बावीसवां रोजा : अख़िरत को संवारने का सलीक़ा...

Webdunia
प्रस्तुति : अज़हर हाशमी


 
22वां रोजा : अल्लाह को पुकारने का तरीक़ा
 
हर मज़हब की इबादत का अपना ढंग होता है। इसके अलावा हर मज़हब में ऐसी कोई न कोई रात या कुछ ख़ास बातें इबादत के लिए मख़्सूस (विशिष्ट) होती हैं जिनकी अपनी अहमियत होती है। मिसाल के तौर पर सनातन धर्म (मज़हब) में भगवती जागरण/ नवरात्र जागरण/ जैन धर्म में ख़ास यानी विशिष्ट तप-आराधना (इबादत), सिख धर्म में एक ओंकार सतनाम का जाप, ईसाई मज़हब में भी स्पिरिचुअल नाइट्स फॉर स्पिरिचुअल अवेकनिंग एंड अवेयरनेस के अपने लम्हात होते हैं जो हॉली फास्टिंग या पायस मोमेन्ट्स से जुड़े रहते हैं।
 
इस्लाम मज़हब की इबादत की नींव एकेश्वरवाद (ला इलाहा इल्ललाह) पर मुश्तमिल (आधारित) है। हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अल्लाह के रसूल यानी संदेशवाहक (मोहम्मदुर्रसूलल्लाह) है। ये यक़ीन और तस्दीक़ यानी अल्लाह और उसके रसूल (संदेशवाहक) को स्वीकारना जरूरी है।

इसको यों कह सकते हैं कि अल्लाह पर ईमान लाना और रसूलल्लाह के अहकामात मानना (ये अहकामात ही दरअसल अहकामे-शरीअत है) ही इस्लाम मज़हब की बुनियाद है।
 
माहे रमज़ान को मज़हबे-इस्लाम में ख़ास मुक़ाम हासिल है। पाकीज़गी (पवित्रता) और परहेज़गारी की पाबंदी के साथ रखा गया रोज़ा रोज़ेदार को इबादत की अलग ही लज़्ज़त देता है।
 
दरअसल दोज़ख़ की आग से निजात का यह अशरा (जिसमें रात में की गई इबादत की खास अहमियत है) इक्कीसवीं रात (जब बीसवां रोज़ा इफ्तार लिया जाता है) से ही शुरू हो जाता है। वैसे इस अशरे में जैसा कि पहले कहा जा चुका है दस रातें-दस दिन होते हैं, मगर उन्तीसवें रोज़े वाली शाम को ही चांद नजर आ जाए तो नौ रातें-नौ दिन होते हैं।
 
इस अशरे में इक्कीसवीं रात जिसे ताक़ (विषम) रात कहते हैं नमाज़ी (आराधक) एतेक़ाफ़ (मस्जिद में रहकर विशेष आराधना) करता है। मोहल्ले में एक शख्स भी एतेक़ाफ करता है तो "किफ़ाया" की वजह से पूरे मोहल्ले का हो जाता है। दरअसल अल्लाह को पुकारने का तरीक़ा और आख़िरत को सँवारने का सलीक़ा है रमजान।

 
Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

निरंजनी अखाड़े के छावनी प्रवेश के दौरान रथ पर बैठीं हर्षा रिछारिया, क्यों मचा बवाल?

तुलसी की सूखी लकड़ी का दीपक जलाने से घर आती है समृद्धि, जानिए अद्भुत फायदे

पीरियड्स में महिला नागा साधु कैसे करती हैं महाकुंभ में स्नान, ये हैं नियम

महाकुंभ में कल्पवास क्या है, जानें क्यों करें? पढ़ें महत्व, लाभ और नियम के बारे में

चंद्रमा की इस गलती की वजह से लगता है महाकुंभ, जानिए पौराणिक कथा

सभी देखें

धर्म संसार

19 जनवरी 2025 : आपका जन्मदिन

19 जनवरी 2025, रविवार के शुभ मुहूर्त

महाकुंभ में नागा, अघोरी और कल्पवासियों की दुनिया करीब से देखने के लिए ऑनलाइन बुकिंग शुरू, जानिए पूरी प्रक्रिया

इन तीन कठिन परीक्षाओं के बाद बनते हैं अघोरी, जान की बाजी लगाने के लिए रहना पड़ता है तैयार

मां गंगा के पवित्र नाम पर दें बेटी को प्यारा सा नाम, पौराणिक हैं अर्थ

अगला लेख