बंगाल में डॉक्टरों के बाद अब आंदोलन की राह पर शिक्षक, पढ़ें इनसाइड स्टोरी

विकास सिंह
कोलकाता। पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों की हड़ताल अभी खत्म भी नहीं हुई हैं कि अब शिक्षक भी सरकार से आरपार की लड़ाई लड़ने के मूड में आ गए हैं। आज कोलकाता में शिक्षक अपनी कई मांगों को लेकर सड़क पर उतरे और जमकर प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान जब शिक्षक अपनी मांगों को लेकर शिक्षामंत्री पार्थ चटर्जी से मिलने के लिए जा रहे तब उनकी पुलिस के साथ तीखी झड़प भी हुई। इस दौरान पुलिस के द्वारा हल्का बल प्रयोग की भी खबरें हैं। ऐसे में जब ममता सरकार डॉक्टरों की हड़ताल से जूझ रही है तब शिक्षकों के प्रदर्शन से कई सवाल उठ खड़े हो गए हैं।

आंदोलन का सियासी कनेक्शन! : लोकसभा चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में अलग-अलग कई आंदोलनों से ममता सरकार सवालों के घेरे में आ गई है। पहले राज्य में वकीलों की, फिर डॉक्टरों की हड़ताल और अब शिक्षकों के प्रदर्शन के बाद ममता सरकार पूरी तरह बैकफुट पर है। भाजपा लगातार सरकार को लेकर हमलावर है तो केंद्र सरकार हाल के दिनों में बंगाल को लेकर दो एडवाइजरी भी जारी कर चुकी है।

पहले सूबे में हिंसा की बढ़ती घटनाओं और अब डॉक्टरों की हड़ताल पर जारी एडवाइजरी से इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि क्या ममता सरकार जानबूझकर राज्य में ऐसी स्थिति निर्मित कर रही है कि बंगाल राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़े। वहीं टीएमसी के नेता इन लगातार हो रहे आंदोलनों के पीछे भाजपा को जिम्मेदार बता रहे हैं।

बंगाल में लगातार हो रहे आंदोलन के सियासी कनेक्शन पर वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर आनंद पांडे कहते हैं कि पहले वकीलों फिर डॉक्टरों की हड़ताल और अब शिक्षक जिस तरह आंदोलन की राह पर हैं उससे बेशक ममता सरकार पर सवाल उठ रहे हैं और विपक्ष पूरे दमखम के साथ ममता को एक ऐसी मुख्यमंत्री के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है जो हर मोर्चे पर फेल है।

डॉक्टर आनंद पांडे कहते हैं कि जिस तरह केंद्र प्रदेश की स्थिति को लेकर एडवाइजरी जारी कर रहा है उससे इस बात के संकेत भी हैं कि हो सकता है कि आने वाले समय में बंगाल में राष्ट्रपति शासन देखने को मिले। डॉक्टर पांडे कहते हैं कि बंगाल में अब राष्ट्रपति शासन का फैसला पूरी तरह सियासी फायदे और नुकसान पर आकर टिक गया है।

मौजूदा हालातों को देखकर और जिस तरह टीएमसी के नेता राष्ट्रपति शासन को लेकर बयान दे रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि वे खुद चाहते हैं कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगे और ममता इसे बंगाल के लोगों का अपमान बताकर एक बार फिर बांग्ला अस्मिता का कार्ड खेलकर चुनाव में जाए।

वह कहते हैं कि जिस तरह बंगाल में आंदोलनों की संख्या बढ़ रही है उससे बंगाल की आम जनता खुश नहीं है और अगर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जल्द ही स्थिति को नहीं संभाला तो स्थिति उनके नियंत्रण से भी बाहर हो जाएगी, जिसका खामियाजा उनको चुनाव में उठाना पड़ सकता है, वहीं भाजपा जो सरकारी कर्मचारियों के आंदोलनों को तो सही बताते हुए उनके साथ है लेकिन अब तक खुलकर राष्ट्रपति शासन लगाने के पक्ष में नहीं दिख रही हैं।

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