ये 10 दिग्गज प्रभु श्रीराम के साथ नहीं होते तो रावण को मारना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था

अनिरुद्ध जोशी
कहते हैंकि रावण को युद्ध में हराने से पहले तो उसका लंका में प्रवेश करना ही सबसे कठिन कार्य था। प्रभु श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले शिव की आराधना की फिर उन्होंने लंका की रक्षक देवी की आराधना की, तब कहीं जाकर वे रावण की लंका में प्रवेश कर पाए थे।
 
 
रावण ज्योतिष, वास्तुकला, इन्द्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू जानता था। उसके पास विमान और घातक अस्त्र एवं शस्त्र थे। उसे शिव से वरदान प्राप्त था। उसके किले की रक्षा देवी करती थी। रावण मायावी शक्तियों का स्वामी था। रावण को भगवान राम कभी नहीं मार पाते, यदि उन्हें इन 10 लोगों का साथ नहीं मिलता तो। लेकिन यह सभी राम की ही लीला थी। आओ जानते हैं कि वे 10 लोग कौन थे?
 
 
1.हनुमानजी : हनुमानजी ने ही प्रभु श्रीराम की अंगूठी को लेकर समुद्र को पार करने के बाद उसे माता सीता को दिया, मेघनाद के पुत्र अक्षय कुमार का वध कर लंका दहन किया, विभीषण और सुग्रीव को राम से मिलाया, राम और लक्ष्मण का अपहरण कर जब अहिरावण पाताल लोक ले गया था, तो उन्हें मुक्त कराया और उन्होंने ही हिमालय से संजीवनी बूटी को लाकर लक्ष्मण की जान बचाई थी।
 
 
2 .लक्ष्मण : प्रभु श्रीराम के भाई लक्ष्मण शेषनाग के अवतार थे। अपनी पत्नी उर्मिला से 14 वर्ष तक दूर रहे लक्ष्मण के बगैर राम न तो सीता माता को ढूंढ पाते और न ही वे युद्ध की तैयारी कर पाते। लक्ष्मण एक श्रेष्ठ धनुर्धर थे और वे पाशुपतास्त्र का संधान करना जानते थे।
 
 
3.संपाती और जटायु : राजा दशरथ के मित्र जटायु ने ही सीता को ले जा रहे रावण को रोकने का प्रयास किया और वे मारे गए। जटायु ने राम को पूरी कहानी सुनाई और यह भी बताया कि रावण किस दिशा में गया है? इसके बाद संपाती ने अंगद को रावण द्वारा सीताहरण की पुष्टि की थी। संपाती ने ही दूरदृष्टि से देखकर बताया था कि सीता माता अशोक वाटिका में सुरक्षित बैठी हैं।
 
 
4.सुग्रीव :  बाली ने सुग्रीव की पत्नी और संपत्ति हड़पकर उसको राज्य से बाहर धकेल दिया था। यही कारण था कि प्रभु श्रीराम ने सुग्रीव से अपने बड़े भाई बाली से युद्ध करने को कहा और इसी दौरान श्रीराम ने छुपकर बाली पर तीर चला दिया और वह मारा गया। बाली वध के बाद सुग्रीव किष्किंधा के राजा बने और उन्होंने राम के लिए वानर सेना को गठित किया था।
 
 
5.अंगद : राम की सेना में सुग्रीव के साथ वानर राज बाली का पुत्र अंगद भी था। युद्ध के पूर्व श्रीराम ने अंगद को अपना दूत बनाकर लंका भेजा था। वहां अंगद ने अपना पैर जमाकर अपनी शक्ति का परिचय दिया था। अंगद हनुमान की तरह पराक्रमी और बुद्धिमान थे। रावण की सभा में अंगद ने जो उपदेश दिया, वह अनूठा है।
 
 
6.जामवंत : श्रीराम ने जामवंतजी को शिवलिंग स्थापना के समय रावण को आचार्यत्व का निमंत्रण देने के लिए लंका भेजा था। जामवंतजी ने ही हनुमानजी को उनकी शक्ति का स्मरण कराया था। वे एक इंजीनियर भी थे। समुद्र के तटों पर वे एक मचान को निर्मित करने की तकनीक जानते थे, जहां यंत्र लगाकर समुद्री मार्गों और पदार्थों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता था। मान्यता है कि उन्होंने एक ऐसे यंत्र का निर्माण किया था, जो सभी तरह के विषैले परमाणुओं को निगल जाता था। जामवंतजी आज भी जिंदा हैं।
 
 
7.नल  : नल और नील दो भाई थे। नल ने ही लंका और भारत के बीच पुल बनाया था। यह पुल लगभग 5 दिनों में बन गया जिसकी लंबाई 100 योजन और चौड़ाई 10 योजन थी। रामायण में इस पुल को 'नल सेतु' की संज्ञा दी गई है। नल के निरीक्षण में वानरों ने बहुत प्रयत्नपूर्वक इस सेतु का निर्माण किया था। यह सेतु कालांतर में समुद्री तूफानों आदि की चोटें खाकर टूट गया था।
 
 
8.गरुड़ भगवान : जब रावण के पुत्र मेघनाथ ने श्रीराम से युद्ध करते हुए श्रीराम को नागपाश से बांध दिया था, तब देवर्षि नारद के कहने पर गरुड़ ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर श्रीराम को नागपाश के बंधन से मुक्त कर दिया था। भगवान राम के इस तरह नागपाश में बंध जाने पर श्रीराम के भगवान होने पर गरुड़ को संदेह हो गया था। अंत में काकभुशुण्डिजी ने राम के चरित्र की पवित्र कथा सुनाकर गरुड़ के संदेह को दूर किया।
 
 
9.सुषेण वैद्या : राम-रावण युद्ध के समय मेघनाद के तीर से लक्ष्मण घायल होकर मूर्छित हो गए थे, ऐसे में सुषेण वैद्य को बुलाया गया। लक्ष्मण की ऐसी दशा देखकर राम विलाप करने लगे। सुषेण ने कहा- 'लक्ष्मण के मुंह पर मृत्यु-चिह्न नहीं है अत: आप निश्चिंत रहिए, आप संजीवनी बूटी का इंजताम कीजिए।' हनुमानजी यह बूटी लेकर आए। यदि सुषेण वैद्य नहीं होते तो लक्ष्मण का जिंदा रहना मुश्किल था और यदि लक्ष्मण का देहांत हो जाता तो संभवत: प्रभु श्रीराम यह युद्ध रोककर पुन: लौट जाते। अत: सुषेण वैद्य की रामकथा में महत्वपूर्ण भूमिका रही।
 
 
 
10. विभीषण : रावण के 10 सिर थे। जिस सिर को राम अपने बाण से काट देते थे पुन: उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। राम द्वारा लाख प्रयास करने के बाद भी जब रावण नहीं मारा गया, तो वानर सेना में चिंता होने लगी थी। रावण ने अमरत्व प्राप्ति के उद्देश्य से भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या कर वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मा ने उसके इस वरदान को न मानते हुए कहा था कि तुम्हारा जीवन नाभि में स्थित रहेगा। यही कारण था कि वानर सेना पर रावण भारी पड़ने लगा था। ऐसे में विभीषण ने राम को यह राज बताया कि रावण का जीवन उसकी नाभि में है। नाभि में ही अमृत है। तब राम ने रावण की नाभि में तीर मारा और रावण मारा गया।

।।जय श्रीराम।।
 

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