इस उम्र में अक्सर वे अपनी सेहत और साफ-सफाई की ओर से लापरवाह हो जाते हैं तो ऐसे समय में उन्हें अपनी शारीरिक सफाई का ध्यान रखने के लिए समझाएं। किशोरावस्था में बच्चों के मन में अनेक सवाल होते हैं। घर में टीवी और इंटरनेट एक ऐसा माध्यम है, जिनसे वे जो चाहें, वे सूचनाएं मिनटों में हासिल कर सकते हैं।
अक्सर इंटरनेट पर घंटों चेटिंग चलती है और लड़के पोर्न साइट्स देखते हैं। यदि आप उन्हें ऐसा करते देखते हैं तो प्यार से समझाएं और बताएं कि उनकी उम्र अच्छी शिक्षा हासिल करके करियर बनाने की है। इन बातों की ओर से वे अपना ध्यान हटाएं।
इस उम्र में बच्चों का पढ़ाई पर ध्यान कम लगता है। छोटी-छोटी बात पर गुस्सा होना, हाइपर एक्टिव होना, डिप्रेशन, ज्यादा सोचना इस तरह की समस्याएं होती हैं। गुस्से में वे अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पाते। यदि उनका व्यवहार नियंत्रण से बाहर हो जाए तो मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग जरूरी हो जाती है।
उनके असामान्य व्यवहार को यदि गंभीरता से लिया जाए और शांति से हल निकाला जाए तो वे शांत और एकाग्रचित्त हो जाते हैं। इस उम्र में अक्सर लड़के थोड़े उच्छृंखल हो जाते हैं और उन्हें किसी की भी टोका-टोकी बुरी लगती है। ऐसे में पिता को उनसे संवाद करने की पहल करनी चाहिए। पिता को चाहिए कि बच्चे की समस्याएँ सुनें, उसके दोस्त बनें और उसे इस उलझनभरे दिनों में सुलझा हुआ माहौल दें।