प्रभु श्री राम के हाथों में गिर गई जब एक नन्हीं गिलहरी

अनिरुद्ध जोशी
किंवदंती अनुसार पहली कथा यह है कि जब श्रीराम अपनी पत्नी सीता व अनुज लक्ष्मण के साथ वनवास पर थे, तो रास्ते चलते हर तरह के धरातल पर पैर पड़ते रहे। कहीं नर्म घास भी होती, कहीं कठोर धरती भी, कहीं कांटे भी। ऐसे ही चलते हुए श्रीराम का पैर एक नन्ही-सी गिलहरी पर पड़ा। उन्हें दुःख हुआ और उन्होंने उस नन्ही गिलहरी को उठाकर प्यार किया और बोले- अरे मेरा पांव तुझ पर पड़ा, तुझे कितना दर्द हुआ होगा न?
 
 
गिलहरी ने कहा- प्रभु! आपके चरण कमलों के दर्शन कितने दुर्लभ हैं। संत-महात्मा इन चरणों की पूजा करते नहीं थकते। मेरा सौभाग्य है कि मुझे इन चरणों की सेवा का एक पल मिला। इन्हें इस कठोर राह से एक पल का आराम मैं दे सकी।
 
प्रभु श्रीराम ने कहा कि फिर भी दर्द तो हुआ होगा ना? तू चिल्लाई क्यों नहीं? इस पर गिलहरी ने कहा- प्रभु, कोई और मुझ पर पांव रखता, तो मैं चीखती- 'हे राम!! राम-राम!!! ', किंतु, जब आपका ही पैर मुझ पर पड़ा- तो मैं किसे पुकारती?  
 
कहते हैं कि श्रीराम ने गिलहरी की पीठ पर बड़े प्यार से अंगुलियां फेरीं जिससे कि उसे दर्द में आराम मिले। अब वह इतनी नन्ही है कि तीन ही अंगुलियां फिर सकीं। माना जाता है कि इसीलिए गिलहरियों के शरीर पर श्रीराम की अंगुलियों के निशान आज भी होते हैं।
 
#
मान्यता अनुसार दूसरी कथा है कि राम सेतु बनाने में गिलहरियों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सभी गिलहरियां अपने मुंह में मिट्टियां भरकर लाती थीं और पत्थरों के बीच उनको भर देती थीं। इस दौरान उन्हें वानरों के पैरों के बीच से होकर गुजरना होता था। वानर भी इन गिरहरियों से तंग आ चुके थे। क्योंकि उन्हें भी गिलहरी को बचाने हुए निकलना होता था लेकिन वानरों को यह नहीं मालूम था कि ये गिलहरियां यहां वहां क्यों दौड़ रही है। तभी एक वानर ने उस पर चिल्लाते हुए कहा कि तुम इधर-उधर क्यों भाग रही हो। तुम हमें काम नहीं करने दे रही।
 
तभी उनमें से एक वानर ने गुस्से में आकर एक गिलहरी को उठाया और उसे हवा में उछाल कर फेंक दिया। हवा में उड़ती हुई गिलहरी भगवान का नाम लेती हुई सीधा श्रीराम के हाथों में ही जाकर गिरी। प्रभु राम ने स्वयं उसे गिरने से बचाया था। वह जैसे ही उनके हाथों में जाकर गिरी और उसने आंखें खोलकर देखा, तो प्रभु श्रीराम को देखते ही वह खुश हो गई। उसने श्रीराम से कहा कि मेरा जीवन सफल हो गया, जो मैं आपकी शरण में आई। 
 
तब श्रीराम उठे और वानरों से कहा कि तुमने इस गिलहरी को इस तरह से क्यों लज्जित किया। श्रीराम ने कहा कि क्या तुम जानते हो गिलहरी द्वारा समुद्र में डाले गए छोटे पत्थर तुम्हारे द्वारा फेंके जा रहे बड़े पत्थरों के बीच के फासले को भर रहे हैं? इस वजह से यह पुल मजबूत बनेगा। यह सुन वानर सेना काफी शर्मिंदा हो गई। उन्होंने प्रभु राम और गिलहरी से क्षमा मांगी। 
 
तब श्रीराम हाथ में पकड़ी हुई गिलहरी को अपने पास लाए और उससे इस घटना के लिए क्षमा मांगी। उसके कार्य को सराहना देते हुए उन्होंने उसकी पीठ पर अपनी अंगुलियों से स्पर्श किया। श्रीराम के इस स्पर्श के कारण गिलहरी की पीठ पर तीन रेखाएं बन गई, जो आज भी हर एक गिलहरी के ऊपर श्रीराम के निशानी के रूप में मौजूद हैं। यह तीन रेखाएं राम, लक्षमण और सीता की प्रतीक है।
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

मंगला गौरी व्रत कब रखा जाएगा, क्या है माता की पूजा का शुभ मुहूर्त

भविष्य मालिका की भविष्यवाणी के अनुसार तीसरा विश्‍व युद्ध कब होगा, भारत में लगेगा मिलिट्री शासन?

सावन सोमवार से संबंधित आरती चालीसा सहित महत्वपूर्ण जानकारी

अमरनाथ यात्रा शुरू, बालटाल और नुनवान आधार शिविरों से पहला जत्था रवाना

कैलाश मानसरोवर भारत का हिस्सा क्यों नहीं है? जानिए कब और कैसे हुआ भारत से अलग?

सभी देखें

धर्म संसार

आषाढ़ी शुक्ल नवमी को क्यों कहते हैं भड़ली नवमी?

चेन्नई में सैयदना मुफ़द्दल सैफ़ुद्दीन साहब का प्रवचन: सूर्य, आत्मा और आपसी जुड़ाव की शक्ति पर प्रकाश

श्रावण माह में इस बार कितने सोमवार हैं और किस तारीख को, जानिए

वर्ष 2025 में कब से शुरू हो रहा है सावन माह का सोमवार, जानिए श्रावण मास डेट एंड पूजा टाइम

सावन मास में शिवजी की पूजा से पहले सुधारें अपने घर का वास्तु, जानें 5 उपाय

अगला लेख