उत्तरप्रदेश 2016 : सपा-बसपा में बवाल, आगे है चुनावी साल...

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सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को इस वर्ष अप्रत्याशित रूप से पारिवारिक अंतरकलह देखनी पड़ी। एक बार तो ऐसा भी लगा कि सपा में विभाजन हो जाएगा। वर्ष के मध्य में यादव परिवार का घमासान सार्वजनिक हो गया, जब उसके सपा नेता शिवपाल सिंह यादव ने माफिया से नेता बने मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल के सपा में विलय का ऐलान किया। इस फैसले से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव नाखुश थे।
3 दिन बाद ही मुख्यमंत्री के दबाव में विलय रद्द कर दिया गया। उसके बाद सपा में कुछ न कुछ गड़बड़ी होती रही, हालांकि मुलायम ने सबको एकजुट रखने की पूरी कोशिश की। 'मिस्टर क्लीन' की छवि को बनाए रखने के प्रयास में अखिलेश ने दागी खनन मंत्री गायत्री प्रजापति सहित 2 मंत्रियों को राज्य कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
 
इसकी प्रतिक्रिया में मुलायम ने पुत्र अखिलेश को सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया और उनकी जगह चाचा शिवपाल यादव को नया प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। 'जैसे को तैसा' की तर्ज पर अखिलेश ने मंत्री चाचा के विभाग छीन लिए। नाराज चाचा ने मुख्यमंत्री के समर्थक माने जाने वाले कई युवा सपा नेताओं को बर्खास्त कर दिया।
 
मुलायम के चचेरे भाई रामगोपाल यादव पर भी आंच आई। अखिलेश का समर्थन करने तथा राज्यसभा सांसद अमर सिंह का विरोध करने की कीमत उन्हें चुकानी पड़ी और 6 साल के लिए उन्हें सपा से निष्कासित कर दिया गया, हालांकि बाद में उनकी घर वापसी हो गई।
 
विपक्षी दलों ने इस अंतरकलह को लेकर सपा पर लगातार हमले बोले। मुलायम को लगा कि इस घटनाक्रम से सपा की चुनावी संभावनाएं धूमिल हो जाएंगी तो उन्होंने सभी निष्कासन रद्द कर दिए और सबको एकजुट रहने का संदेश दिया ताकि जनता के बीच भी सही संदेश जाए। 
 
बसपा सुप्रीमो मायावती को अंतरकलह से लगा कि अब मुसलमान वोट सपा से कट जाएगा, तब उन्होंने मुस्लिमों से सपा को वोट नहीं देने की अपील करना शुरू कर दिया और दलील दी कि इससे भाजपा को फायदा होगा। प्रदेश में मुसलमानों की आबादी लगभग 20 प्रतिशत है और उनका वोट किसी भी पार्टी की जीत में महत्वपूर्ण माना जाता है।
 
बसपा के लिए भी हालांकि यह वर्ष चुनौतीभरा रहा। मायावती के कई करीबी नेता पार्टी छोड़ गए। इनमें स्वामी प्रसाद मौर्य, आरके चौधरी और ब्रजेश पाठक के नाम प्रमुख हैं। सबको मायावती के काम करने के अंदाज पर आपत्ति थी और कुछ ने उन पर पार्टी के टिकट बेचने का आरोप भी मढ़ा।
 
मतदाताओं को लुभाने की कवायद में भाजपा ने भी 'परिवर्तन यात्रा' शुरू की। इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कई जनसभाएं कीं। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह सहित केंद्र के मंत्रियों और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने भी कई जनसभाओं को संबोधित किया।
 
विरोधियों का मुंह बंद करने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने विकास कार्यों और कल्याण योजनाओं का उल्लेख करते रहे और प्रदेश की जनता को समझाने की कोशिश करते रहे कि सपा दरअसल विकास चाहती है। इस कड़ी में उन्होंने लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे और लखनऊ मेट्रो का लोकार्पण किया।
 
उधर उत्तरप्रदेश में जमीन मजबूत करने में जुटी कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने देवरिया से दिल्ली तक 'किसान यात्रा' निकाली। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को उत्तरप्रदेश में कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया।
 
वर्ष समाप्त होते होते 'नोटबंदी' का बड़ा फैसला हुआ और जैसे-जैसे बैंकों और एटीएम के बाहर लोगों की कतारें बढ़ती गईं, विपक्षी दलों को भाजपा पर हमला तेज करने का मौका मिलता गया। जवाब में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि जिनके पास बड़ी मात्रा में कालाधन है, वे ही हाय-तौबा कर रहे हैं।
 
इस वर्ष को राज्य में एक बड़े रेल हादसे के लिए भी याद किया जाएगा। कानपुर के पुखरायां में 20 नवंबर को इंदौर-पटना एक्सप्रेस के 14 डिब्बे पटरी से उतर गए। हादसे में 150 यात्रियों की जान चली गई। हादसा मध्यरात्रि के बाद हुआ। उस समय यात्री अपने अपने डिब्बे में सो रहे थे। दुर्घटना के बाद सैकड़ों यात्री डिब्बों में फंस गए।
 
वाराणसी-चंदौली सीमा पर पुल हादसे के लिए भी साल 2016 याद रहेगा। यहां 15 अक्टूबर को धार्मिक आयोजन में शामिल होने आई भीड़ में भगदड़ मच गई जिससे 24 लोगों की मौत हो गई जबकि 50 अन्य घायल हो गए। जय गुरुदेव के हजारों अनुयायी चंदौली के डोमरी गांव के धार्मिक आयोजन में शामिल होने जा रहे थे कि गंगा नदी पर बने राजघाट पुल पर भगदड़ मच गई। मृतकों में 20 महिलाएं थीं।
 
जय गुरुदेव के अनुयायियों के नाम से जुड़ा एक अन्य प्रकरण मथुरा में 2 जून को हुआ, जब जवाहरबाग में रामवृक्ष यादव के सशस्त्र अनुयायियों की पुलिस से भिड़ंत हो गई। पुलिस अवैध कब्जा हटाने गई थी। हिंसा में पुलिस अधीक्षक रैंक के अधिकारी और 60 वर्षीय रामवृक्ष सहित 29 लोगों की मौत हो गई और 40 अन्य घायल हो गए।
 
एटा और फर्रुखाबाद जिलों में जहरीली शराब पीने से 25 लोगों की मौत हो गई जबकि कई की आंख की रोशनी चली गई। उत्तरप्रदेश के विभिन्न हिस्सों विशेषकर लखनऊ में डेंगू से 40 लोगों की जान गई। मामले की गंभीरता को देखते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तरप्रदेश सरकार की निष्क्रियता पर नाराजगी जताई। (भाषा)
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