भगवान शांतिनाथ का महामस्तकाभिषेक

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बुधवार को ग्वालियर, दिगंबर जैन नसिया जी में 21 फुट ऊँची भगवान शांतिनाथ की अद्भुत प्रतिमा का पंचामृत से महामस्तकाभिषेक मुनिश्री के सानिध्य में प्रतिष्ठाचार्य पं. अजीत कुमार शास्त्री, पं. चंद्रप्रकाश चंदर के मार्गदर्शन में हुआ।

भगवान शांतिनाथ के गर्भ कल्याणक महोत्सव के अवसर पर मुनिश्री सौरभ सागर महाराज ने कहा कि तीर्थंकर भगवान का अभिषेक तो हम सभी प्रतिदिन जिनालय में देखकर अपने पुण्य का विस्तार करते हैं, लेकिन महामस्तकाभिषेक देखना और करना बड़े भाग्य से मिलता है।

उन्होंने कहा कि भगवान शांतिनाथ एक नहीं, बल्कि तीन पद के धारी थे। वे चक्रवर्ती, कामदेव एवं तीर्थंकर थे। जब व्यक्ति का पुण्य जाग्रत होता है, तब चक्रवर्ती और वैभवशाली बनता है। भक्ति बढ़ती है तो कामदेव बन जाता है और अंतरंग में धर्म और भक्ति का पूर्ण जागरण होने पर कर्मों का क्षय करते हुए तीर्थंकर बन जाता है।

उन्होंने कहा कि भगवान शांतिनाथ जब चक्रवर्ती अवस्था में थे, तब 32 हजार मुकुटधारी राजाओं ने उनके आगे समर्पण कर दिया था। मुनिश्री ने कहा कि विरासत में हमें क्या मिला, यह महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि हम इस संसार को क्या देकर जाएँगे।
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