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बिहार चुनाव के बाद मायावती पर सपा का नरम रुख क्‍यों, क्‍या अखिलेश यादव बना रहे नई रणनीति

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
शनिवार, 22 नवंबर 2025 (15:01 IST)
Is Akhilesh Yadav making a new strategy : बिहार विधानसभा चुनाव में विपक्ष की करारी हार के बाद सियासी हवा बदली-बदली सी नजर आ रही है। हाल ही में हुए चुनाव के नतीजों ने पूरे विपक्ष को झकझोरकर रख दिया है। इस बीच समाजवादी पार्टी में भी बेचैनी बढ़ गई है। यही कारण है‍ कि पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने मायावती को लेकर नया फरमान जारी किया है। अखिलेश ने बसपा प्रमुख मायावती पर कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया है। मायावती पर सपा के नरम रुख से कहीं ऐसा तो नहीं कि अब उत्‍तर प्रदेश में आने वाले चुनावों को लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव कोई नई रणनीति बनाने की तैयारी में हैं।

खबरों के अनुसार, बिहार विधानसभा चुनाव में विपक्ष की करारी हार के बाद सियासी हवा बदली-बदली सी नजर आ रही है। हाल ही में हुए चुनाव के नतीजों ने पूरे विपक्ष को झकझोरकर रख दिया है। इस बीच समाजवादी पार्टी में भी बेचैनी बढ़ गई है। यही कारण है‍ कि पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने मायावती को लेकर नया फरमान जारी किया है।
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अखिलेश ने बसपा प्रमुख मायावती पर कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया है। मायावती पर सपा के नरम रुख से कहीं ऐसा तो नहीं कि अब उत्‍तर प्रदेश में आने वाले चुनावों को लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव कोई नई रणनीति बनाने की तैयारी में हैं।

2024 लोकसभा चुनाव में सपा ने सामान्य सीटों पर दलित प्रत्याशी उतारने का एक नया प्रयोग किया था। मेरठ और अयोध्या में यह मॉडल अपनाया गया। मेरठ में मामूली अंतर से हार मिली, लेकिन फैजाबाद सीट बड़े अंतर से जीती गई। यही फार्मूला 2027 में भी लागू किया जा सकता है।
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क्‍योंकि बिहार में 2020 में जहां 55 यादव विधायक थे, वहीं 2025 में यह संख्या घटकर केवल 28 रह गई। इससे समाजवादी पार्टी में बेचैनी बढ़ गई है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में 2027 से पहले अखिलेश ने बड़ा कदम उठाते हुए अपने मीडिया पैनलिस्टों को निर्देश दिया कि मायावती के खिलाफ कोई निजी हमले न करें।

अखिलेश समझ चुके हैं कि केवल यादव-मुस्लिम समीकरण के भरोसे यूपी में सत्ता नहीं बदली जा सकती। इसी कारण 2022 के बाद से उन्होंने पीडीए की धार को तेज किया। जिसका असर उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में मिला भी। लोकसभा चुनाव में यादव परिवार के 5 सदस्यों को टिकट दिया गया। सभी ने जीत दर्ज की।
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जानकारों का मानना है कि दलित समाज में मायावती की छवि अभी भी बेहद सम्मानजनक है। उनसे दूरी बनाना राजनीतिक तौर पर नुकसानदेह हो सकता है। दरअसल, पिछले कुछ समय में मायावती को सपा लगातार निशाने पर लेती रही है।
Edited By : Chetan Gour

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