Dharma Sangrah

इस्लाम में अलविदा जुमे की अहमियत

फ़िरदौस ख़ान
शुक्रवार, 28 मार्च 2025 (09:50 IST)
Alvida Jumma of Ramadan: रमज़ान के चौथे जुमे को अलविदा जुमा कहा जाता है, क्योंकि यह इस माह का आख़िरी जुमा होता है। इस्लाम में जुमे के दिन की बड़ी अहमियत और फ़ज़ीलत है। चूंकि रमज़ान साल का सबसे मुक़द्दस महीना है, इसलिए रमज़ान के अलविदा जुमे की अहमियत भी बहुत ज़्यादा है।ALSO READ: रमज़ान : खानपान और सेहत
 
जिस तरह यहूदियों के लिए सनीचर और ईसाइयों के लिए इतवार की अहमियत है, उसी तरह मुसलमानों के लिए जुमे की अहमियत है। अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने हमसे पहले के लोगों को जुमे से महरूम रखा।

यहूदियों के लिए सनीचर और ईसाइयों के लिए इतवार का दिन था। फिर अल्लाह तआला हमें लाया और उसने हमारी जुमे के दिन की जानिब रहनुमाई की। उसने पहले जुमा बनाया, फिर सनीचर और उसके बाद इतवार बनाया। इसी तरह ये लोग क़यामत के दिन भी हमसे पीछे होंगे। हम भले ही दुनिया में आख़िर में आए हैं, लेकिन क़यामत के दिन हम पहले होंगे और तमाम उम्मतों में सबसे पहले हमारा फ़ैसला किया जाएगा। (मुस्लिम 856)
 
नबी करीम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि सबसे बेहतर दिन, जब पहली बार सूरज तुलूअ हुआ, वह जुमे का दिन था। इस दिन हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को पैदा किया गया। इसी दिन उन्हें ज़मीन पर उतारा गया। इसी दिन उनकी तौबा क़ुबूल की गई। इसी दिन उनकी वफ़ात हुई और इसी दिन क़यामत क़ायम होगी। जिन्न और इंसानों के सिवा हर शय जुमे के दिन सुबह से लेकर सूरज ढलने तक क़यामत से डरते हुए उसके इंतज़ार में रहती है। (सुनन अबु दाऊद 1046)ALSO READ: जमातुल विदा क्या हैं, कैसे मनाया जाता है?
 
नबी करीम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि बेशक जुमे का दिन तमाम दिनों का सरदार है और अल्लाह के नज़दीक सबसे ज़्यादा अज़मत वाला है। यह दिन अल्लाह के यहां ईद-उल-फ़ितर और ईद-उल-अज़हा से भी ज़्यादा फ़ज़ीलत रखता है। (इब्ने माजा 1084)
नबी करीम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जब जुमे का दिन आता है, तो मस्जिद के हर दरवाज़े पर फ़रिश्ते खड़े हो जाते हैं और अबसे पहले आने वाले और फिर उसके बाद आने वाले लोगों के नाम बारी-बारी से लिखते हैं। फिर जब इमाम ख़ुत्बे के लिए बैठ जाते हैं, तो वे अपनी किताब बंद कर देते हैं और ज़िक्र सुनने लगते हैं। (सही बुख़ारी 3211)        
 
नबी करीम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जो शख़्स जुमे के दिन ग़ुस्ल करे और ख़ूब अच्छी तरह से पाकी हासिल करे और बालों में तेल लगाए या घर में कोई ख़ुशबू मयस्सर हो, तो उसका इस्तेमाल करे यानी इत्र लगाए। फिर वह नमाज़ के लिए निकले और मस्जिद में पहुंचकर दो आदमियों के बीच में न घुसे, जितनी हो सके नफ़िल नमाज़ पढ़े और जब इमाम ख़ुत्बा शुरू करे, तो ख़ामोशी से सुनता रहे, तो उसके इस जुमे से लेकर अगले जुमे तक के तमाम गुनाह मुआफ़ कर दिए जाते हैं। (सही बुख़ारी 883, सही मुस्लिम 857)    
 
नबी करीम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जुमे के दिन में बारह घड़ियां हैं, जो भी मुसलमान उस वक़्त अल्लाह तआला से कोई सवाल करे, तो अल्लाह तआला उसे वह चीज़ अता फ़रमा देता है। लिहाज़ा इसे अस्र के बाद के लम्हों में तलाश करो। (सुनन अबु दाऊद 1048)
 
नबी करीम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जिसने जुमे के दिन सूरह कहफ़ पढ़ी, उसके लिए जो जुमे के दरम्यान नूर रौशन हो जाता है।  
 
जुमे की अहमियत और फ़ज़ीलत को बयान करने वाली बहुत सी हदीसें हैं। जुमे के दिन दरूद शरीफ़ पढ़ना भी बहुत ही अफ़ज़ल है। इसलिए जुमे का ज़्यादा से ज़्यादा एहतराम करना चाहिए। ALSO READ: Shab-E-Qadr 2025: क्या होती है शब-ए-कद्र की रात? इस दिन जरूर करें ये 3 काम
 
(लेखिका आलिमा हैं और उन्होंने फहम अल क़ुरआन लिखा है)
 
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