किसने तबाह किया श्रीनगर को..?

Webdunia
शनिवार, 27 सितम्बर 2014 (18:52 IST)
-सुरेश एस डुग्गर
 
श्रीनगर। सूर्य की नगरी अर्थात श्रीनगर को तबाह किसने किया, राजनीति ने या कुदरत ने? इस माह के पहले सप्ताह में श्रीनगर में घुसे बाढ़ के पानी ने कश्मीरियों को जो जख्म दिए वे शायद कभी नहीं भर पाएंगे। इन जख्मों को कुदरत द्वारा दिए गए जख्म समझ अपने दिलों को ढांढस बंधा रहे कश्मीरियों के लिए यह रहस्योद्‍घाटन जले पर नमक की तरह दिख रहा है, जिसमें यह कहा जा रहा है कि श्रीनगर की तबाही के लिए कुदरत से ज्यादा राजनीति जिम्मेदार थी।
 
फिलहाल इस रहस्योद्‍घाटन की जांच जारी है और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों और राजनीतिज्ञों के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी भी चल रही है पर यह कदम कश्मीरियों के जख्मों को तो नहीं भर पाएगा पर इतना जरूर है कि उनके जख्मों पर नमक जरूर लगा रहा है।
 
जानकारी के मुताबिक, श्रीनगर शहर में जब उफनती झेलम का पानी घुसने को बेकरार हो रहा था तो मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की अध्यक्षता में हुई उच्च स्तरीय बैठक में झेलम पर बने कंद-ए-जाल अर्थात एक बैरियर को तोड़कर पानी को डायवर्ट कर श्रीनगर को बचाने का फैसला किया गया था। 
हालांकि पानी को डायवर्ट करने से चदूरा और बडगाम के कस्बों को नुकसान पहुंचने का अंदेशा था पर यह अंदेशा इतना नहीं था जितनी तबाही झेलम के पानी ने श्रीनगर में मचाई थी।
 
पर उमर अब्दुल्ला सरकार इस कदम को राजनीति के चलते और राजनीतिज्ञों की धमकी के सामने झुकते हुए उठा नहीं पाई थी। हालांकि उस समय राज्य सरकार को भी इसके प्रति इल्म नहीं था कि उसका झुकना कश्मीरियों पर कितना भारी पड़ेगा। राजनीतिक मजबूरी और राजनीतिज्ञों की धमकी की स्थिति उमर सरकार के ही एक वरिष्ठ अधिकारी के कारण पैदा हुई थी जो इस महत्वपूर्ण बैठक में मौजूद था और जिसने श्रीनगर को बचाने के लिए उठाए जा रहे इस कदम की जानकारी अपने दो चहेते विधायकों को कथित तौर पर दे दी थी।
 
जानकारी के मुताबिक उमर सरकार के अफसर ने कथित तौर पर पानी को डायवर्ट करने की जानकारी जिन दो विधायकों को दी उनमें से एक तो सत्ताधारी नेशनल कॉन्फ्रेंस का ही था और दूसरा पीडीपी का। नतीजा सामने था। इन दो विधायकों ने अपने अपने विधानसभा क्षेत्रों को बचाने की खातिर राज्य सरकार को मजबूर कर दिया कि वह झेलम के उस बांध को न तोड़े जिसके तोड़ने पर पानी चदूरा और बडगाम में घुस जाता और वहां तबाही मचाता।
 
जानकारों के मुताबिक, अगर पानी को योजना के अनुसार डायवर्ट कर दिया गया होता तो चदूरा और बडगाम में तबाही के इतने स्तर पर होने की कोई आशंका इसलिए नहीं थी क्योंकि दोनों ही इलाके श्रीनगर की तरह की बनावट के नहीं थे। जबकि श्रीनगर की बनावट कटोरे की तरह होने के कारण उसमें से पानी को मोटर पंपों से भी निकाल पाना असंभव हो रहा है।
 
फिलहाल मामले की जांच जारी है। राज्य सरकार ने उस अधिकारी के खिलाफ सख्त एक्शन की ताकीद की है और अपने विधायक के खिलाफ भी कार्रवाई की तैयारी की जा रही है। पर लगता नहीं है कि यह कार्रवाई श्रीनगर के लोगों के जख्मों को भर पाएगी क्योंकि जो तबाही इस राजनीति ने मचाई है उसने उन्हें 100 साल पीछे धकेल दिया है और इस सच्चाई से कोई इंकार नहीं करता है।
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