रिश्ता निभाइए सामंजस्य के साथ

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- शोभा कुमराव त

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वर्तमान समय में जहाँ पति-पत्नी दोनों नौकरीपेशा होते हैं, वहाँ वैवाहिक संबंधों को स्थायी रूप स े बनाए रखना कठिन होता जा रहा है, जिसके अनेक कारण हो सकते है। इनमें कुछेक निम्न हो सकते हैं-

* अक्सर नौकरीपेशा महिलाओं का अपना अलग सर्कल बन जाता है, जहाँ स्त्री-पुरुष दोनों काम करते हैं। सामाजिक समारोहों जैसे विवाह, बच्चों के जन्मदिन, धार्मिक कार्यक्रम जो अधिकतर शाम या रात्रि में होते हैं, उनमें कभी-कभी पत्नी को अकेले भी जाना पड़ सकता है। ऐसे में कभी देर हो जाने पर पुरुष सहकर्मी द्वारा सुरक्षा की दृष्टि से उसे घर छोड़ने जाने पर पति अपनी पत्नी पर शक करने लग जाता है, जिससे उनका वैवाहिक जीवन ही खतरे में पड़ जाता है। लेकिन याद रखिए परस्पर विश्वास ही किसी भी विवाह की पहली आवश्यक शर्त होती है।

* संयुक्त परिवारों में नौकरीपेशा नारी को दोहरे शोषण का सामना करना पड़ता है। अधिकांशतः बुजुर्गों की उपस्थिति में पति अपनी पत्नी का घर के कामों में हाथ नहीं बँटा पाते या नहीं बँटाना चाहते। तब सारा बोझ अकेली पत्नी पर आ जाता है।

* नौकरीपेशा पत्नी हमेशा दोहरी चिंता में उलझी रहती है। ऑफिस या कार्यस्थल की तथा घर (मकान नहीं) पर बच्चों व पति की चिंता, क्योंकि विवाह के बाद अधिकांश भारतीय पति, पत्नी पर बहुत अधिक निर्भर हो जाते हैं।

कई घरों में तो प्रातःकालीन दृश्य बड़ा ही तनावपूर्ण रहता है। बच्चे स्कूल जाने की तैयारी करते हैं तथा छोटी-छोटी चीजों के लिए मम्मी को
जरूरी है कि नौकरीपेशा पति-पत्नी समय निकालकर आपसी बातचीत, वार्तालाप द्वारा छोटी-बड़ी घरेलू तथा अन्य समस्याओं का हल निकालें। साथ ही पति भी गृहकार्य तथा बच्चों के लालन-पालन में पत्नी की मदद करें। सारी समस्याओं को आपसी सामंजस्य से हल किया जा सकता है
पूछते रहते हैं। मम्मी मेरा मोजा नहीं मिल रहा, मेरी स्कूल की टाई कहाँ गई? आदि-आदि। साथ ही पति महोदय शेविंग के लिए गरम पानी, शेविंग क्रीम, तौलिया आदि के लिए, अखबार पढ़ते हुए पत्नी को पुकारते या चिल्लाते रहते हैं। इन सारी उलझनों के बीच बच्चों के स्कूल रवाना होने के बाद, पति की तैयारी, खुद की तैयारी आदि कर किसी तरह पत्नी घर से निकल पाती है। फिर देर हो जाने पर बॉस की झिड़की सुनने के लिए भी उसे तैयार रहना पड़ता है।

शाम को घर लौटने पर शाम के खाने की चिंता, बच्चों की कल की तैयारी, उनका होमवर्क भी माँ का होमवर्क हो जाता है। ऐसे में उसका परेशान होना स्वाभाविक है। आखिर वो भी तो एक इंसान है। उच्चपदस्थ पत्नियों को भी नैसर्गिक तौर पर पति की तुलना में घर व बच्चों की चिंता हमेशा सताए रहती है। पति पेप्सिको में चेयरमैन तथा सीईओ इंदिरा नूई ने हाल ही दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि पेप्सी की चेयरपर्सन होने के साथ मुझे अपने घर व बच्चों की भी उतनी ही फिक्र रहती है, जितनी पेप्सी की। आज महानगरों में जहाँ पति चालीस हजार तथा पत्नी पचास हजार रु. प्रतिमाह वेतन पा रही है, वहाँ समस्याएँ सर उठाने लगी हैं, जिससे गंभीर सामाजिक परेशानियाँ पैदा हो गई हैं। वैवाहिक संबंधों का स्थायित्व समाप्त होता जा रहा है। परिणामस्वरूप गृह कलह, विवाह विच्छेद, एकाकी वैवाहिक जीवन, विवाह से डर आदि अनेक मनोवैज्ञानिक समस्याओं का सामना नौकरीपेशा दंपतियों को करना पड़ रहा है।

जरूरी है कि नौकरीपेशा पति-पत्नी समय निकालकर आपसी बातचीत, वार्तालाप द्वारा छोटी-बड़ी घरेलू तथा अन्य समस्याओं का हल निकालें। साथ ही पति भी गृहकार्य तथा बच्चों के लालन-पालन में पत्नी की मदद करें। सारी समस्याओं को आपसी सामंजस्य से हल किया जा सकता है। जरूरत है आपसी विश्वास, धैर्य तथा एक-दूसरे के प्रति निष्ठा बनाए रखने की।
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