कश्मीर में पत्थरबाजों को मिलते हैं 7 हजार, बोनस अलग

सुरेश एस डुग्गर
जम्मू। 'सच' अब सच साबित हो गया है कि नोटबंदी से पत्थरबाजी का बिजनेस कम नहीं हुआ है, बल्कि उल्टे अब पत्थरबाजों को जुमे के दिन पत्थर फैंकने के 300 रुपए बोनस के रूप में मिलने लगा है जबकि प्रतिमाह उन्हें 7 से 10 हजार रुपए मिल रहा है। यह बात अलग है कि अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी इन पत्थरबाजों का बचाव करते हुए कहते थे कि उनका नियंत्रण पाकिस्तान से नहीं हो रहा है।
 
सनद रहे कि पत्थरबाजी के लिए युवाओं को अच्छी खास रकम भी अदा की जा रही है। घाटी में जब पिछले वर्ष जुलाई में हिजबुल मुजाहिद्दीन कमांडर बुरहान वानी को मारा गया, तब से ही इस तरह की पत्थरबाजी का ट्रेंड चल निकला। अब एक न्यूज चैनल की ओर से एक स्टिंग में सामने आया है कि इस पत्थरबाजी के लिए युवाओं को 7 हजार से लेकर 10 हजार रुपए तक अदा किए जा रहे हैं। इन पत्थरबाजों को उनके अंडरग्राउंड हो चुके आकाओं की ओर से सुरक्षाबलों, सरकारी अधिकारियों और संपत्ति को नुकसान करने के लिए कीमत अदा की जाती है।
 
इस चैनल के स्टिंग में कुछ युवाओं से बात की गई है और उन्होंने बताया है कि कैसे हर माह उन्हें इन सबके लिए तनख्वाह पर रखा गया है। जो युवा इस स्टिंग में नजर आ रहे हैं उनका नाम है जाकिर अहमद भट, फारुख अहमद लोन, वसीम अहमद खान, मुश्ताक वीरी और इब्राहिम खान ओर इन सभी ने कई हैरान कर देने वाले खुलासे किए हैं।
 
जाकिर अहमद भट की मानें तो हर माह सुरक्षाबलों पर पथराव के लिए 7,000 से 10,000 रुपए और कपड़े और कभी-कभी इन्हें जूते तक दिए जाते हैं। उसने कैमरे पर कुबूल किया है कि उसे इस बात को कोई भी गम नहीं है कि सेना और सीआरपीएफ के अलावा जम्मू कश्मीर पुलिस पर हमला करने के लिए उसे विदेशों से पैसे मिलते हैं। उसने कहा है, 'हम सुरक्षाबलों, सेना के जवानों और जम्मू कश्मीर पुलिस के जवानों के अलावा विधायकों और सरकारी गाड़ियों पर हमला करते हैं।'
 
भट ने उन लोगों के बारे में कुछ भी बताने से साफ इंकार कर दिया जो उसे ऐसा करने के लिए पैसे देता है। उसने कहा कि वह मर जाएगा लेकिन उन लोगों के नाम नहीं बताएगा जो उन्हें पैसे देते हैं। यह उसकी रोजी रोटी का सवाल है।
 
इस बीच हुरियत कांफ्रैंस (जी) चेयरमैन सैयद अली शाह गिलानी ने कहा कि जम्मू कश्मीर में लंबे समय से पत्थरबाजी को प्रतिरोध के उपकरण के रुप में इस्तेमाल किया जा रहा है। गिलानी ने कहा कि पाकिस्तानी को पत्थरबाजी के लिए उकसाने के लिए दोषी ठहराना हास्यास्पद है। भारतीय प्राधिकरण डर से पीड़ित है और जमीनी हालातों को समझने के बजाय वह अनावश्यक रुप से पाकिस्तान को कोस रहे हैं।
 
भारत पर जम्मू कश्मीर के लोगों से अन्याय करने का आरोप लगाते हुए गिलानी ने कहा कि कश्मीरियों के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार से साबित होता है कि भारतीय प्राधिकरण उनसे अन्याय कर रहे है, इसलिए उनका असंतोष और क्रोध दिखाने के लिए लोगों को अधिकार है।
 
पाकिस्तान के खिलाफ आरोपों को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि कश्मीरी लोगों ने मुगल सेना के खिलाफ भी प्रतिरोध और पत्थरबाजी की थी जबकि उस समय पाकिस्तान नक्शे पर मौजूद नहीं था।
 
डोगरा शासन के खिलाफ कश्मीर छोड़ो आंदोलन का हवाला देते हुए गिलानी ने कहा कि लोगों ने उनका असंतोष व्यक्त करते हुए पत्थरबाजी का सहारा लिया था क्योंकि वह डोगरा शासकों के अत्याचारी दृष्टिकोण का विरोध कर रहे थे। आत्मनिर्णय के अधिकार के आंदोलन के दौरान 22 सालों के लिए पत्थरबाजी एक उपाय और विशेषता उपकरण था।
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