श्रीनगर में उम्मीद की किरण बन गया है सेना का अस्पताल

Webdunia
शनिवार, 20 सितम्बर 2014 (13:00 IST)
श्रीनगर। ऐसे समय में जब भीषण बाढ़ की वजह से श्रीनगर शहर में पूरा स्वास्थ्य ढांचा निष्प्रभावी हो चुका है, सेना के 92 बेस हॉस्पिटल ने उम्मीद की किरण बनकर 300 से अधिक लोगों की जान बचाई है जिनमें 35 नवजात शिशु शामिल हैं।

यह अस्पताल पूरी कश्मीर घाटी में स्थित सबसे बड़ा सैन्य अस्पताल है। 600 बिस्तरों के इस अस्पताल में काम कर रहे डॉक्टर अपने खुद के घर और परिवारों की चिंता किए बिना दिन रात मरीजों की सेवा में लगे हैं।

रियाज अहमद की तीन महीने की बेटी को जापानी बुखार था और अनतंनाग के जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने बच्ची के बचने की उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन गांव में बाढ़ का पानी घुसने के बाद सेना के एक हेलीकॉप्टर ने उनके परिवार को बचाया और यहां के सेना अस्पताल में लेकर आए जहां उसकी बच्ची का इलाज चल रहा है।

बच्ची का इलाज कर रहे डॉक्टरों ने कहा कि वह पूरी तरह ठीक हो गई है और अब खतरे से बाहर है।

बादामी बाग छावनी इलाके में स्थित 92 बेस हॉस्पिटल के कमांडर ब्रिगेडियर एनएस लाम्बा ने कहा, ‘जब वह यहां आई थी तब उसकी हालत गंभीर थी, लेकिन बच्ची अब ठीक है और हम उसे एक या दो दिन में छुट्टी दे देंगे।’ रियाज ने कहा कि सेना के डॉक्टरों ने उसकी बेटी की जान बचाकर चमत्कार किया है।

उसने कहा, ‘अगर मुझे उनके लिए हजार बार भी अपनी जान देनी पड़े, तो मैं खुशी-खुशी ऐसा करूंगा।’ रियाज ने कहा, ‘इन लोगों ने मुझे और मेरे पूरे परिवार को एक नया जीवन दिया है।’

ब्रिगेडियर लाम्बा ने कहा कि जैसे ही शहर के जीबी पंत बाल अस्पताल में बाढ़ का पानी घुसना शुरू हुआ, सेना के अस्पताल ने वहां भर्ती शिशुओं के लिए अपने दरवाजे खोल दिए।’ उन्होंने कहा, ‘जीबी पंत अस्पताल से आने वाले बच्चों की उम्र 1 दिन से लेकर कुछ महीनों तक थी।’

ब्रिगेडियर लाम्बा ने कहा, ‘उनका अलग-अलग बीमारियों के लिए इलाज चल रहा था। इनमें से कुछ शिशुओं को गंभीर हालत में यहां लाया गया क्योंकि कुछ समय पूर्व प्रसव के मामले थे और उन्हें आईसीयू (सघन चिकित्सा कक्ष) में रखा जाना था।’ उन्होंने कहा कि बाढ़ के बावजूद सेना के डॉक्टर अस्पताल में भर्ती मरीजों की जान बचाने के लिए नियमित रूप से काम पर आ रहे हैं।

ब्रिगेडियर लाम्बा ने कहा, ‘डॉक्टरों और अर्धचिकित्सा कर्मचारियों समेत हमारे 17 अधिकारियों के घरों में अब भी पानी भरा है, लेकिन वह अस्पताल में भर्ती मरीजों की जान बचाने के लिए नियमित रूप से आ रहे हैं।’ नौगाम के रहने वाले गुलाम रसूल (70) के 27 दिन के पोते का अस्पताल के आईसीयू में इलाज चल रहा है। उन्होंने कहा कि वह समय पर मदद उपलब्ध कराने के लिए सेना के आभारी हैं।

रसूल ने कहा, ‘उन्होंने हमसे एक भी पैसे नहीं लिए और बीमार बच्चे को निशुल्क इलाज, दवाइयां उपलब्ध कराने के साथ ही यहां भोजन और आश्रय देकर हमारे परिवार का भी ध्यान रख रहे हैं।’ (भाषा)
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