Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

मशाल की रोशनी में होती है वाराणसी की विश्वप्रसिद्ध पौराणिक रामलीला

हमें फॉलो करें मशाल की रोशनी में होती है वाराणसी की विश्वप्रसिद्ध पौराणिक रामलीला
, सोमवार, 24 सितम्बर 2018 (20:07 IST)
वाराणसी। उत्तरप्रदेश की प्राचीन धार्मिक नगरी एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के गंगा किनारे स्थित रामनगर की सैकड़ों वर्ष पुरानी विश्वप्रसिद्ध रामलीला आधुनिकता की चकाचौंध से दूर मशाल की रोशनी की शुरू हुई।
 
 
225 वर्षों से एक ही अंदाज में हर साल आयोजित होने वाली रामलीला भारत की धार्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहर को जिंदा रखने का सशक्त माध्यम बनी हुई है। 21वीं सदी की ध्वनि विस्तारक यंत्रों एवं रात में दिन जैसा उजाला करने वाली प्रकाश व्यवस्था की दुनिया के बीच साधारण पेट्रोमैक्स एवं मशाल की रोशनी में कलाकार अपनी खुद की आवाज के दम पर साधारण से मंचों पर रामलीला का मंचन करते हैं। 'रावण जन्म' के मंचन के साथ रविवार शुरू हुआ यह धार्मिक आयोजन करीब 1 महीने तक चलेगा।
 
मान्यता है कि यह रामलीला 235 साल पुरानी है। तत्कालीन काशी नरेश उदित नारायण सिंह ने वर्ष 1783 में रामलीला मंचन की शुरुआत की थी और तब से उसी अंदाज में आयोजन किया जाता है। आधुनिक चकाचौंध से इतर भारत की प्राचीन धार्मिक परंपराओं को निभाने के साथ ही पर्यावरण की रक्षा का संदेश देने वाला यह एक अनूठा आयोजन है। आसपास के क्षेत्रों के अलावा हजारों देशी-विदेशी मेहमान धार्मिक आस्था के साथ रामलीला देखने के लिए हर साल यहां आते हैं।
 
वाराणसी में गंगा किनारे स्थित रामनगर के 4 किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैले एक दर्जन कच्चे एवं पक्के मंचों के माध्यम से अयोध्या, जनकपुर, चित्रकूट, पंचवटी, लंका और रामबाग दर्शाए गए हैं। खुले आसमान में होने वाली इस रामलीला में 30 से अधिक पात्रों की भूमिका में लगभग 15 बच्चे शामिल हैं।
 
लड़कियां रामलीला मंचन का हिस्सा नहीं बनतीं तथा उनकी भूमिका लड़के निभाते हैं। मंचन से करीब 1 महीने पहले इसकी तैयारियां शुरू कर दी जाती है। कई कलाकार दशकों से इस धार्मिक आयोजन में अहम किरदार की भूमिका निभाते आ रहे हैं। (वार्ता)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

खुलेगा लालबहादुर शास्त्री की मौत का राज, सूचना आयोग ने कहा मोदी लें सार्वजनिक करने का निर्णय