मुस्लिम लेखक ने की भगवान राम की आलोचना, मचा बवाल

Webdunia
शुक्रवार, 4 सितम्बर 2015 (11:44 IST)
मलयालम लेखक एमएम बशीर ने हाल ही में हिंदुओं के भगवान श्री राम के जीवन से प्रेरणा लेते हुए कुछ स्तंभ लिखे थे। उनके इन स्तंभों में से एक स्तंभ पिछले दिनों मलयालम दैनिक 'मातृभूमि' में तीन अगस्त को प्रकाशित हुआ।
लेकिन जबसे उनका यह लेख अखबार में प्रकाशित हुआ है हिंदू चरमपंथी उन्हें धमकी भरे कॉल्स कर रहे हैं। हिंदू चरमपंथियों को एतराज है कि बशीर मुसमलमान होने के बावजूद राम पर क्यों लिख रहे हैं। साथ ही अखबार के संपादक को भी हर रोज गली-गलौच वाले फोन कॉल्स किए जा रहे हैं। 
 
बशीर के पिछले कॉलम का शीर्षक 'श्री राम का रोष' था। अखबार के संपादक ने उन्हें छह कॉलम लिखने के लिए कहा था, लेकिन पांच कॉलम लिखने के बाद अब उन्होंने कॉलम लिखने बंद कर दिए हैं। 
 
एक अंग्रेजी अखबार को बशीर ने बताया कि हर दिन मुझे रामायण पर लिखने के कारण गाली गलौच वाले फोन कॉल्स आते हैं। 75 साल की उम्र में मैं केवल मुस्मिल बनकर रह गया हूं। कलीकट विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे बशीर ने बताया कि फोन करने वाले मुझसे पूछते हैं कि मुझे श्री राम की आलोचना करने का क्या अधिकार है?
 
मेरे लेख वाल्मीकि रामायण पर आधारित हैं। वाल्मीकि ने राम को मानवीय विशेषताओं के रूप में प्रस्तुत किया है और उन्होंने श्री राम के द्वारा किए गए कार्यों की आलोचना व समालोचना दोनों की है।  
 
कॉल करने वाले लोग वाल्मिकि द्वारा भगवान राम की आलोचना को अपवाद के रूप में लिया जा रहा है। ज्यादातर कॉल करने वालों ने इस संबंध में मेरा पक्ष नहीं सुना बल्कि मुझे सीधे गाली देना शुरू कर दिया। 
 
बशीर ने आगे बताया कि जिन कॉलरों ने धैर्य धरके मेरे से बात की मैंने उनसे बताया कि पिछले साल मैंने अध्यात्म रामायण के बारे में लिखा था जिसमें मैंने भगवान राम के बारे में बात की थी। लेकिन उन कॉलरों में बहुत कम लोग दोनों लेखों के बारे में अंतर जानते थे और जो जानते थे उनमें से बहुत कम इस बात की परवाह करते थे। बहुत से कॉलर इस बात पर अड़े रहे कि मैंने मनुष्यों के गुणों की तुलना राम से इसलिए की है क्योंकि मैं मुस्लिम हूं।                 
बशीर धर्म से मुस्लिम जरूर हैं लेकिन वे कभी भी किसी धार्मिक ग्रुप से जुड़े नहीं रहे। वे वृहद रूप से एक शिक्षक के रूप में प्रख्यात हैं और वे मलयामल साहित्य के आधुनिक आंदोलन से जुड़े हुए हैं। 
 
'मातृभूमि' अखबार में रामायण पर उन्होंने जो पांच टिप्पणियां लिखीं, वह सीता की अग्निपरीक्षा पर वाल्मीकि द्वारा राम की कथित आलोचना से जुड़ी थीं। ये लेख कवि वाल्मीकि की विद्वता व उत्कृष्टता को जाहिर करते हैं।  
 
मानवीय दशा पर लिखते समय उनकी अंतरदृष्टि पता चलती है। इसमें कहीं राम का अपमान नहीं है। दैनिक मातृभूमि से जुड़े सूत्र ने इस बात की पुष्टि की पिछले दिनों संपादकीय डेस्क में कई बार ऐसे फोन आए, जिनमें लेखक और अखबार को बुरा-भला कहा गया। उन्हें इस बात पर आपत्ति थी कि एक मुसलमान को रामायण पर लिखने को क्यों कहा गया। फोन करने वालों ने अपने नाम नहीं बताए और ना ही किसी संगठन का नाम लिया।
 
हालांकि एक राजनैतिक दल के सहयोगी संगठन ने कोझीकोड में अखबार के दफ्तर के पास पोस्टर लगाकर अपने आरोप दोहराए। एक हिंदूवादी संगठन ने कुछ माह पहले ‘किस आफ लव’ का विरोध करने वालों की गिरफ्तारी पर शहर में तोड़फोड़ की थी।
 
वैसे यह पहला मौका है जब धार्मिक पहचान के आधार पर, रामायण पर लिखने पर किसी मलयालम लेखक के खिलाफ कोई अभियान चलाया गया। अतीत में कुछ ईसाई और इस्लामी कट्टरपंथियों ने जरूर लेखकों और रंगकर्मियों को निशाना बनाया और उनके काम पर रोक की मांग की थी।
 
इस बाबत मातृभूमि के संपादक केशव मेनन का कहना है कि यह घटनाक्रम केरल में बढ़ते सांप्रदायिक विभाजन की ओर इशारा करता है जिस कारण खबरों और विचारों को लेकर असहिष्णुता बढ़ती जा रही है। उनका मानना है कि जो धार्मिक आस्थाओं के नाम पर गड़बड़ी फैलाते हैं, वे समुदाय के कुछ ही लोग हैं। लेकिन विभिन्न समुदायों के मुख्यधारा के संगठन उनकी आलोचना करने से बचते हैं। 
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