परंपरा के नाम पर प्रसूता को यातनाएं

कीर्ति राजेश चौरसिया
सोमवार, 6 फ़रवरी 2017 (19:38 IST)
बुंदेलखंड में परंपरा के नाम पर महिलाओं को किस तरह यातनाएं दी जाती हैं, इसका उदाहरण तब देखने को मिला जब आदिवासी समाज की महिला को बच्चे के जन्म के बाद भूखा रखा गया। 
मध्यप्रदेश के पन्ना जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर दूर ग्राम मनोर के रहने वाले छग्गु आदिवासी की 20 वर्षीय पत्नी कप्सर को 1 फरवरी को गर्भावस्था के दौरान जिला अस्पताल लाया गया था, जहां 2 फरवरी को उसने एक बच्चे को जन्म दिया था। तभी से उसे कुछ भी खाने को नहीं दिया जा रहा है, 
 
जबकि प्रसव के दौरान ही वह काफी कमजोर थी। उसे खून की भी कमी थी। वहीँ परिजन उसे पिछले 4 दिनों से कुछ भी खाने को नहीं दे रहे हैं। खाने के नाम पर उसे सिर्फ चाय और बिस्किट दिया जा रहा है। उसे पोषण आहार नहीं दिया जा रहा। जिससे उसकी हालत लगातार खराब और नाजुक बानी हुई है।
 
 
परिजनों की मानें तो पुरानी परंपराओं के चलते ऐसा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां रिवाज है कि बच्चे के जन्म के बाद मां को भूख रखा जाता है। उसे 5 दिनों तक कुछ भी नहीं दिया जाता। छठे दिन दिन पूजा होने के बाद उसे खाना दिया जाता है। अगर हम परंपरा तोड़ देंगे तो देवी-देवता नाराज हो जाएंगे।
 
हम जानते हैं कि उसकी हालत खराब है। वह कमजोर है। हमने डॉक्टरों से कहा है कि बॉटल चढ़ा दो पर हम खाने को नहीं दे सकते। उन्होंने कहा कि हम घर ले जाकर पूजा-पाठ करने के बाद उसे अच्छा खिला-पिलाकर पुष्ट कर देंगे मगर पूजा होने तक कुछ नहीं देंगे। 

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