जर्मनी के खेल के मैदानों में भी गूंजेगी जोधपुर की सीटी

Webdunia
रविवार, 27 जनवरी 2019 (14:02 IST)
जयपुर। जर्मनी की एक प्रमुख कंपनी ने जोधपुर के कारीगरों को 15,000 सीटियों (व्हिसल) का बड़ा ऑर्डर दिया है। अपनी जोरदार गूंज और मजबूती के लिए चर्चित जोधपुर की हाथ से बनी नफासती सीटियां इस समय न केवल जर्मनी बल्कि यूरोप के कई अन्य देशों में अपनी धाक जमा रही हैं। यह अलग बात है कि इन्हें बनाने वाले कारीगरों की संख्या लगातार कम हुई है।
 
 
दरअसल, यूरोपीय देशों में ऐसे खेलों की हमेशा से ही धूम रही है जिनमें मैच रैफरी की सीटी से चलता है। चाहे वह फुटबॉल हो, हैंडबॉल, बास्केटबॉल हो या फिर हॉकी। यही कारण है कि यूरोप में सीटी का बड़ा बाजार है। लेकिन पहले जहां धातु से बनी सीटियां चलती थीं, बाद में उसकी जगह प्लास्टिक वाली रंग-बिरंगी तथा नई-नई डिजाइन वाली सीटियां आ गईं। कारीगरों द्वारा पशुओं की सींग व हड्डियों से बनी सीटियां उस स्तर पर लोकप्रिय नहीं रहीं फिर भी अपनी विशेष दमदार आवाज के चलते उन्होंने अलग पहचान बनाई है।
 
जोधपुर हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भरत दिनेश ने बताया कि इन सीटियों को बनाने में मुख्य रूप से पशुओं के सींग और हड्डियों का इस्तेमाल होता है। सींग से बनने वाली सीटी की गूंज बहुत अच्छी, दमदार व अलग होती है। शौकीन लोग इन पर चांदी का काम भी करवा लेते हैं। यह पूरी तरह से कारीगरों द्वारा हाथ से बनाई जाती है। इसी कारण इनकी मांग है। अभी जर्मनी के एक स्टोर ने यहां की लगभग 15,000 सीटियों का ऑर्डर दिया है, जो बड़ा ऑर्डर है।
 
दिनेश बताते हैं कि इन सीटियों का निर्माण और निर्यात दोनों ही बड़ी मेहनत और समय मांगता है। इन सीटियों के निर्यात से पहले 3 तरह की एनओसी ली जाती है। पहले पशु चिकित्सक प्रमाण पत्र देता है कि इन्हें बनाने में किसी बीमारी से मरे जानवर की हड्डियों का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसके अलावा वन्यजीव अपराध ब्यूरो एक प्रमाण पत्र देता है कि इनमें संरक्षित या संकटापन्न श्रेणी के जीव के हड्डियों या सींगों का उपयोग नहीं किया। इसी तरह एक एनओसी इनके 'इन्फेक्शन फ्री' होने की लगती है। उसके बाद इनका निर्यात किया जाता है।
 
ऐसा नहीं है कि जोधपुर के हस्तशिल्प कारीगरों की बनाई सीटियों को पहली बार ऐसा कोई ऑर्डर मिला है। उन सभी देशों में जहां खेलों में रैफरी सीटी का इस्तेमाल करते हैं, ये सीटियां जाती और बिकती हैं। पिछले साल रूस में हुए फुटबॉल विश्व कप की ही बात करें तो उसमें भी जोधपुरी कारीगरों द्वारा बनाई सीटी की गूंज सुनाई दी थी, हालांकि यह चिंता की बात है कि इन सीटियों को बनाने वाले कारीगर लगातार कम हो रहे हैं।
 
इस बारे में पूछने पर भरत दिनेश ने बताया कि यह सारा हाथ का काम है। इसमें भी विशेषकर बिसायती और खैरादी परिवारों के कुछ लोग ही यह काम करते हैं। चूंकि नई पीढ़ी यह काम करना नहीं चाहती इसलिए ऐसी 'सीटियां बनाने वाले हाथ' भी कम हो रहे हैं। (भाषा)
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

मोहन भागवत के बयान पर भड़के असदुद्दीन ओवैसी, बोले- RSS और मुसलमान समंदर के 2 किनारे हैं जो...

Operation Sindoor से Pakistan में कैसे मची थी तबाही, सामने आया नया वीडियो

लश्कर का खूंखार आतंकी सैफुल्लाह खालिद पाकिस्तान में ढेर, भारत में हुए 3 बड़े आतंकी हमलों में था शामिल

दरवाजे पर बारात और दुल्हन ने दुनिया को कहा अलविदा, झोलाछाप डॉक्टर के कारण मातम में बदली खुशियां

हिमाचल में साइबर हैकरों ने की 11.55 करोड़ की ठगी, सहकारी बैंक के सर्वर को हैक कर निकाले रुपए

सभी देखें

नवीनतम

ममता बोलीं, केंद्र से औपचारिक अनुरोध प्राप्त होने पर ही बहुदलीय राजनयिक मिशन में वे अपने प्रतिनिधि भेजेंगी

उत्तराखंड में अर्धसैनिक बलों के जवानों से मिले केन्द्रीय मंत्री जेपी नड्‍डा

भोपाल में 8 हजार पेड़ काटने की तैयारी के विरोध में प्रदर्शन, पेड़ों से चिपककर और रक्षा सूत्र बांध कर विरोध प्रदर्शन

Priyanka Senapati: कौन हैं यूट्यूबर प्रियंका सेनापति? पाकिस्‍तानी जासूस ज्योति मल्होत्रा से क्‍या है कनेक्‍शन?

बेंगलुरु में 24 घंटों में 4 इंच बारिश, जगह जगह जलभराव से यातायात बाधित, IMD का और भी वर्षा का अलर्ट

अगला लेख