कश्मीरी जनता के गुस्से से डरे गिलानी

सुरेश डुग्गर
मंगलवार, 18 अक्टूबर 2016 (18:55 IST)
श्रीनगर। कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी ने जनता के क्रोध को भांप लिया है। तभी तो इससे पहले कि हुर्रियत की रही-सही साख भी मिट्टी में मिल जाए, गिलानी ने कश्मीरियों को अपने हड़ताली कैलेंडर से छिटपुट राहत देने के बाद अब उन्हें हड़तालों और बंद से मुक्ति देने का निर्णय लिया है। पर पहले वे कश्मीरियों और कश्मीर के बुद्धिजीवियों से इसका विकल्प चाहते हैं।
पिछले महीने तक अपने हड़ताली कैलेंडर को सख्ती से लागू करवाने वाले गिलानी ने इस महीने इसमें अब फेरबदल करना आरंभ कर दिया है। दरअसल, उनके हड़ताली कैलेंडर का उल्लंघन तेज हो गया है। सौ दिनों की हड़ताल के दौरान पहली बार श्रीनगर में संडे बाजार लगा था। इससे पहले लोगों ने दुकानें बंद करवाने आए लोगों की पिटाई भी की थी। नतीजतन जनता के गुस्से को भांपते हुए गिलानी अब हुर्रियत की इज्जत बचाने में जुट गए हैं।
 
यह सच है कि पिछले कुछ दिनों से कश्मीर में गिलानी के हड़ताली कैलेंडर के खिलाफ लोगों में गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा था। गिलानी ने अपने वक्तव्य में इसे माना है कि लगातार बंद और हड़ताल के कारण लोगों को परेशानी हो रही है। पर उनका कहना था कि वे ऐसा करने पर मजबूर हुए हैं। उनके मुताबिक, कश्मीर के हालात की ओर विश्व समुदाय का ध्यान दिलाने की खातिर उनके पास इसके अतिरिक्त कोई और रास्ता नहीं है।
 
इतना जरूर है कि वे अब इस रास्ते को बदल देना चाहते हैं। ऐसा करने के लिए कश्मीरी जनता ही उन्हें मजबूर कर रही है जो कहती है कि किसी भी समाज के लिए इतनी लंबी हड़तालें संभव नहीं हैं और ऐसा होने पर उनके समक्ष रोजी-रोटी का सवाल पैदा हो गया है।
 
जबकि, गिलानी के समक्ष यह सवाल पैदा हो गया है कि वे हड़ताल का क्या विकल्प तलाशें। पिछले चार महीनों से वे इसका विकल्प तलाश रहे हैं। कई बार बुद्धिजीवियों और कश्मीरियों से आग्रह भी कर चुके हैं पर किसी के पास इसका विकल्प नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कश्मीर में आंदोलन का चेहरा बदल गया है और अब कश्मीरी आजादी के आंदोलन की बजाय अपने जीवन-यापन के रास्तों के विकल्प की तलाश में जुटे हुए हैं।
 
हालत यह है कि गिलानी को अब चाचा हड़ताली के नाम से भी जाना जाता है। अधिकतर कश्मीरी उनके फरमान को पत्थर की लकीर इसलिए भी मानते हैं क्योंकि कोई भी उनके फरमान की नाफरमानी कर मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता। दो दिन पहले ही ऐसी नाफरमानी करने की जुर्रत करने वालों के हश्र को देखकर अब कश्मीरी और भी सहमे हुए हैं।
 
लाल चौक में कुछ लोगों ने गिलानी के कैलेंडर का विरोध करते हुए सफेद झंडा फहराया तो हुर्रियत समर्थकों ने उनकी जमकर पिटाई कर डाली। नतीजतन कश्मीर में फिर से कश्मीरियों की जिंदगी गिलानी के कैलेंडर के मुताबिक चलने लगी। पर अब गिलानी इस आहट को पहचानने लगे हैं कि उनका कैलेंडर उनके करिश्मे को बरकरार रख पाने में रुकावटें पैदा करने लगा है, जिसका विकल्प तलाशने को वे तेजी से हाथ पांव मारने लगे हैं।
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