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साधु-संतों की मांग, राम मंदिर निर्माण के लिए भी विधेयक लाया जाए

हमें फॉलो करें साधु-संतों की मांग, राम मंदिर निर्माण के लिए भी विधेयक लाया जाए

संदीप श्रीवास्तव

अयोध्या , शनिवार, 4 अगस्त 2018 (19:59 IST)
अयोध्या। भारत सरकार सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी एक्ट के आदेश विपरीत अध्यादेश संशोधन  के साथ पुराने कानून को बहाल करने के लिए इस सत्र में विधेयक लाने जा रही है तथा इसमें  बहाल होगा पुराना कानून। इस पर अयोध्या के साधु-संतों ने कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट का  फैसला बदलने वाला बिल इस सत्र में ला सकती है तो राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए कोई  बिल या अध्यादेश क्यों नहीं ला सकती? भाजपा सरकार भी अन्य दलों के तरह जाति, धर्म एवं  वोट की राजनीति करने लगी है।
 
राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपालदास ने कहा कि भारत सरकार को जो प्रस्ताव  भेजा गया है, उस पर केंद्र व प्रदेश की सरकारों को भी वह प्रस्ताव राम जन्मभूमि निर्माण के ही  लिए भेजा गया है। इससे यह उसका उत्तरदायित्व हो जाता है कि वह रामलला जहां विराजमान  हैं, वहां भव्य राम मंदिर का निर्माण करे।
 
उन्होंने कहा कि केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार है अत: अध्यादेश की जरूरत ही नहीं है इसलिए  वह अपने ही वोट द्वारा प्रस्ताव पारित करके अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कराए। महंत ने  पूर्व राज्यसभा सदस्य विनय कटियार के राम मंदिर निर्माण के बयान का समर्थन भी किया।
 
इतना ही नहीं, राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी महंत सतेन्द्र दास ने कहा कि जब केंद्र सरकर  सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नकारकर एससी-एसटी एक्ट पर अध्यादेश लाकर इसे लागू करा सकती  है, तो राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के लिए भी अध्यादेश ला सकती है। लेकिन यह सरकार  ऐसा नहीं कर रही है इसलिए सभी साधु-संतों को एकजुट होकर इस रामविरोधी सरकार के  खिलाफ कार्रवाई करना होगी तथा 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सरकार को सबक सिखाया  जाएगा। 
 
वहीं शिवसेना के संतोष दुबे ने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि जब यह सरकार  एससी-एसटी एक्ट पर अध्यादेश ला सकती है, विधेयक बना सकती है तो अयोध्या में श्रीराम  जन्मभूमि निर्माण पर भी ये अविलंब विधेयक लाए। अगर ये ऐसा नहीं करती है तो आने वाले  लोकसभा चुनाव में उसे इसके नतीजे भुगतने होंगे।
 
अब यह भाजपा की केंद्र सरकार के लिए निश्चित रूप से गंभीर विषय बन गया है कि अयोध्या  के संतों द्वारा उठाए गए सवालों का वह क्या जवाब देती है और उसके उपरांत संतों का क्या रुख  होता है? 

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