जोशीमठ। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी शनिवार दोपहर को चमोली जिले के जोशीमठ पहुंचे। उन्होंने यहां भूधंसाव का निरीक्षण किया। इस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि जोशीमठ हमारा पौराणिक शहर है। उत्तराखंड सरकार इस मामले पर अलर्ट है। हमारा मकसद सबको बचाना है। प्रभावितों के विस्थापन के लिए वैकल्पिक जगह तलाशी जा रही है। इमारतों में दरारें पड़ने संबंधी चेतावनियों की अनदेखी करने को लेकर स्थानीय लोगों में सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश दिखाई दिया।
उत्तराखंड के जोशीमठ में बड़े पैमाने पर चल रहीं निर्माण गतिविधियों के कारण इमारतों में दरारें पड़ने संबंधी चेतावनियों की अनदेखी करने को लेकर स्थानीय लोगों में सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश है। स्थानीय लोग इमारतों की खतरनाक स्थिति के लिए मुख्यत: राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (एनटीपीसी) की तपोवन-विष्णुगढ़ परियोजना को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संजोयक अतुल सती ने कहा, हम पिछले 14 महीने से अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन हमारी बात पर ध्यान नहीं दिया गया। अब जब स्थिति हाथ से निकल रही है तो वे चीजों का आकलन करने के लिए विशेषज्ञों की टीम भेज रहे हैं।
उन्होंने कहा, अगर समय रहते हमारी बात पर ध्यान दिया गया होता तो जोशीमठ में हालात इतने चिंताजनक नहीं होते। सती ने बताया कि नवंबर 2021 में जमीन धंसने की वजह से 14 परिवारों के घर रहने के लिए असुरक्षित हो गए थे।
उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद लोगों ने 16 नवंबर 2021 को तहसील कार्यालय पर धरना देकर पुनर्वास की मांग की थी और एसडीएम को ज्ञापन सौंपा था, जिन्होंने (एसडीएम) खुद भी स्वीकार किया था कि तहसील कार्यालय परिसर में भी दरारें पड़ गई हैं।
सती ने सवाल किया, अगर सरकार समस्या से वाकिफ थी तो उसने इसके समाधान के लिए एक साल से अधिक समय तक कोई कदम क्यों नहीं उठाया। यह क्या दर्शाता है? उन्होंने कहा कि लोगों के दबाव के चलते एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ परियोजना और हेलांग-मारवाड़ी बायपास के निर्माण को अस्थाई रूप से रोकने जैसे तात्कालिक कदम उठाए गए हैं, लेकिन यह समस्या का स्थाई समाधान नहीं है।
सती ने कहा, जोशीमठ के अस्तित्व पर तब तक खतरा बरकरार रहेगा, जब तक इन परियोजनाओं को स्थाई रूप से बंद नहीं कर दिया जाता।उन्होंने कहा कि जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ऐसा न होने तक अपना आंदोलन जारी रखेगी।
बद्रीनाथ मंदिर के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने भी इमारतों में दरार पड़ने के लिए एनटीपीसी की परियोजनाओं को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, तपोवन-विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना की सुरंग जोशीमठ के ठीक नीचे स्थित है। इसके निर्माण के लिए बड़ी बोरिंग मशीनें लाई गई थीं, जो पिछले दो दशक से इलाके में खुदाई कर रही हैं।
उनियाल ने कहा, सुरंग के निर्माण के लिए रोजाना कई टन विस्फोटकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। एनटीपीसी द्वारा बड़ी मात्रा में विस्फोटकों का इस्तेमाल करने की वजह से इस साल तीन जनवरी को जमीन धंसने की रफ्तार बढ़ गई। वह लोगों से किया वादा तोड़ने को लेकर भी एनटीपीसी से नाराज हैं।
उन्होंने कहा, एनटीपीसी ने पहले भरोसा दिलाया था कि सुरंग के निर्माण से जोशीमठ में घरों को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। कंपनी ने नगर में बुनियादी ढांचों का बीमा करने का भी वादा किया था। इससे लोगों को फायदा मिलता, लेकिन वह अपने वादे पर खरी नहीं उतरी।
उनियाल ने कहा, हमें वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर बताया जाना चाहिए कि जोशीमठ का भविष्य क्या है। यह रहने लायक है या नहीं। अगर हां तो कितने समय तक। अगर नहीं तो सरकार को हमारी जमीन और घर लेकर हमारा पुनर्वास कराना चाहिए, वरना हम वहां अपनी जान कुर्बान कर देंगे।
आपदा के लिए कौन जिम्मेदार : वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के निदेशक कलाचंद सेन ने कहा कि मानवजनित और प्राकृतिक दोनों कारणों से जोशीमठ में जमीन धंस रही है। उन्होंने कहा कि ये कारक हाल में सामने नहीं आए हैं, बल्कि इसमें बहुत लंबा समय लगा है।
सेन ने कहा, तीन प्रमुख कारक जोशीमठ की नींव को कमजोर कर रहे हैं। यह एक सदी से भी पहले भूकंप से उत्पन्न भूस्खलन के मलबे पर विकसित किया गया था, यह भूकंप के अत्यधिक जोखिम वाले जोन-पांच में आता है और पानी का लगातार बहना चट्टानों को कमजोर बनाता है।
उन्होंने कहा कि एटकिन्स ने सबसे पहले 1886 में हिमालयन गजेटियर में भूस्खलन के मलबे पर जोशीमठ की स्थिति के बारे में लिखा था। यहां तक कि मिश्रा समिति ने 1976 में अपनी रिपोर्ट में एक पुराने सबसिडेंस जोन पर इसके स्थान के बारे में लिखा था।
सेन ने कहा कि हिमालयी नदियों के नीचे जाने और पिछले साल ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक आई बाढ़ के अलावा भारी बारिश ने भी स्थिति और खराब की होगी। उन्होंने कहा कि चूंकि जोशीमठ बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब और औली का प्रवेश द्वार है, इसलिए शहर के दबाव का सामना करने में सक्षम होने के बारे में सोचे बिना क्षेत्र में लंबे समय से निर्माण गतिविधियां चल रही हैं।
उन्होंने कहा कि इससे भी वहां के घरों में दरारें आई हों। उन्होंने कहा कि होटल और रेस्तरां हर जगह बनाए जा रहे हैं। आबादी का दबाव और पर्यटकों की भीड़ का आकार भी कई गुना बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि कस्बे में कई घरों के सुरक्षित रहने की संभावना नहीं है। इन घरों में रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए, क्योंकि जीवन अनमोल है। फोटो सौजन्य : टि्वटर
Edited By : Chetan Gour (इनपुट भाषा)