6।।
 
गतारिराज्यरक्षणं प्रजाजनार्तिभक्षणम्। कृतास्तमोहलक्षणं नमामि राममीश्वरम्।।7।।
हृताखिलाचलाभरं स्वधामनीतनागरम्। जगत्तमोदिवाकरं नमामि राममीश्वरम्।।8।।
 
इदं समाहितात्मना नरो रघूत्तमाष्टकम्। पठन्निरन्तरं भयं भवोद्भवं न विन्दते।।9।।
इति श्रीपरमहंसस्वामिब्रह्मानन्दविरचितं श्रीरामाष्टकं सम्पूर्णम्।

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