पप्पू की अड़ी पर भी हमने देखा कि एक छोटे स्टील के डोंगे में ताज़ा भाँग पिसी हुई रखी है। जो भी भाँग माँगने आता उसी में से गोलियाँ बनाकर पत्ते पर रख कर उसे दे दी जाती। पास ही पान की दुकान भी है। क्या कहने- भंग का रंग जमा हो चकाचक, फिर लो पान चबाए.... ऐसा झटका लगे जिया में... पुनर्जनम हुई जाए... ख़ई के पान बनारस वाला...।