100 रुपए में बाल काटता है अरबपति नाई!

Webdunia
शनिवार, 30 मई 2015 (13:03 IST)
बेंगलुरु। क्या आप कभी हेयर कटिंग सैलून में जाते हैं और किसी अरबपति नाई से बाल कटवाते हैं और बाल कटवाने के लिए कम से कम एक सौ रुपए देते हैं? लेकिन यहां के चिन्नास्वामी स्टेडियम के पास इनर स्पेस सैलून में आप कारोबारी जी. रमेश बाबू से मिलेंगे जो कि अपने ग्राहकों से बात करते हुए मनपसंद हेयरस्टाइल देते हैं। ऐसा वे प्रतिदिन करते हैं जबकि लक्जरी कारों को किराए पर देने का उनका एक बड़ा कारोबार है।     

रमेश के दादा-दादी अनंतपुर के रहने वाले हैं और उनकी रंक से राजा बनने की कहानी के गवाह हैं। उन्होंने 2004 में टैक्सी का कारोबार शुरु किया था और तब उनके पास एक मारुति ओमनी वैन थी, लेकिन आज उनके पास 256 लक्जरी कारें हैं जिनमें एक रॉल्स रॉयस, 6 बीएमडब्ल्यू, 9 मर्सीडीज, 1 जगुआर, तीन ऑडीज और अन्य बहुत सी कारें हैं।

रमेश बताते हैं कि मैंने अपनी कारों को इंटेल को किराए पर देना शुरू किया और आसपास के छोटे मोटे ग्राहक भी थे। चूंकि मैं अच्छी स्थिति में था इसलिए मैंने एक साहसिक कदम उठाया और मैंने पहली ई क्लास मर्सीडीज खरीदी। उस समय कोई किराए पर टैक्सी देने की सेवा नहीं चलती थी, इसलिए मैंने लक्जरी कारों को किराए पर देना शुरू किया और इन्हें लेने वाले बड़े डेलीगेट्‍स भी थे। इसके बाद रमेश ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। छोटे शहरों के स्टारों से लेकर राजनेताओं ने मेरी कारों में सफर किया है।

वे कहते हैं कि उनके पास ग्राहकों की कमी नहीं थी और बड़े-बड़े लोगों ने उनकी कारों का इस्तेमाल किया है। एश्वर्या रॉय बच्चन से लेकर अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान तक ने मेरी कारों में सैर की है। लेकिन रमेश प्रतिदिन अपनी बाल काटने की दुकान पर जाते हैं और वे अपनी जड़ों से दूर नहीं होना चाहते हैं।

वे कहते हैं कि प्रत्येक दिन सुबह 6 बजे मैं जागता हूं और कामकाज देखने के लिए गैराज जाता हूं। इसके बाद साढ़े दस बजे अपने ऑफिस में आ जाता हूं और प्रत्येक शाम को बिना नागा किए साढ़े पांच बजे अपने सैलून पहुंच जाता हूं। ऐसे भी काफी लोग हैं जो कि केवल मुझसे ही बाल कटवाने के लिए आते हैं। मेरे ऐसे ग्राहक कोलकाता और मुंबई से भी आते हैं।

रमेश अपने बच्चों को भी बाल काटने का काम सिखा रहे हैं। उनकी दो बेटियां और एक बेटा है। उनका कहना है कि यह कुशल काम है और उन्हें इस काम को सीखना ही होगा। कभी कभी मैं उन्हें अपने साथ दुकान पर भी ले आता हूं। लेकिन वे अभी भी सीखने के लिए छोटे हैं। जब तक मैं यहां हूं और उम्मीद करता हूं कि इसके बाद भी मैं सुनिश्चत करूंगा कि सैलून सफलतापूर्वक चलता रहे। जबतक परिवार समेत बाहर न जाना हो तब तक मैं छुट्‍टी नहीं लेता। मैंने हमेशा ही विश्वास किया है कि काम ही पूजा है। यह वह जगह है जहां से मै अपनी रोजी-रोटी कमाता हूं।

रमेश अपने घर में तेलुगू और कन्नड़ बोलते हैं। तेलुगू में एक कहावत है कि 'अपना अतीत कभी ना भूलो चाहे आपने जिंदगी में कितनी ही बड़ी सफलता क्यों ना हासिल कर ली हो। मैं इस बात पर पूरे दिल से विश्वास करता हूं।' बारहवीं की पढ़ाई करते समय उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था लेकिन बाद में आईटीआई से इलेक्ट्रॉनिक्स में डिप्लोमा लिया।

वे हर तरह से एक सुखी आदमी हैं, बच्चे उनका सम्मान करते हैं और घर के बड़े बुजुर्ग उनसे सलाह लेते हैं। उन्हें हरेक व्यक्ति से प्रोत्साहन मिला है। जब उनसे पूछा गया कि बेंगलुरु में इतनी सफलता हासिल करने के बाद क्या वे कभी हैदराबाद आएंगे? इस पर उनका उत्तर होता है कि वास्तव में मैं विजयवाड़ा में कामकाज शुरू करने की योजना बना रहा हूं। उस शहर में बहुत सारी संभावनाएं हैं।
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