बार-बार सीजफायर उल्लंघन से बिगड़ चुके हैं हालात सीमांत क्षेत्रों के

सुरेश एस डुग्गर
शुक्रवार, 8 जून 2018 (21:47 IST)
जम्मू। सीमाओं पर पाक सेना द्वारा बार-बार सीजफायर का उल्लंघन किए जाने से हालात बिगड़ते जा रहे हैं। नतीजतन सीमावासियों की रातों की नींद और दिन का चैन फिर से छिन चुका है। बढ़ती गोलाबारी के कारण वे चिंता में हैं कि तारबंदी के पार के खेतों में वे फसलें बोएं या नहीं? हालांकि अप्रत्यक्ष तौर पर बीएसएफ और सेना उन्हें करने से मना करने लगी हैं। यही नहीं, एलओसी पर पाकिस्तान की गोलाबारी से सीमांतवासियों में दहशत बरकरार है।
 
 
गोलाबारी प्रभावित परिवारों के लिए बनाए गए कैम्पों में रह रहे परिवारों की संख्या बढ़ रही है।
बॉर्डर पर पाक रेंजरों द्वारा सीजफायर तोड़कर गोलीबारी करने से सीमा से सटे गांवों के लोगों में दहशत है। लोग आने वाले समय के बारे में सोचकर सहम जाते हैं। आरएसपुरा के सीमावर्ती गांवों के सरवन सिंह, जरनैल सिंह व सौदागर सिंह के बकौल जब भी बॉर्डर पर पाक की तरफ से गोलीबारी होती है तो उसका असर गांव पर पड़ता है।
 
वे कहते हैं कि अभी वर्ष 1998-99 के जख्म भरे भी नहीं हैं। जीरो लाइन पर स्थित जमीनों पर जब हम फसल लगाने जाते हैं तो पता नहीं होता कि घर लौटेंगे की नहीं? फसल पकने तक दोनों देशों का माहौल ठीक रहेगा या नहीं? पता नहीं फिर कब खेतों में माइन लगा दी जाएं और हम शरणार्थी बन जाएं?
 
कभी परगवाल, अखनूर, कभी अब्दुल्लियां, कभी सांबा में गोलीबारी आम लोगों की नींद उड़ा रही है। आम लोग चाहे हिन्दुस्तान के पिंडी चाढ़कां, काकू दे कोठे, पिंडी कैंप के लोग हों या पाकिस्तान के वे गांव जो बॉर्डर के साथ लगते हैं, जैसे चारवा, बुधवाल, ठिकेरेयाला, तमाला व जरोवाल गांव के लोग कभी नहीं चाहते कि बॉर्डर पर फायरिंग हो। वहीं सीमावर्ती गांवों में तैनात विलेज डिफेंस कमेटी के सदस्य नरेश सिंह कहते थे कि वे जरा सी आहट होने पर गांववासियों की रक्षा के लिए सीना तानकर दुश्मन का सामना करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
 
आरएसपुरा, सांबा और अखनूर सेक्टर में भी आए दिन पाकिस्तानी सेना द्वारा गोलीबारी करने से सीमांत किसान काफी डरे व सहमे हुए हैं। इतना ही नहीं, यदि हालात बिगड़ते हैं तो आरएसपुरा सेक्टर के कुल 28 सीमांत गांव के किसानों की हजारों एकड़ कृषि भूमि प्रभावित हो सकती है। ऐसे में सीमावर्ती गांवों के किसान भगवान से यही दुआ कर रहे हैं कि हालात सामान्य बने रहें।
 
सीमांत गांव चंदू चक निवासी कृष्णलाल का कहना था कि पिछले कुछ सालों से सीमा पर गोलीबारी न होने से सीमांत गांव के लोग राहत महसूस कर रहे थे। एक बार फिर से पड़ोसी देश द्वारा की जा रही फायरिंग से लोग परेशान हैं। सीमांत गांव सुचेतगढ़ निवासी सरवन चौधरी की ही तरह कई सीमावासी असमंजस में हैं कि धान की फसल की रोपाई करें या नहीं? हालांकि अभी भी एलओसी से सटे कुछ गांवों के लोगों ने अपने घर नहीं छोड़े हैं। पिछले 1 सप्ताह के दौरान राहत शिविरों में शरण लेने वाले नौशहरा के परिवारों की संख्या 1,000 तक पहुंच गई है।
 
अधिकारियों ने बताया कि सीमा पर पिछले करीब 40 दिनों से खराब हालात प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं। विभाग के अधिकारी दिन-रात काम कर रहे हैं और गोलाबारी से हुए घरों, माल-मवेशी व फसलों को हुए नुकसान का आकलन करने के लिए संयुक्त टीमें बनाई गई हैं। उन्होंने बताया कि लोगों को पाकिस्तान की ओर से होने वाली गोलाबारी से बचाने के लिए सामुदायिक सहयोग से हर घर में बंकर बनाने की योजना पर भी काम हो रहा है।

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