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ब्रज में होली की खुमारी, भक्त राधा-कृष्ण के रंगों में हुए सराबोर

हमें फॉलो करें ब्रज में होली की खुमारी, भक्त राधा-कृष्ण के रंगों में हुए सराबोर

हिमा अग्रवाल

, बुधवार, 16 मार्च 2022 (12:52 IST)
18 मार्च को होली का पर्व पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। लेकिन मथुरा के बरसाने और नंदगांव में होली की धूम करीब 10 दिन पहले से शुरू हो जाती है। यहां की लट्ठमार होली खेलने के लिए लोग देश-विदेश से पहुंचते हैं और रंगों की खुमारी में बरबस रंग जाते है। आखिर ऐसा क्या है बरसाने और नंदगांव की होली में? अकेले बरसाने-नंदगांव में ही क्यों खेली जाती है लट्ठमार होली? गोकुल में क्यों खेली जाती है छड़ीमार होली? आइए जानते हैं इस विश्वप्रसिद्ध होली की कहानी।

 
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बरसाने में लट्ठमार होली की परंपरा काफी पुरानी है। लट्ठमार होली को राधा-कृष्ण के प्रेम प्रतीक के रूप में देखा जाता है। मान्यता है कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने राधारानी और गोपियों के साथ लट्ठमार होली खेली थी इसलिए तब से आज तक यह परंपरा चली आ रही है।
 
वर्ष 2022 में राधारानी की नगरी बरसाने और कान्हा की नगरी नंदगांव में लट्ठमार होली खेली जा चुकी है और इसकी खुमारी अब हर ब्रजवासी के दिलों में हिलोरें लेने लगी हैं जिसके चलते ब्रज के अन्य क्षेत्रों में होली खेली जा रही है।

 
ब्रज में होली के 1 माह पहले से ही लट्ठमार होली की तैयारी शुरू हो जाती है। लट्ठमार होली खेलने के लिए 1 महीने से नंदगांव हुरियारिनें लाठियों को तेल पिलाने लगती हैं। होली खेलने के लिए हुरियारिनें अपनी पारंपरिक पोशाकों में सज-धजकर बरसाने से नंदगांव आए हुरियारों के साथ लट्ठमार होली खेलती हैं।
 
नंदगांव में लट्ठमार होली की परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे देखने के लिए लाखों लोग व देश-विदेश से पर्यटक पहुंचते हैं। लट्ठमार होली सबसे पहले बरसाने में शुरू होने के बाद नंदगांव में खेली जाती है। नंदगांव वही स्थान है, जहां श्रीकृष्ण भगवान कण-कण में रहते थे और उनके पालक पिता नंद बाबा से रिश्ता होने के कारण यह स्थान प्रसिद्ध तीर्थ बन गया है। नंदगांव में ऐसे कई तीर्थस्थल हैं, जो आज भी कृष्ण से संबंध रखते हैं।

 
मथुरा नंदगांव में शनिवार को रंगों की झमाझम बारिश शुरू हो चुकी है। होली की मस्ती और हर्षोल्लास का यह पर्व विभिन्न संस्कृतियों के साथ नंद के आंगन में अपनी आकृष्ट छवि बिखेरता नजर आया। यहां पर ग्वालिनों ने अपने चेहरे पर मर्यादा का लंबा घूंघट निकाल रखा था। घूंघट की आड़ से उनके होंठों पर हल्की मुस्कान और हाथों में लट्ठ प्रेम और हास-परिहास की मस्ती में सबको सराबोर करता नजर आया। वहीं हुरियारिनों के प्रेम से पगे लट्ठ खाने के लिए हुरियारों का उल्लास होली के रंगों को और गहरा करता रहा है। बरसाना में जाकर राधारानी की सखियों ने प्रेमपगे होली के लट्ठ से हुरियारों को सबक सिखाया।
 
मथुरा की नंद गलियों में हास-परिहास का संगम सबका मन मोह लेता है, वहीं नंद के आंगन में वातावरण को मदहोश कर देने वाली मस्ती कृष्ण, बलराम और राधारानी की होली परंपरा को आज भी जीवंत करती नजर आ रही है। इस होली का आनंद उठाने के लिए देश के कोने-कोने से लोग यहां पर आए हुए हैं। होली के इन यादगार पलों को यहां आए भक्त मोबाइल में कैद करके अपने साथ ले जाने को आतुर नजर आए।
 
वहीं गोकुल में 16 मार्च को छड़ीमार होली खेली जा रही है। यहां पर गोपियां बालकृष्ण के साथ होली खेलने के लिए छोटी व पतली छड़ियां लेकर निकलती है। माना जाता है कि लाठी से होली खेलते समय चोट लग सकती है, रंग में भंग पड़ सकता है, इसलिए यहां छोटी-छोटी छड़ियों से ही होली खेली जाती है।

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