मप्र में दीपावली के अगले दिन छिड़ेगा ‘हिंगोट युद्ध’

भाषा
मंगलवार, 21 अक्टूबर 2014 (14:17 IST)
मध्यप्रदेश के इंदौर जिले में 24 अक्टूबर को सैकड़ों दर्शकों की मौजूदगी में ‘हिंगोट युद्ध’ छिड़ेगा। फिजा में बिखरे त्योहारी रंगों और उल्लास के बीच छिड़ने वाली इस पारंपरिक जंग में ‘कलंगी’ और ‘तुर्रा’ दलों के योद्धा एक-दूसरे को धूल चटाने की भरसक कोशिश करेंगे।
 
हर साल की तरह इस बार भी दीपावली के अगले दिन यहां से करीब 55 किलोमीटर दूर गौतमपुरा कस्बा हिंगोट युद्ध का मैदान बनेगा। इस जंग में हथियार के रूप में ‘हिंगोट’ का इस्तेमाल किया जाएगा।
 

 
हिंगोट दरअसल एक फल है, जो हिंगोरिया नाम के पेड़ पर लगता है। आंवले के आकार वाले फल से गूदा निकालकर इसे खोखला कर लिया जाता है। इसके बाद इसमें कुछ इस तरह बारूद भरी जाती है कि आग दिखाने पर यह किसी अग्निबाण की तरह सर्र से निकल पड़ता है। 
 
गौतमपुरा नगर परिषद के अध्यक्ष विशाल राठी ने बताया कि- 'हिंगोट युद्ध के पारंपरिक आयोजन के लिए गौतमपुरा में व्यापक व्यवस्था की गई है। कस्बे में करीब 1,500 लोगों की बैठक क्षमता वाली दर्शक दीर्घा बनवाई गई है। इस दीर्घा के आस-पास लोहे की जालियां लगवाई गई हैं, ताकि हिंगोट युद्ध के दौरान दर्शक महफूज रह सकें।’ उन्होंने बताया कि हिंगोट युद्ध के दौरान फायर ब्रिगेड और डॉक्टरों की टीम भी ‘रणभूमि’ के पास तैनात रहेगी। 
 
बहरहाल, हिंगोट युद्ध की परंपरा की शुरुआत कब और कैसे हुई, इस सिलसिले में इतिहास के प्रामाणिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं।
 
हालांकि, जैसा कि राठी बताते हैं कि इस बारे में ऐसी दंतकथाएं जरूर प्रचलित हैं कि रियासत काल में गौतमपुरा क्षेत्र की सरहदों की निगहबानी करने वाले लड़ाके मुगल सेना के उन दुश्मन घुड़सवारों पर हिंगोट दागते थे, जो उनके इलाके पर हमला करते थे।
 
उन्होंने कहा, ‘हमारे पुरखों के मुताबिक हिंगोट युद्ध एक किस्म के अभ्यास के रूप में शुरू हुआ था। वक्त बदलने के साथ इससे धार्मिक मान्यताएं जुड़ती चली गईं।’ राठी ने बताया कि इन्हीं धार्मिक मान्यताओं के मद्देनजर हिंगोट युद्ध में पुलिस और प्रशासन रोड़े नहीं अटकाते, बल्कि रणभूमि के आस-पास सुरक्षा व घायलों के इलाज के पक्के इंतजाम करते हैं।
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