कश्मीरियों को 'मानव कवच' के तौर पर इस्तेमाल करते हैं!

सुरेश डुग्गर
श्रीनगर। कश्मीर में 26 सालों से फैले पाकिस्‍तान परस्त आतंकवाद में आतंकवादरोधी अभियानों में कामयाबी पाने की खातिर सुरक्षाबलों की ओर से कश्मीरियों को 'मानव कवच' के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है। 
यह बात पहली बार सरकार की ओर से स्वीकार की गई है और वह भी किसी छोटे-मोटे अधिकारी की ओर से नहीं, बल्कि खुद मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की ओर से। जब उन्होंने इस सच्चाई को स्वीकारा तो मौका भी कोई छोटा नहीं था, बल्कि स्वतंत्रता दिवस समारोह था।
 
अभी तक कश्मीर में मावाधिकार संगठन, आम कश्मीरी और हुर्रियती नेता ऐसे आरोप लगाते रहे हैं। हालांकि जब पीडीपी सत्ता से बाहर थी तो उसके नेताओं द्वारा ऐसे आरोप जरूर लगाए जाते थे जिसके पीछे का साफ मकसद वोट बैंक की राजनीति थी, पर खुद महबूबा मुफ्ती सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए ऐसा स्वीकार करेंगी किसी ने सोचा भी नहीं था।
 
नई दिल्ली से प्रकाशित एक अंग्रेजी अखबार ने इस आशय की खबर देते हुए लिखा है कि मुख्यमंत्री का इस स्वीकारोक्ति के पीछे का मकसद क्या है, वे ही खुद जानती हैं पर इतना जरूर था कि मुख्यमंत्री द्वारा इस बात की स्वीकारोक्ति ने कश्मीर की पोजीशन को लेकर भारत सरकार तथा सुरक्षाबलों को परेशानी में जरूर डाल दिया है।
 
मुख्यमंत्री का कहना है कि सभी सुरक्षाबल जिसमें सेना और जम्मू कश्मीर पुलिस भी शामिल है, लोगों को आतंकवाद विरोधी अभियानों में मानव कवच के तौर पर इस्तेमाल तभी से करते रहे हैं, जब से कश्मीर में आतंकवाद फैला हुआ है। वे कहती हैंं, जब भी सुरक्षाबल किसी गांव में आतंकियों की तलाश में जाते रहे हैं वे गांववालों को सबसे आगे रखकर आतंकियों को सरेंडर करने के लिए कहते रहे हैं और उनका यह भी कहना है कि लोगों में सुरक्षाबलों का इतना खौफ था कि वे अभी भी अपने घरों से बाहर ही नहीं निकलते थे।
 
मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने यह स्वीकारोक्ति के लिए वह वक्त क्यों चुना, जबकि कश्मीर में बुरहान वानी की मौत के बाद फैली हिंसा 66 लोगों को लील चुकी थी, लेकिन इतना जरूर था कि उनकी स्वीकारोक्ति सुरक्षाबलों के लिए परेशानी का सबब बन जाएगी।
 
उनकी स्वीकारोक्ति का असर भी दिखने लगा है। हुर्रियती नेता मीरवायज उमर फारूक कहते थे कि जब मुख्यमंत्री इसे स्वीकार कर रही हैं कि सुरक्षाबल कश्मीरियों को मानव कवच के तौर पर इस्तेमाल करते हुए कहर बरपा रहे हैं तो उन्हें कम से कम मानवता के नाम पर अपना पद छोड़कर कश्मीरियों के आंदोलन में कंधे से कंधा मिलाना चाहिए।
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