हनुमानजी को जब भूतनियों ने भूतराजा के समक्ष थाली में सजाकर किया पेश

अनिरुद्ध जोशी
यह पौराणिक कथा है। हालांकि इसका उल्लेख रामायण आदि ग्रंथों में विस्तार से नहीं मिलता है। हो सकता है कि यह किवदंतियों के आधार पर जनमानस में प्रचलित हो गई हो। यह भी हो सकता है कि इस कथा में सचाई कम ही हो,  लेकिन कथा मजेदार है। आप भी पढ़िये।
 
 
इस कथा के अनुसार एक दिन राम सिंहासन पर विराजमान थे तभी उनकी अंगूठी गिर गई। गिरते ही वह भूमि के एक छेद में चली गई। हनुमान ने यह देखा तो उन्होंने लघु रूप धरा और उस छेद में से अंगूठी निकालने के लिए घुस गए। हनुमान तो ऐसे हैं कि वे किसी भी छिद्र में घुस सकते हैं, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो।
 
 
छेद में चलते गए, लेकिन उसका कोई अंत दिखाई नहीं दे रहा था तभी अचानक वे पाताल लोक में गिर पड़े। पाताल लोक की कई स्त्रियां कोलाहल करने लगीं- 'अरे, देखो-देखो, ऊपर से एक छोटा-सा बंदर गिरा है।' उन्होंने हनुमान को पकड़ा और एक थाली में सजा दिया।
 
पाताल लोक में रहने वाले भूतों के राजा को जीव-जंतु खाना पसंद था इसलिए छोटे-से हनुमानजी को बंदर समझकर उनके भोजन की थाली में सजा दिया। थाली पर बैठे हनुमान पसोपेश में थे कि अब क्या करें?
 
 
#
उधर, रामजी हनुमानजी के छिद्र से बाहर निकलने का इंतजार कर रहे थे। तभी महर्षि वशिष्ठ और भगवान ब्रह्मा उनसे मिलने आए। उन्होंने राम से कहा- 'हम आपसे एकांत में वार्ता करना चाहते हैं। हम नहीं चाहते कि कोई हमारी बात सुने या उसमें बाधा डाले। क्या आपको यह स्वीकार है?'
 
प्रभु श्रीराम ने कहा- 'स्वीकार है।'
 
इस पर ब्रह्माजी बोले, 'तो फिर एक नियम बनाएं। अगर हमारी वार्ता के समय कोई यहां आएगा तो उसका शिरोच्छेद कर दिया जाएगा।'
 
 
प्रभु श्रीराम ने कहा- 'जैसी आपकी इच्छा।'
 
अब सवाल यह था कि सबसे विश्वसनीय द्वारपाल कौन होगा, जो किसी को भीतर न आने दे? हनुमानजी तो अंगूठी लेने गए थे। ऐसे में राम ने लक्ष्मण को बुलाया और कहा कि तुम जाओ और किसी को भी भीतर मत आने देना। लक्ष्मणजी को भली-भांति समझाकर राम ने द्वारपाल बना दिया।
 
लक्ष्मण द्वार पर खड़े थे, तभी महर्षि विश्वामित्र वहां आए और कहने लगे- 'मुझे राम से शीघ्र मिलना अत्यावश्यक है। बताओ, वे कहां हैं?'
 
 
लक्ष्मण ने कहा- 'आदरणीय ऋषिवर अभी अंदर न जाएं। वे कुछ और लोगों के साथ अत्यंत महत्वपूर्ण वार्ता कर रहे हैं।'
 
विश्‍वामित्र ने कहा- 'ऐसी कौन-सी बात है, जो राम मुझसे छुपाएं?'
 
विश्वामित्र ने पुन: कहा- 'मुझे अभी, बिलकुल अभी अंदर जाना है।'
 
लक्ष्मण ने कहा- 'आपको अंदर जाने देने से पहले मुझे उनकी अनुमति लेनी होगी।'
 
विश्वामित्र ने कहा- 'तो जाओ और पूछो।'
 
 
तब लक्ष्मण ने कहा- 'मैं तब तक अंदर नहीं जा सकता, जब तक कि राम बाहर नहीं आते। आपको प्रतीक्षा करनी होगी।'
 
विश्वामित्र क्रोधित हो गए और कहने लगे- 'अगर तुम अंदर जाकर मेरी उपस्थिति की सूचना नहीं देते हो, तो मैं अपने अभिशाप से अभी पूरी अयोध्या को भस्मीभूत कर दूंगा।'
 
लक्ष्मण के समक्ष धर्मसंकट उपस्थित हो गया। वे सोचने लगे कि अगर अभी अंदर जाता हूं तो मैं मरूंगा और अगर नहीं जाता हूं ‍तो यह ऋषि अपने कोप में पूरे राज्य को भस्म कर डालेंगे। फिर लक्ष्मण ने सोचा कि ऐसे में बेहतर है कि मैं ही अकेला मरूं इसलिए वे अंदर चले गए।
 
 
राम ने पूछा- 'क्या बात है?'
 
लक्ष्मण ने कहा- 'महर्षि विश्वामित्र आए हैं।'
 
राम ने कहा- 'अंदर भेज दो।'
 
विश्वामित्र अंदर गए। एकांत वार्ता तब तक समाप्त हो चुकी थी। ब्रह्मा और वशिष्ठ राम से मिलकर यह कहने आए थे कि 'मृत्युलोक में आपका कार्य संपन्न हो चुका है। अब आप अपने राम अवतार रूप को त्यागकर यह शरीर छोड़ दें और पुनः ईश्वर रूप धारण करें।' ब्रह्मा और वशिष्ठ ऋषि को यही कुल मिलाकर उन्हें कहना था।
 
 
लेकिन लक्ष्मण ने राम से कहा- 'भ्राताश्री, आपको मेरा शिरोच्छेद कर देना चाहिए।'
 
राम ने कहा- 'क्यों? अब हमें कोई और बात नहीं करनी थी, तो मैं तुम्हारा शिरोच्छेद क्यों करूं?'
 
लक्ष्मण ने कहा- 'नहीं, आप ऐसा नहीं कर सकते। आप मुझे सिर्फ इसलिए छोड़ नहीं सकते कि मैं आपका भाई हूं। यह राम के नाम पर एक कलंक होगा। मुझे दंड मिलना चाहिए, क्योंकि मैंने आपके एकांत वार्तालाप में विघ्न डाला है। यदि आप दंड नहीं देंगे तो मैं प्राण त्याग दूंगा।'
 
 
लक्ष्मण शेषनाग के अवतार थे जिन पर विष्णु शयन करते हैं। उनका भी समय पूरा हो चुका था। वे सीधे सरयू नदी तक गए और उसके प्रवाह में विलुप्त हो गए। जब लक्ष्मण ने अपना शरीर त्याग दिया तो राम ने अपने सभी अनुयायियों, विभीषण, सुग्रीव और दूसरों को बुलाया और अपने जुड़वां पुत्रों लव और कुश के राज्याभिषेक की व्यवस्था की। इसके बाद राम भी सरयू नदी में प्रवेश कर गए।
 
#
उधर, इस दौरान हनुमान पाताललोक में थे। उन्हें अंततः भूतों के राजा के पास ले जाया गया। उस समय वे लगातार राम का नाम दुहरा रहे थे, 'राम..., राम..., राम...।'
 
 
भूतों के राजा ने पूछा- 'तुम कौन हो?'
 
हनुमानजी ने कहा- 'मैं हनुमान।'
 
भूतराज ने पूछा, 'हनुमान? यहां क्यों आए हो?'
 
हनुमानजी ने कहा- 'श्रीराम की अंगूठी एक छिद्र में गिर गई थी। मैं उसे निकालने आया हूं।'
 
भूतों के राजा हंसने लगे और फिर उन्होंने इधर-उधर देखा और हनुमानजी को अंगूठियों से भरी एक थाली दिखाई। थाली दिखाते हुए कहा- 'तुम अपने राम की अंगूठी उठा लो। मैं नहीं जानता कि कौन-सी अंगूठी तुम्हारे राम की है।'
 
 
हनुमान ने सभी अंगूठियों को गौर से देखा और सिर को डुलाते हुए बोले- 'मैं भी नहीं जानता कि इनमें से कौन-सी राम की अंगूठी है, सारी अंगूठियां एक जैसी दिखाई दे रही हैं।'
 
भूतों के राजा ने कहा कि इस थाली में जितनी भी अंगूठियां हैं सभी राम की ही हैं, लेकिन तुम्हारे राम की इनमें से कौन-सी है, यह तो तुम्हें ही जानना होगा। इस थाली में जितनी अंगूठियां हैं, उतने ही राम अब तक हो गए हैं।
 
 
और सुनो हनुमान, जब तुम धरती पर लौटोगे तो राम नहीं मिलेंगे। राम का यह अवतार अपनी अवधि पूरी कर चुका है। जब भी राम के किसी अवतार की अवधि पूरी होने वाली होती है, उनकी अंगूठी गिर जाती है। मैं उन्हें उठाकर रख लेता हूं। अब तुम जा सकते हो।'
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

Bhagwat katha benefits: भागवत कथा सुनने से मिलते हैं 10 लाभ

Vaishakha amavasya : वैशाख अमावस्या पर स्नान और पूजा के शुभ मुहूर्त

Dhan yog in Kundali : धन योग क्या है, करोड़पति से कम नहीं होता जातक, किस्मत देती है हर जगह साथ

Akshaya tritiya 2024 : 23 साल बाद अक्षय तृतीया पर इस बार क्यों नहीं होंगे विवाह?

Varuthini ekadashi: वरुथिनी एकादशी का व्रत तोड़ने का समय क्या है?

Guru asta 2024 : गुरु हो रहा है अस्त, 4 राशियों के पर्स में नहीं रहेगा पैसा, कर्ज की आ सकती है नौबत

Nautapa 2024 date: कब से लगने वाला है नौतपा, बारिश अच्‍छी होगी या नहीं?

Akshaya tritiya 2024: अक्षय तृतीया की पौराणिक कथा

कालाष्टमी 2024: कैसे करें वैशाख अष्टमी पर कालभैरव का पूजन, जानें विधि और शुभ समय

Aaj Ka Rashifal: राशिफल 01 मई: 12 राशियों के लिए क्या लेकर आया है माह का पहला दिन

अगला लेख