किसानों को जाति, संप्रदाय में बांट दिया : हुकुमदेव नारायण यादव

Webdunia
रविवार, 5 फ़रवरी 2017 (17:51 IST)
नई दिल्ली। भाजपा सांसद हुकुमदेव नारायण यादव ने आरोप लगाया कि पिछले 65 वर्षों में किसानों को जाति और संप्रदाय में बांटने का प्रयास किया गया जिसके कारण किसान एक वर्ग के रूप में नहीं उभर सका और उसका शोषण होता रहा। मोदी सरकार किसानों को मजबूत बनाने का पुरजोर प्रयास कर रही है जिसका उदाहरण गांव, गरीब और किसान को समर्पित बजट है। 
 
हुकुमदेव नारायण यादव ने बातचीत में कहा कि किसान आज जाति और संप्रदाय की चक्की में पिसता जा रहा है और इसी कारण से उसका शोषण होता है। आज तक किसान एक वर्ग नहीं बन पाया। जिस दिन किसान एक वर्ग के रूप में संगठित हो जाएगा, अपने वर्ग हित को समझ लेगा और राजसत्ता का सहयोगी बनेगा, उस दिन उसका भाग्य और भविष्य दोनों बदल जाएगा। 
 
उन्होंने कहा कि पिछले 65 वर्षों से किसानों का शोषण हो रहा है और अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार स्थितियों को बदलने की पुरजोर कोशिश कर रही है जिसका उदाहरण केंद्रीय बजट है।
 
कृषि संबंधी संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष यादव ने कहा कि बजट की दिशा गांव, गरीब और किसान तथा मजदूर, पिछड़े वर्ग, दलित और महिलाओं पर केंद्रित है तथा इनके सशक्तीकरण तथा बहुआयामी विकास के लिए यह स्वर्णिम बजट है। खेती आज मजबूरी का विषय बन गया है। किसान को अगर आजीविका का दूसरा विकल्प मिल जाए तो वह खेती करने को तैयार नहीं होता है। हमारी सरकार खेती को लाभप्रद बनाने का प्रयास कर रही है। बजट इसी दिशा में एक पहल है। 
 
हुकुमदेव नारायण यादव ने वरिष्ठ समाजवादी चिंतक राममनोहर लोहिया को उद्धृत करते हुए कहा कि जहां कोई एक पेशा बिलकुल एक जाति के गिरोह में बंध जाया करता है और जब गिरोहबाजी आ जाती है तो लोग एक-दूसरे को लूटने की कोशिश करते हैं इसलिए आज जो इतना व्यापक भ्रष्टाचार है, हर स्तर पर वह तब तक जारी रहेगा जब तक यह जाति प्रथा वाला मामला चलता रहेगा। उन्होंने कहा कि इसलिए आज सबसे बड़ी चुनौती जाति प्रथा के जाल को तोड़ना है और तभी समग्र विकास सुनिश्चित किया जा सकेगा।
 
भारत में भूमि सुधार के बारे में एक सवाल के जवाब में भाजपा सांसद ने कहा कि अभी तक समग्र भूमि सुधार नहीं हो पाया है, भूमि का वितरण भूमि सुधार नहीं हो सकता है। जमीन के बड़े टुकड़े को छोटा बना देना, भूमि सुधार का एकमात्र तरीका नहीं हो सकता है।
 
यादव ने कहा कि भूमि सुधार का मतलब बंजर जमीन को उपजाऊ बनाना, असिंचित क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा मुहैया कराना, जमीन का उत्पादन और उत्पादकता एवं गुणवत्ता बढ़ाना तथा निरंतरता बनाए रखने की व्यवस्था करना है। यह सब लागू होगा तब ही सही अर्थों में भूमि सुधार लागू हुआ कहा जा सकता है। शासन एवं सामाजिक व्यवस्था में बदलाव की जरूरत को रेखांकित करते हुए हुकुमदेव नारायण यादव ने कहा कि वर्तमान सरकार इस दिशा में प्रयास कर रही है।
 
उन्होंने लोहिया को उद्धृत करते हुए कहा कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी नंबर 1 का राजा (जो सत्ता के शीर्ष पर होता है) तो बदलता रहता है। दुनियाभर में बदलता रहता है। चुनाव के बाद बदलने की संभावना रहती है लेकिन नंबर 2 के राजा ज्यों के त्यों बने रहते हैं और बदलती सत्ता से जुड़ जाते हैं। संपूर्ण क्रांति वहीं मुकम्मिल हुआ करती है, जहां नंबर 1 राजा के साथ नंबर 2 राजा भी बदल जाए। (भाषा)
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