इंफाल। पिछले 14 साल से अनशन कर रहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला को बुधवार को जब अस्थायी हिरासत से रिहा किया गया तो वे आंसूभरी आंखों के साथ बाहर निकलीं तथा उन्होंने सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को हटाने के लिए अपनी लड़ाई जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई।
शर्मिला पोरोपट में सरकारी अस्पताल के उस कमरे से बाहर निकलीं जिसे हिरासत में तब्दील कर दिया गया था। बेहद कमजोर लग रहीं 41 वर्षीय शर्मिला की नाक में नली नहीं लगी हुई थी जो उसके संघर्ष का पिछले कुछ सालों से प्रतीक बन गई थी।
शर्मिला ने अपनी लड़खड़ाती आवाज में कहा, यह भगवान की मर्जी है। मैं भावुक हूं, मैं बहुत पीड़ा झेल रही हूं। एक सत्र अदालत ने कल ही उनकी रिहाई का आदेश दिया था और उन्हें खाना खाने से इंकार कर आत्महत्या करने के आरोप से बरी कर दिया था।
मानवाधिकार कार्यकर्ता नवंबर 2000 से ही भूख हड़ताल पर हैं और उन्होंने एएफएसपीए को हटाने की उनकी मांग नहीं मांगे जाने तक अपना अनशन जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई है।
उन्होंने कहा, जब तक मेरी मांगें नहीं मानी जाती, मैं अपने मुंह से कुछ भी नहीं लूंगी। यह मेरा अधिकार है। यह मेरे संघर्ष का साधन है। एएफएसपीए को दमनकारी करार देते हुए उन्होंने कहा कि इसके कारण विधवाओं की संख्या बढ़ गई है।
उन्होंने कहा कि उनका आंदोलन न्याय के लिए है और इसमें उन्होंने लोगों से सहयोग मांगा। शर्मिला ने कहा, मैं चाहती हूं कि लोग मेरा गुणगान नहीं करें बल्कि व्यापक जन समर्थन दें। असली जीत मेरी मांगों के पूरा होने में है। पिछले 14 सालों में मैंने काफी पीड़ा झेली है। (भाषा)