सांकेतिक चित्र
श्रीनगर। इस बार कम बर्फबारी का परिणाम है कि श्रीनगर-लेह राजमार्ग को 4 महीने के बाद ही खोल दिया गया है। इसे आज दोनों तरफ के यातायात के लिए खोल दिया गया है। यह इस बार सिर्फ 4 महीनों तक ही बंद रहा है।
अब इस पर वाहन दौड़ने लगे हैं। राजमार्ग पर यातायात बहाल होने से सर्दियों में शेष राज्य से कटे लेह व करगिल के लोगों को राहत मिली है। याद रहे लद्दाख में सर्दियों के 6 महीनों के लिए स्टॉक जुटाने में अगले 5 महीने अहम होंगे।
जानकारी के लिए कि इस राजमार्ग के 4-6 महीनों तक बंद होने से लाखों लोगों का संपर्क शेष विश्व से कट जाता है और ऐसे में उनकी हिम्मत काबिले सलाम है। बात उन लोगों की हो रही है, जो जान पर खेल कर लेह-श्रीनगर राजमार्ग को यातायात के लायक बनाते हैं। बात उन लोगों की हो रही है, जो इस राजमार्ग के बंद हो जाने पर कम से कम 6 माह तक जिंदगी बंद कमरों में इसलिए काटते हैं, क्योंकि पूरे विश्व से उनका संपर्क कट जाता है।
श्रीनगर से लेह 434 किमी की दूरी पर है, पर सबसे अधिक मुसीबतों का सामना सोनमार्ग से द्रास तक के 63 किमी के हिस्से में होती है, पर सीमा सड़क संगठन के जवान इन मुसीबतों से नहीं घबराते हैं। वे बस एक ही बात याद रखते हैं कि उन्हें अपना लक्ष्य पूरा करना है। तभी तो इस राजमार्ग पर बीआरओ के इस नारे को पढ़ जोश भरा जा सकता है जिसमें लिखा होता है- 'पहाड़ कहते हैं मेरी ऊंचाई देखो, हम कहते हैं हमारी हिम्मत देखो।' भयानक सर्दी, तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे। खतरा सिरों पर ही मंडराता रहता है पर बावजूद इसके, बीआरओ के बीकन और प्रोजेक्ट हीमांक के अंतर्गत कार्य करने वाले जवान राजमार्ग को यातायात के योग्य बनाने की हिम्मत बटोर ही लेते हैं।
आप सोच भी नहीं सकते कि मौसम इस राजमार्ग पर कितना बेदर्द होता है। सोनमर्ग से जोजिला तक का 24 किमी का हिस्सा सारा साल बर्फ से ढंका रहता है और इसी बर्फ को काट जवान रास्ता बनाते हैं। रास्ता क्या, बर्फ की बिना छत वाली सुरंग ही होती है जिससे गुजरकर जाने वालों को ऊपर देखने पर इसलिए डर लगता है, क्योंकि चारों ओर बर्फ के पहाड़ों के सिवाय कुछ नजर नहीं आता। याद रहे साइबेरिया के पश्चात द्रास का मौसम सबसे ठंडा रहता है। जहां सर्दियों में अक्सर तापमान शून्य से 49 डिग्री भी नीचे चला जाता है।
राजमार्ग को सुचारु बनाने की खातिर दिन-रात दुनिया के सबसे खतरनाक मौसम से जूझने वाले इन कर्मियों के लिए यह खुशी की बात हो सकती है कि पिछले 3 सालों से किसी हादसे से उनका सामना नहीं हुआ है। सोनमर्ग से जोजिला तक का 24 किमी का हिस्सा बीकन के हवाले है और जोजिला से द्रास तक का 39 किमी का भाग प्रोजेक्ट हीमांक के पास। बीकन के कर्मी इस ओर से मार्ग से बर्फ हटाते हुए द्रास की ओर बढ़ते हैं और प्रोजेक्ट हीमांक के जवान द्रास से इस ओर।
काबिले सलाम सिर्फ बीआरओ के कर्मी ही नहीं बल्कि इस राजमार्ग के साल में कम से कम 6 महीनों तक बंद रहने के कारण शेष विश्व से कटे रहने वाले द्रास, लेह और कारगिल के नागरिक भी हैं। इन इलाकों में रहने वालों के लिए साल में 6 महीने ऐसे होते हैं, जब उनकी जिंदगी बोझ बनकर रह जाती है। असल में 6 महीने यहां के लोग न तो घरों से निकलते हैं और न ही कोई कामकाज कर पाते हैं। जमा-पूंजी खर्च करते हुए पेट भरते हैं। चारों तरफ बर्फ के पहाड़ों के बीच लद्दाख के लोगों को अक्टूबर से मई तक के लिए खाने-पीने की चीजों के अलावा रोजमर्रा की दूसरी चीजें भी पहले ही एकत्र कर रखनी पड़ती हैं।